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अफगानिस्तान में फिर से तालिबान-राज लौटने की आशंका बढ़ती जा रही है
अफगानिस्तान में फिर से तालिबान-राज लौटने की आशंका बढ़ती जा रही है. तख्तापलट की तैयारी के बीच तालिबान के आतंकी काबुल से 60 किलोमीटर दूर तक पहुंच चुके हैं जिससे ना सिर्फ अफगानिस्तान में आतंक का राज कायम होगा, बल्कि भारत में भी आतंकवाद की फिक्र बढ़ती जाएगी. यहां भारत की चिंता ये भी है कि वहां तालिबान राज कायम होने से अफगानिस्तान का विकास भी रुक जाएगा, जिसकी नींव हिंदुस्तान ने मजबूत की है.
अफगानिस्तान में एक-एक इंच पर कब्जे की जंग तेज़ हो गई है. तालिबान का उन्माद खूनी युद्ध में तब्दील हो चुका है. बॉर्डर, शहर, गांव यहां तक कि वीरान पहाड़ों पर भी संघर्ष चरम पर है. तालिबान और अफगान मिलिट्री हर मोर्चे पर आमने-सामने हैं.
अप्रैल महीने में जारी इस संघर्ष में अब तक 3600 नागरिकों की मौत हुई है. अफगान मिलिट्री के 1000 जवान और अफसर भी मारे गए हैं. 3 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. इस बीच तालिबान ने दावा किया कि उसने अफगानिस्तान के 85 फीसदी हिस्से पर कब्जा कर लिया है. जबकि अफगान सरकार कहती है कि करीब एक तिहाई इलाके पर तालिबान का कब्जा है.
अफगानिस्तान के 421 जिलों में कम से कम आधे पर तालिबान का कब्जा
हालांकि तालिबान के दावों और उसके ग्राउंड एक्शन को जब हकीकत की तराजू पर तोलेंगे तो एक बात बिल्कुल साफ हो जाएगी कि वो हर मोर्चे पर मजबूत पोजिशन लिए हुए है. सत्ता के संघर्ष में तालिबान का पलड़ा भारी है. अफगानिस्तान के 20 राज्यों के 421 जिलों में कम से कम आधे पर तालिबान का कब्जा है. कांधार, हेरात, हिलमंद, बदक्शां, गजनी, फरयाब समेत 11 प्रांतों में तालिबान की तरफ से प्रांतीय सरकारों के ढांचे को खत्म करने की कोशिश जारी है. कांधार के बाद मजार-ए-शरीफ के पास भी तालिबान की पकड़ बढ़ रही है
भारत ने भी कांधार स्थित वाणिज्यिक दूतावास से अपने स्टाफ को वापस बुला लिया है. इस दूतावास की रक्षा अब अफगानिस्तान के कमांडो कर रहे हैं.
बहरहाल, काबुल स्थित भारतीय दूतावास पूरे हालात पर लगातार नजर रखे हुए है. नई दिल्ली को बदलते हालात की पल-पल की जानकारी दी जा रही है. लेकिन यहां फिक्र बड़ी ये है कि जिस अफगानिस्तान को संवारने में भारत में करोड़ों अरबों डॉलर खर्च किए, वो एक बार फिर आतंक की भेंट चढ़ जाएगा क्या? अफगानिस्तान में हिंदुस्तान के जो प्रोजेक्ट्स तैयार हो रहे हैं, वो सब एक बार फिर बर्बाद हो जाएंगे क्या?
भारत ने किया करीब तीन अरब डॉलर निवेश
आपको बता दें कि वर्ष 2001 में अफगानिस्तान के तालिबान मुक्त होने के बाद से भारत ने वहां करीब तीन अरब डॉलर निवेश किया. संसद भवन, स्पोर्ट्स स्टेडियम से लेकर पूरे देश में सड़कों और पुलों का निर्माण कराया. सूदूर गांवों तक भारत की मदद से बिजली पहुंचाई गई. भारत की मदद से 34 प्रांतों में तकरीबन 500 छोटी-बड़ी परियोजनाएं या तो तैयार हो चुकी हैं, या फिर उन पर काम जारी है.
इसकी वजह से अफगानिस्तान में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई. लेकिन एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी ओर चीन ने पटरी पर लौटते अफगानिस्तान के खिलाफ तालिबान को भड़काया और फिर से अफगानिस्तान को आतंक की आग में झोंकने की साजिश रच डाली.
क्या है भारत की चिंता
अब भारत की चिंता यही है कि पाकिस्तान समर्थित तालिबान के सत्ता पर काबिज होने से उन परियोजनाओं को उसी तरह से नुकसान पहुंचाया जा सकता है जैसे वर्ष 1996 से 2001 के बीच पहुंचाया गया था.तब तालिबान ने भारत की तरफ से बनाए गए बच्चों के अस्पताल तक को भी नहीं बख्शा था. इस बार तो खतरा भारत के कई अहम प्रोजेक्ट्स पर है, जो तालिबान के युद्ध के कारण अधर में लटक सकता है.
इनमें सबसे अहम परियोजना ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान के देलारम तक की सड़क परियोजना है..
इस 218 किलोमीटर लंबी सड़क को पूरी तरह से भारत की मदद से बनाया जा रहा है, जो आने वाले दिनों में अफगानिस्तान को सीधे चाबहार बंदरगाह से जोड़ेगी.
इसके अलावा पूरे काबुल को पेय जल उपलब्ध कराने वाली शहतूत डैम परियोजना का काम भी लटक सकता है.
भारत पहले ही सलमा डैम का निर्माण कर चुका है जिससे 42 मेगावाट बिजली बनती है और 75 हजार हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होती है. इसके अलावा भारत की मदद से कई हॉस्पिटल बनाए गए. कई पावर ट्रांसमिशन स्टेशन, स्माल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स चलाए भी जा रहे हैं.
अमेरिका ने भी लिया बड़ा कदम
अब इन सब पर एक बार फिर तालिबानी आतंक का खतरा मंडरा रहा है. यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि तालिबान-अफगान संघर्ष के बीच अमेरिका ने भी अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ दिया है.31 अगस्त तक वहां से सभी अमेरिकी सैनिकों की वतन वापसी हो जाएगी. अमेरिका ने ये कड़ा फैसला पिछले 20 वर्षों में 2500 सैनिकों को खोने और करीब 10 खरब डॉलर गंवाने के बाद किया है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि काबुल के करीब आते तालिबान का अगर अफगानिस्तान पर राज हो जाता है तो भारत के भारी-भरकम निवेश का क्या होगा?
इस बार अफगान संघर्ष में तालिबान की रणनीति भी अलग दिख रही है. एक ओर तालिबान केंद्र पर सीधे हमले की बजाय किनारों से कब्जा करते हुए धीरे धीरे काबुल की ओर बढ़ रहे हैं. दूसरा रूढ़िवादी सोचवाले अफगानियों पर भी जबर्दस्त पकड़ बना ली है. तीसरा पिछले 20 सालों में तालिबान ने कूटनीति भी सीख ली है.
इसीलिए अफगानिस्तान पर सत्ता की जंग के बीच तालिबान अंतरराष्ट्रीय समुदायों के बीच अपना प्रतिनिधिमंडल भी भेज रहा है. अपने चेहरे को बदलने का भरोसा दे रहा है. लेकिन तालिबान पर यकीन करना मुश्किल है क्योंकि इसके क्रूर कानून और आचरण से दुनिया वाकिफ है.
इन हालात में अफगानिस्तान पर 20 साल बाद अगर फिर से तालिबान का कब्जा हो जाता है तो ये भारत समेत तमाम आतंकवाद विरोधी देशों के लिए चिंता का सबब होगा क्योंकि एक तरफ तो इससे भारत का भारी भरकम निवेश डूबेगा. दूसरी ओर पाकिस्तान के रास्ते आतंकवाद और नशे की सप्लाई भी बढ़ जाएगी.
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