तनवीर जाफ़री
किसी भी धर्म व समुदाय के धर्मगुरु से वैसे तो प्रायः यही उम्मीद की जाती है कि वह अपने अनुयायियों को सद्मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करे। उन्हें बुराइयों से दूर रहने व सत्कर्म करने के लिये प्रोत्साहित करे। उनमें मानवता का संचार करे। उन्हें दया,सहृदयता,मानवता,क्षमा,परोपकार,जनकल्याण व मानव प्रेम सिखाये। परन्तु आज के दौर में कभी कभी तो मौलवी और साधू संतों के वेश में ही ऐसी राक्षसी मानसिकता रखने वाले लोगों को देखा जाने लगा है जिससे कभी कभी तो ऐसा प्रतीत होने लगता है गोया यही 'कलयुग का उत्कर्ष काल' है। क्योंकि आम तौर पर समाज विशेषकर अपने अनुयायियों को सही राह दिखाने वाले यही कथित मौलवी-संत-साधू अब समाज में साम्प्रदायिकता फैलाने,विषवमन करने,एक दूसरे धर्म या समुदाय के लोगों के विरुद्ध नफ़रत फैलाने यहाँ तक कि अपने समर्थकों को हत्या,हिंसा,आगज़नी व तोड़फोड़ करने के लिये उकसाने जैसे काम कर रहे हैं। अफ़सोस की बात तो यह है कि धर्म की आड़ में और धर्म के नाम पर यह अधर्म प्रायः बहुसंख्य समाज के कथित मौलवियों व धर्म गुरुओं द्वारा अल्पसंख्यक समाज के विरुद्ध किया जा रहा है। और अधर्म भी ऐसा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिसे देख व सुनकर इंसानी रूह काँप उठे ,राक्षसी कृत्य भी जिसके आगे फीके पड़ जायें।
पाकिस्तान में गत 22 अगस्त को लाहौर से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित फ़ैसलाबाद ज़िले के चक 203 आरबी मनावाला में अहमदिया समुदाय के एक क़ब्रिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोगों की 16 क़ब्रों को स्वयं को मुसलमान बताने का दावा करने वाले साम्प्रदायिकतावादियों ने तोड़ फोड़ कर उन्हें क्षतिग्रस्त कर दिया तथा उन क़ब्रों पर पत्थर भी बरसाये । बताया जाता है कि यह क़ब्रिस्तान 75 वर्ष पुराना है। हमलावर चरमपंथियों को शिकायत है कि अहमदिया समुदाय के लोगों द्वारा अपने मृत परिजनों की क़ब्रों के पत्थरों पर इस्लामिक चिन्हों व क़ुरआनी आयतों आदि का इस्तेमाल क्यों किया गया? इन हमलावरों को इन क़ब्रों को क्षतिग्रस्त करने के लिये इस इलाक़े में सक्रिय उन मौलवियों ने प्रेरित किया जो आते तो हैं अपने प्रवचन अल्लाह,रसूल,क़ुरआन व हदीस के नाम पर देने के लिये परन्तु इसके बजाय वे दूसरे समुदाय के लोगों के विरुद्ध अपने समर्थकों व अनुयायियों को भड़काने का काम करते हैं। परिणाम स्वरूप ग़रीबी व बेरोज़गारी से जूझ रहे लोग ऐसे कलयुगी मोलवियों व धर्मगुरुओं के बहकावे में आकर क़ब्रों को खोदने व उन्हें क्षतिग्रस्त करने जैसे अधार्मिक व अमानवीय काम करने लगते हैं। ख़बरों के अनुसार पाकिस्तान में केवल इसी वर्ष अब तक अहमदिया लोगों की 185 क़ब्रों को क्षतिग्रस्त किया जा चुका है।
इसी तरह की क्रूर व अमानवीय मानसिकता के लोग कभी मानव बम बनकर मस्जिदों में नमाज़ पढ़ रहे लोगों के बीच विस्फ़ोट कर नमाज़ियों की हत्यायें कर देते हैं ,कभी किसी का सर क़लम करते दिखाई दे जाते हैं,कभी अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म ढहाते नज़र आते हैं तो कभी अल्पसंख्यकों की इबादतगाहों,मंदिरों,मस्जिदों,गुरुद्वारों,दरगाहों व इमाम बारगाहों पर हमले करते व तोड़फोड़ व आगज़नी करते दिखाई दे जाते हैं। पिछले दिनों मालदीव के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन एवं तकनीकी राज्यमंत्री अली सोलिह पर राजधानी माले के हुल्हुमाले में एक शख्स ने चाकू से हमला किया। हमलावर क़ुरान की आयतें पढ़ने के बाद हमलावर उनका गला रेतना चाहता था। कुरान की आयतें पढ़ने के बाद इस तरह की अमानवीयता व अधर्म की प्रेरणा केवल मौलवियों,मुल्लाओं व धर्मगुरुओं के उकसाने व भड़काने से ही मिल सकती है।
तो क्या किसी धर्म या समुदाय विशेष व उनके धर्मग्रंथों में इस बात की शिक्षा दी गयी है कि जिनके सोच विचार आप के विचारों से मेल न खाते हों उनके पूर्वजों की क़ब्रें उधेड़ दी जायें ? उनके सर क़लम कर दिए जाएं ? उनकी इबादतगाहों को नुक़सान पहुँचाया जाये ? जिनके नमाज़ या पूजा अरदास आदि के तरीक़े आपकी इबादत पद्धति से मेल न खाते हों उनके धर्मस्थलों पर विस्फ़ोट कर बेगुनाह लोगों की जान ले ली जाये ? न तो मैं अहमदिया समुदाय से संबद्ध हूँ न ही उनका अनुयायी। परन्तु इस अति अल्पसंख्यक परन्तु शिक्षित मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ आये दिन होने वाले ज़ुल्म-ो-सितम की दास्ताँ सुनसुनकर मानवता के नाते इनके प्रति मेरी हमदर्दी ज़रूर बढ़ गयी है। और इनपर या इन जैसे दूसरे अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म ढहाने वालों के विरुद्ध नफ़रत और ग़ुस्सा। आश्चर्य है कि पाकिस्तान की संसद ने 1974 में अहमदिया समुदाय को ग़ैर -मुस्लिम घोषित कर दिया। इस समुदाय पर ख़ुद को मुस्लिम कहलवाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। यहाँ तक कि अहमदिया मुसलमानों का धार्मिक उपदेश देना और हज के लिए सऊदी अरब जाना तक प्रतिबंधित कर दिया गया। जबकि अहमदिया स्वयं को मुसलमान भी कहते हैं,क़ुरआन व रसूल पर भी अक़ीदा रखते हैं।
सवाल यह कि आज के पाकिस्तान में जहाँ बाढ़ व मंहगाई से देश के हालात अति दयनीय बने हुये हैं, इस दौर में ख़ुदा से डरने,लोगों के दिलों की दुआयें हासिल करने,अपने आमाल सुधारने, अपने किये गये गुनाहों के लिये अल्लाह से तौबा करने के बजाये, क़ब्रें खोदने,मस्जिदों,मंदिरों व गुरद्वारों पर हमले करने जैसी अमानवीय व राक्षसीय सोच आख़िर कहाँ से आती है ? यह समझने के लिये भी हमें इस्लामी इतिहास के अतीत में ही झांकना पड़ेगा। और फिर हम यही पायेंगे कि स्वयं को मुसलमान कहने वाली यही ज़ालिम व क्रूर शक्तियां जो आज भी क़ब्रें खोदने पर आमादा हैं यह उसी मानसिकता के मुसलमान हैं जिन्होंने करबला में इमाम हुसैन के छः महीने के बच्चे अली असग़र को पहले तो तीर मारकर क़त्ल किया फिर जब इमाम हुसैन ने शहीद अली असग़र की लाश करबला की तपती धरती में दफ़्न कर दी तो इन्हीं 'स्वयंभू मुसलमानों' ने इमाम हुसैन को क़त्ल करने के बाद अली असग़र की लाश को भी क़ब्र खोद कर बाहर निकाल कर उसकी गर्दन काटी और भाले की नोक पर बुलंद कर बाज़ारों में घुमाया। नमाज़ियों पर हमले की प्रेरणा भी इन्हें करबला से ही मिलती है। दस मुहर्रम की सुबह जब इमाम हुसैन के साथी अपनी आख़िरी नमाज़ अदा कर रहे थे उस समय यज़ीदी सेना ने तीरों की बौछार कर नमाज़ में विघ्न पैदा किया था। आगज़नी की प्रेरणा भी इन्हें करबला से ही मिलती है क्योंकि इमाम हुसैन की शहादत के बाद इसी यज़ीदी लश्कर ने उन तंबुओं में आग लगा दी थी जिनमें इमाम हुसैन के परिवार की महिलायें व बच्चे रह रहे थे। इसी विचारधारा के लोगों ने पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद की बेटी हज़रत फ़ातिमा के घर में आग लगा कर उनकी हत्या की थी। गोया जो लोग इस्लाम के नाम पर और मुसलमानों का चोग़ा पहनकर इस्लाम के उद्भवकाल में इस्लाम व मुसलमानों के दुश्मन थे आज भी उसी मानसिकता के कलयुगी धर्मगुरु पूरी पृथ्वी पर अशांति फैलाने में लगे हुये हैं।