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450 साल पुराना है ये कुआं, ऋषि के चमत्कार के चलते अस्तित्व में आया, पूरी कहानी जानकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे

jantaserishta.com
23 May 2021 9:27 AM GMT
450 साल पुराना है ये कुआं, ऋषि के चमत्कार के चलते अस्तित्व में आया, पूरी कहानी जानकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे
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पुराने इतिहास की कहानी को दोहराता हैं,

उत्तर प्रदेश के जालौन में स्थित एक कुआं 450 साल पुराने इतिहास की कहानी को दोहराता हैं, जिसे सुनकर आप भी हैरत में पड़ सकते हैं. ये कुआं एक ऋषि के चमत्कार के चलते अस्तित्व में आया. कहा जाता है कि इस कुएं में एक ऋषि के कमंडल के पानी से जलधारा प्रकट हुई थी और आज भी ये कुआं यहां के रहने वाले लोगों की प्यास बुझाने का काम कर रहा है.

ये कुआं जालौन की माधौगढ़ तहसील स्थित जगम्मनपुर के किले में है. हालांकि इससे जुड़े इतिहास को सिर्फ चंद शब्दों में बयां नहीं कर सकतें. इस कुएं का एक पन्ना राजवंशियों के शासनकाल को भी दर्शाता है. ऐसा माना जाता है कि उस समय जगम्मनपुर के तत्कालीन महाराजा जगम्मनदेव के राजमहल का निर्माण हो रहा था तभी राजा के अनुरोध पर गोस्वामी तुलसीदास पधारे और उन्होंने राजा को एक मुखी रुद्राक्ष व शालिग्राम की मूर्ति भेंट की. इसके बाद जब गांव का नवनिर्माण हो रहा था तब राजा को यहां जलापूर्ति की चिंता हूई. उन्होंने तुलसीदास जी से कुंआ खोदने के लिए स्थान चयन करने की बात कही.
जब किले के उत्तरी भाग में कुआं खोदा गया तो वहां पानी नहीं निकला इस से राजा जगम्मनदेव की चिंता और भी बढ़ गई. राजा की चिंता को देख तुलसीदास जी ने वहां पास के आश्रम से सिद्ध संत श्री मुकुंदवन को किले में पधारने का अनुरोध किया. ऋषि मुकुंदवन ने वहां पहुंचकर अपने कमंडल से जैसे ही कुएं में जल डाला तो उससे जलधारा फूट पड़ी और वहां तेजी से जलप्रवाह होने लगा. ऋषि मुकुंदवन ने वहां मौजूद सभी लोगों को सम्बोधित करते हुए बताया कि यह कुंआ पवित्र नदियों के जल स्रोतों के संपर्क में है और इस जल से स्नान करने से लोगों को पुण्य मिलेगा.
कुएं के पानी से स्नान करने से मिलता है मोक्ष
स्थानीय निवासी विजय द्विवेदी के अनुसार, यह कुंआ 16वीं सदी का हैं और लगभग 450 साल पुराना है. हम अपने बुजुर्गों से सुनते चले आ रहें हैं कि प्राचीन काल मे जब यहां के राजा जगम्मनदेव के द्वारा कुएं का निर्माण किया जा रहा था तो यहां पास में पचनद नाम का स्थान है. जहां एक सिद्ध संत रहा करते थे तो उनसे मिलने के लिए गोस्वामी तुलसीदास जी यहां आए. जब किले के निर्माण के लिए पानी की आवश्यकता पड़ी तो राजा जगम्मनदेव तुलसीदास जी को लेने पचनद पहुंचे तो तुलसीदास औऱ ऋषी मुकुंदवन दोनों महल में आएं.
राजा ने उन्हें पानी की समस्या के बारे में बताते हुए कहा कि यहां जो कुंआ खुदवाया गया है उसमें भी पानी नहीं आ रहा है. इसके बाद ऋषि मुकुंदवन ने कुएं के अंदर अपने कमंडल से जल छोड़ा तो उससे जलधारा निकलने लगी. पानी का वेग इतना तेज था कि उसे मिट्टी व चूने से रोकना पड़ा. जगम्मनपुर में अन्य कुओं में लगभग 100 फीट पर पानी मिलता हैं लेकिन इस कुएं में में 50 से 55 फीट पर पानी मिलता हैं. पांच नदियों की जलधारा इस कुएं में प्रवाहित होने से इसका पानी पवित्र माना जाता हैं. ऐसी मान्यता है कि इसके पानी से स्नान करने से मोक्ष मिलता है व पुण्य की प्राप्ति होती हैं.


वही गांव के निवासी बताते हैं कि इस कुएं का पानी कभी नहीं सूखा और सिंचाई में भी इसके पानी का उपयोग होता है. प्राचीन काल से लेकर आज भी इस कुएं का इस्तेमाल होता चला आ रहा है. तब से इस कुएं का नाम सागर हो गया है.


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