भारत
संविधान में SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं: अश्वनी वैषणव
Shantanu Roy
21 Aug 2024 10:59 AM GMT
x
देखें VIDEO...
New Delhi. नई दिल्ली। 'संविधान में SC/ST आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' का कोई प्रावधान नहीं है इसलिए संविधान के अनुसार ही SC/ST आरक्षण की व्यवस्था होगी।
'संविधान में SC/ST आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' का कोई प्रावधान नहीं है इसलिए संविधान के अनुसार ही SC/ST आरक्षण की व्यवस्था होगी।'
— BJP (@BJP4India) August 21, 2024
न भ्रमजाल में फंसिये, न किसी के बहकावे में आइये, सच ये है, सबको बताइए… pic.twitter.com/ZtAxEEVPrt
'उच्चतम न्यायालय के सात न्यायधीशों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है। फैसले का मतलब है कि राज्य एससी श्रेणियों के बीच अधिक पिछड़े लोगों की पहचान कर सकते हैं और कोटे के भीतर अलग कोटा के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकते हैं। यह फैसला भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया था। इसके जरिए 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया। बता दें कि 2004 के निर्णय में कहा गया था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है।
फैसले के दौरान हुई बहस में अदालत ने एससी-एसटी में क्रीमी लेयर की आवश्यकता पर जोर दिया था। कई जजों ने न्यायालय ने अनुसूचित जातियों के भीतर 'क्रीमी लेयर' को अनुसूचित जाति श्रेणियों के लिए निर्धारित आरक्षण लाभों से बाहर रखने की पर राय रखी थी। वर्तमान में, यह व्यवस्था अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण पर लागू होती है। मुख्य रूप से न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा था कि राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए।
देशभर में कई सामाजिक संघों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असंतोष जताया है। दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (NACDAOR) का तर्क है कि एससी में उप-वर्गीकरण का निर्णय आरक्षण ढांचे और संवैधानिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। इसने सरकार से अनुरोध किया है कि इस फैसले को खारिज किया जाए, क्योंकि यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए खतरा है। कांग्रेस, बसपा, चिराग पासवान की लोजपा और रामदास अठावले की आरपीआई समेत कई पार्टियों ने कोर्ट के फैसले के कई पहलुओं की आलोचना की। चिराग पासवान ने कहा कि उनकी पार्टी फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी।
देश की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे समेत पार्टी नेतृत्व ने उपवर्गीकरण मुद्दे पर बैठक की थी। खरगे के आवास पर हुई बैठक में पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल, कांग्रेस के कर्नाटक प्रभारी रणदीप सुरजेवाला, महासचिव जयराम रमेश और पार्टी के कानूनी और दलित चेहरे शामिल थे। बैठक के बाद जयराम रमेश ने जाति जनगणना और अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा को हटाने की पार्टी की मांग दोहराई।
इसके अलावा, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि प्रधानमंत्री संसद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर सकते थे और इसे वहां ला सकते थे। उन्होंने कहा था, 'प्रधानमंत्री कुछ घंटों में विधेयक बना सकते हैं। इसके लिए आपके पास कई दिन बीत जाने के बावजूद समय नहीं है।' खरगे ने कहा था कि आरक्षण नीति में कोई बदलाव तब तक नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि ‘देश में अस्पृश्यता की प्रथा बनी रहे। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने क्रीमी लेयर का मुद्दा उठाकर अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों के बारे में नहीं सोचा है। उन्होंने कहा था कि विपक्षी दल इस मुद्दे पर एकजुट हैं।
हालांकि, कांग्रेस के दो मुख्यमंत्रियों- कर्नाटक के सिद्धारमैया और तेलंगाना के रेवंत रेड्डी ने स्थानीय समीकरणों के चलते इस फैसले का स्वागत किया था। कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा था कि पार्टी का नजरिया दिल्ली में नेतृत्व द्वारा तय किया जाएगा। उधर, केंद्रीय मंत्री और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का समर्थन किया है। एनडीए के नेता ने कहा कि एससी-एसटी आरक्षण में जो जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हैं, उन्हें कोटे में कोटा का लाभ दिया जाना चाहिए।
Next Story