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आयुष का विरोध नहीं, भारत सरकार के साथ मिलकर स्थिति सुधारने को तैयार और तत्पर: डॉ शरद अग्रवाल

jantaserishta.com
20 Jun 2023 9:26 AM GMT
आयुष का विरोध नहीं, भारत सरकार के साथ मिलकर स्थिति सुधारने को तैयार और तत्पर: डॉ शरद अग्रवाल
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नई दिल्ली (आईएएनएस)| एलोपैथी और आयुष चिकित्सा पद्धति में कौन श्रेष्ठ है, इसे लेकर गाहे-बगाहे चर्चा होती रहती है लेकिन इस मामले में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने सकारात्मक बयान दिया है। इस मामले में आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ: शरद अग्रवाल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि डॉक्टरों की संस्था आयुष चिकित्सा पद्धति के विरोध में नहीं है। उन्होंने कहा कि हम भारत सरकार की आयुष की स्थिति को सुधारने में मदद करना चाहते हैं। डा. शरद अग्रवाल ने यह विचार द हेल्दी इंडियन प्रोजेक्ट की अंशिमा गुप्ता के साथ बातचीत के दौरान कहे। उन्होंने कहा कि आईएमए क्रॉसपैथी के विरोध में है। एक पद्धति में काम कर रहे लोगों को दूसरी चिकित्सा पद्धति की दवा के बारे में सलाह नहीं देनी चाहिए। अग्रवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई मामले के आधार पर यह साबित होता है कि यह सर्वोच्च न्यायलय के आदेश की अवहेलना है।
चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व करने वाली सबसे प्रमुख संस्था आईएमए लगातार इस बात का विरोध करती रही है कि आयुष चिकित्सकों के एक वर्ग द्वारा कुछ सर्जरी की जाती है साथ ही आधुनिक चिकित्सा की कुछ दवाइयां लेने की भी सलाह दी जाती है। वह कहते हैं कि सरकार का आयुष के प्रति रवैया स्वागतयोग्य है लेकिन जमीनी स्तर पर इसे लागू करने के लिए इसमें सुधार किए जाने की आवश्यकता है। डा. अग्रवाल ने द हेल्दी इंडियन प्रोजेक्ट को कहा कि आईएमए सरकार के साथ मिलकर आयुष के स्तर को बेहतर बनाने के पूरी तरह प्रतिबध्द है।
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बताया कि ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए आईएमए की पहल 'आओ गांव चले' चल रही है। इस अभियान के तहत आईएमए की हर शाखा को एक गांव को गोद लेने के निर्देश दिए गए हैं। इससे गांवों की स्वास्थ्य सेवाओं को उन्नत बनाने में मदद मिलेगी। वह कहते हैं कि केतन देसाई द्वारा 2004 में शुरू किए गए प्रोजेक्ट को फिर से रिलांच किया जा रहा है। कोरोना आपदा के दौरान इस प्रोजेक्ट की गति धीमी हो गई थी।
डॉक्टरों पर लगातार हो रहे हिंसा के मामलों को लेकर डा. अग्रवाल ने कहा कि भारत सरकार को चिकित्सकों की सुरक्षा के लिए एक कानून लाना चाहिए। वह कहते हैं कि अध्ययन कहते हैं कि 75 फीसद डॉक्टर किसी न किसी तरह की हिंसा का सामना करते हैं। इसमें अधिकतर मामले तीमारदार के परिवार के होते हैं। विचारणीय बात है कि कोई भी डॉक्टर डर और तनाव के माहौल में कैसे काम कर सकता है? अगर डॉक्टरों पर लगातार इस तरीके से ही हमले होते रहे तो गंभीर रुप से पीड़ित मरीज को लेने से वह कतराने लगेंगे।
इस साक्षात्कार को हेल्दी इंडियन प्रोजेक्ट की एक वीडियो शो के तहत किया गया है। इसे हाल ही में प्रकाशित किया गया है। इसे द हेल्दी इंडियन प्रोजेक्ट यूट्यूब की मीडिया वेबसाइड पर देखा जा सकता है।
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