निर्मल रानी
भारत शायद दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जहां कन्याओं व महिलाओं का सबसे अधिक गुणगान किया जाता है। यहां तक कि 'कन्या पूजन ' की रीति भी केवल हमारे देश में ही है। हमारी पौराणिक कथाओं में अनेक देवियों की मौजूदगी भी इसी बात का संकेत है कि केवल पुरुष ही देवता नहीं बल्कि महिलायें भी देवियां हो सकती हैं। प्राचीन व मध्ययुगीन इतिहास से लेकर आज तक अवसर मिलने पर महिलाओं ने अनेकानेक क्षेत्रों में अपना लोहा मनवाया है।परन्तु दूसरा कड़वा सच यह भी है कि इसी भारतीय समाज के लोगों ने ही इसी नारी को जितना छला है,उसका जितना शोषण किया है,उसके साथ छल-बल,कपट,मक्कारी की है व उसे मात्र शारीरिक शोषण व हवस का शिकार बनाने की कोशिशें होती रही हैं। नारी शोषण की इसतरह की 'कारगुज़ारियां' केवल अनपढ़ अज्ञानी समाज द्वारा नहीं की जातीं बल्कि इस में प्रायः स्वयं को सम्मानित व प्रबुद्ध कहे जाने वाले लोग भी शामिल पाये जाते हैं।
अलीगढ़ के समीप एक रेल टिकट निरीक्षक द्वारा पिछले दिनों पहले तो एक महिला को उसके दो साल के बच्चे के साथ हमदर्दी दर्शाते हुये उसे प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित डिब्बे की केबिन में सुरक्षा व एकांत के नाम पर बिठाया गया। फिर उसी रेल टिकट निरीक्षक द्वारा अपने एक साथी के साथ मिलकर उसी महिला के साथ चलती ट्रेन में सामूहिक बलात्कार किया गया। ऐसी घटनायें केवल बलात्कार मात्र नहीं होतीं बल्कि ऐसी घटनाओं में बलात्कार जैसे घिनौने अपराध के साथ साथ भरोसे और विश्वास का भी 'क़त्ल' होता है। यहां इंसान के ज़ेहन में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या भविष्य में जब कभी कोई रेल टिकट निरीक्षक सीट उपलब्ध कराने के नाम पर किसी महिला के साथ हमदर्दी दिखाये तो उसे भरोसा करना चाहिए या नहीं। हमारे देश में ऐसे अपराधों की सूची बहुत लंबी है जबकि किसी पुलिस स्टेशन में दारोग़ा या सिपाहियों द्वारा किसी महिला के साथ बलात्कार किया गया या इसकी कोशिश की गयी। कार्यालयों में वरिष्ठों द्वारा अपनी कनिष्ठ महिला कर्मियों पर बुरी नज़र रखना,ढोंगी गुरूओं द्वारा अपनी शिष्याओं के साथ या शिष्यों की बहन बेटियों के साथ कभी उन्हें बहला फुसलाकर यौन सम्बन्ध स्थापित करना तो कभी उनका बलात्कार करना, अनेक नेताओं व अधिकारियों द्वारा दुष्कर्म में सम्मिलित होना जैसी बातें दुर्भाग्यवश हमारे देश की एक हक़ीक़त बन चुकी है।
गत दिनों फ़तेहाबाद के 'जलेबी बाबा ' के नाम से कुख्यात एक साधूवेशधारी का नाम उस समय सुर्ख़ियों में आया जबकि अदालत ने उसे एक नाबालिग़ बच्ची से दो बार बलात्कार करने के जुर्म में 14 वर्ष की सज़ा सुनाई।भगवाधारी 'जलेबी बाबा ' पर 120 महिलाओं के साथ बलात्कार करने का भी आरोप है। धर्म का चोला ओढ़े यह पाखंडी चाय में नशीली सामग्री मिलाकर पहले तो महिलाओं को बेहोश करता फिर नशे की हालत में उनसे बलात्कार कर उनकी वीडीओ बनाता। फिर इसी वीडीओ के बल पर महिलाओं को ब्लैकमेल करता व उनका शारीरिक शोषण करता। इसतरह के दर्जनों दुराचारी बलात्कारी बाबा व नेता आज भी जेल की सलाख़ों के पीछे हैं।
इसी तरह इन दिनों भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध कई महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का मामला सुर्ख़ियां बटोर रहा है। खेल मंत्रालय ने इस मामले की जांच के लिये मशहूर मुक्केबाज़ मैरी कॉम के नेतृत्व में एक जांच कमेटी गठित की है। कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष व सांसद बृजभूषण शरण सिंह महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़नके दोषी हैं या नहीं यह तो जांच कमेटी अपनी रिपोर्ट में बतायेगी परन्तु इस कहावत को भी कैसे नज़र अंदाज़ किया जा सकता है कि 'बिना आग के धुआं नहीं उठता। ' इसी प्रकरण में जब एक पहलवान विनेश फोगाट ने जब यह कहा कि 'यदि मैं मुंह खोलूंगी तो भूचाल आ जायेगा। ' इसके जवाब में बृजभूषण शरण सिंह के इस बयान की भी अनदेखी नहीं की जा सकती जिसमें उन्होंने कहा था कि- 'अगर मैं मुंह खोल दूँगा तो सुनामी आ जाएगी।' अब ज़रा भूचाल और सुनामी जैसे शब्दों व उनके सन्दर्भों पर ग़ौर करें तो पता चलेगा कि यह सब किसी नारियों की इस्मत और आबरू को तार तार करने वाले ही 'गुप्त कोड ' हैं।
इसी प्रकार गत दिनों हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह को मंत्री पद केवल इसीलिये त्यागना पड़ा क्योंकि उनके विरुद्ध एक महिला कोच ने छेड़ छाड़ की शिकायत की थी। संदीप सिंह के विरुद्ध पुलिस में प्राथमिकी भी दर्ज हो गयी है। हालांकि संदीप सिंह ने भी अपना इस्तीफ़ा देते समय स्वयं को बेगुनाह बताते हुये वही कहा कि - 'मेरी छवि ख़राब करने की कोशिश की जा रही है। मुझे उम्मीद है कि मुझ पर लगाए गए झूठे आरोपों की गहन जांच होगी। ' परन्तु यहां भी वही प्रश्न, कि क्या 'बिना आग के भी धुआं उठ सकता है ? संदीप सिंह और बृजभूषण शरण सिंह केवल आरोपी हैं या दोषी भी, इसका फ़ैसला भी जल्द होगा। परन्तु जहां तक अपने को बेगुनाह बताने का प्रश्न है ख़ासकर महिला शोषण या यौन उत्पीड़न को लेकर तो ऐसी घटनाओं के पिछले अनुभव तो यही बता रहे हैं कि आज तक किसी भी साधुवेश या सफ़ेदपोश दरिंदे ने अपनी दरिन्दिगी तब भी नहीं स्वीकार की जबकि उसे सुबूतों व गवाहों के बयान के आधार पर बलात्कारी मानते हुये अदालत द्वारा सज़ा सुना दी गयी। ऐसे ही जेल काटने वाले ढोंगी व बलात्कारी बाबाओं के अंधभक्त तो सज़ा निर्धारित होने के बावजूद अभी भी अपने 'गॉड फ़ादर्स ' को बेगुनाह और साज़िश का शिकार बताते आ रहे हैं।
बड़े आश्चर्य व दुर्भाग्य की बात है कि कहाँ तो हम स्वयं को विश्व गुरु बता कर गौरवान्वित महसूस करते हैं, संस्कारी,चरित्रवान,जनहितैषी यहाँ तक कि 'विश्व का कल्याण हो ' जैसी विश्व बंधुत्व आधारित शिक्षा हमें आरतियों के बाद सुबह शाम दी जाती है। धर्म की जीत व अधर्म के नाश का जयघोष किया जाता है दूसरी और यह सभी 'जयघोष ' हमें उस समय केवल पाखण्ड भी नज़र आने लगते हैं जब हम इसी कन्या पूजक समाज में 'दरिंदों' की भरमार देखते हैं।