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राष्ट्रपति भवन में हैं 340 कमरे, खंभों पर बनाया गया है घंटियों का डिजाइन

Nilmani Pal
18 July 2022 1:48 AM GMT
राष्ट्रपति भवन में हैं 340 कमरे, खंभों पर बनाया गया है घंटियों का डिजाइन
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दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन देखने में भव्य और सुंदर तो लगता ही है. लेकिन राष्ट्रपति भवन के अंदर भी बहुत सी खूबियां हैं. राष्ट्रपति भवन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति का निवास स्थान है. पहले ब्रिटिश वायसराय का सरकारी आवास था. इसका निर्माण उस वक्त किया गया, जब साल 1911 में तय हुआ कि भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट किया जाएगा. भवन के निर्माण में 17 साल लग गए.

26 जनवरी 1950 को इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की स्थाई संस्था के रूप में बदल दिया गया. राष्ट्रपति भवन चार मंजिला है और इसमें 340 कमरे हैं. राष्ट्रपति भवन बनाने के लिए लगभग 45 लाख ईंटें लगाई गई थीं. राष्ट्रपति भवन में इमारत के अलावा मुगल गार्डन और कर्मचारियों का भी आवास है. राष्ट्रपति भवन का निर्माण वास्तुकार एडविन लैंडसीयर लुट्येन्स ने किया था.

राष्ट्रपति भवन के अंदर मौजूद दरबार हॉल में 33 मीटर की ऊंचाई पर 2 टन का झाड़फानूस लटका हुआ है. अंग्रजों के शासन में दरबार हॉल को सिंहासन कक्ष कहा जाता था. इसमें दो सिंहासन वायसराय और वायसरीन के लिए होते थे. हालांकि, अब इसमें सिर्फ एक साधारण कुर्सी होती है, जो राष्ट्रपति के लिए होती है. 5वीं शताब्दी के गुप्त काल से जुड़ी आशीर्वाद की मुद्रा वाली गौतमबुद्ध की मूर्ति है. इस हॉल की खासियत यह है कि अगर राष्ट्रपति की कुर्सी से एक लकीर खींची जाए तो वह सीधी राजपथ होते हुए दूसरे छोर पर स्थिति इंडिया गेट के बीचोबीच जाकर मिलती है. इस हॉल का इस्तेमाल राजकीय समारोह, पुरस्कार वितरण के लिए किया जाता है.

राष्ट्रपति भवन की सबसे बड़ी पहचान सेंट्रल डोम है. ये एतिहासिक सांची स्तूप की याद दिलाता है. ये गुंबद फोर कोर्ट के 55 फुट ऊपर भवन के मुकुट की तरह विराजमान है.

राष्ट्रपति भवन में खंभों में घंटियों का डिजाइन बना हुआ है. इन्हें डेली ऑर्डर भी कहा जाता है. अंग्रेज ऐसा मानते थे कि अगर घंटियां स्थिर रहें तो सत्ता स्थिर और लंबे वक्त तक चलेगी. इसलिए बड़ी संख्या में इन्हें यहां बनाया गया था लेकिन यह भवन बनते ही अंग्रेजों की सत्त डगमगाने लगी थी.

मारबल हॉल में मौजूद है चांदी का सिंहासन

राष्ट्रपति भवन के मार्बल हॉल में किंग जॉर्ज पंचम और महारानी मेरी की प्रतिमाएं हैं. पूर्व वायसरायों और गवर्नर जनरलों के चित्र हैं. महारानी का इस्तेमाल किया गया चांदी का सिंहासन भी है. ब्रिटिश राजमुकुट की पीतल की प्रतिकृति भी रखी गई है.

नॉर्थ ड्राइंग रूम में होती है दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात

नॉर्थ ड्राइंग रूम में राष्ट्रपति दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात करते हैं. ड्राइंग रूम में दो तस्वीरें खास हैं. जिसमें एसएन घोषाल की 14 अगस्त को सत्ता हस्तांतरण की तस्वीर है और ठाकुर सिंह के जरिए प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल के शपथ ग्रहण समारोह की तस्वीर.

इस हॉल में लगे हुए हैं पूर्व राष्ट्रपतियों के चित्र

इस हॉल में 104 लोगों के बैठने की जगह है. इसे पहले स्टेट डायनिंग हॉल कहते थे. बाद में इसे बैंक्विट हॉल कहा जाने लगा. पूर्व राष्ट्रपतियों के चित्र इस हॉल में दीवारों पर लगे हुए हैं.

क्या है येलो और ग्रे ड्राइंग रूम?

येलो ड्राइंग रूम का इस्तेमाल छोटे कार्यक्रमों के लिए किया जाता है. जैसे किसी अकेले मंत्री के शपथ-ग्रहण हो या मुख्य निर्वाचन आयुक्त का शपथ ग्रहण हो, इस तरह के छोटे राजकीय समारोह के लिए इसका इस्तेमाल होता है. इसके साथ ही एक ग्रे ड्राइंग रूम है, जिसका इस्तेमाल अतिथियों के स्वागत के लिए किया जाता है.

500 कारिगरों ने बनाए थे अशोक हॉल में लगे कार्पेट

अशोक हॉल में हर तरह के बड़े समारोह किए जाते हैं. इसकी छत पर देश ही नहीं दूसरे देशों के सम्राटों के तौर-तरीकों की झलक दिखती है. छत पर ईरान साम्राज्य के सम्राट फतेह अली शाह की विशाल चित्रकारी अशोक हॉल की छत का केंद्र है, जिनके इर्द-गिर्द 22 राजकुमार शिकार करते नजर आ रहे हैं. बताया जाता है कि लेड विलिंगटन ने निजीतौर पर इटली के मशहूर चित्रकार Tomasso Colonnello को चित्रकारी का जिम्मा दिया था. अशोका हॉल में लगे कार्पेट 500 कारीगरों की दो साल की मेहनत के बाद तैयार किए गए थे.

मुगल गार्डन है आकर्षण का केंद्र

राष्ट्रपति भवन का मुगल गार्डेन 15 एकड़ में फैला है जो हमेशा से लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. यहां के गार्डेन में ब्रिटिश और इस्लामिक दोनों तरह की झलक मिलती है. इस गार्डन को बनाने के लिए एडविन लुटियंस ने जन्नत के बाग, कश्मीर के मुगल गार्डन के अलावा भारत और प्राचीन इरान के मध्यकाल के दौरान बनाए गए राजे रजवाड़ों के बागीचों का भी अध्ययन किया था. यहां पेड़ लगाने का काम 1928 में शुरू हुआ जो करीब एक साल तक चला. यहां के फूलों के नाम मदर टेरेसा, राजाराम मोहन राय, अब्राहम लिंकन, जॉन एफ कैनेडी, क्वीन ऐलिजा बेथ, जवाहर लाल नेहरू के अलावा महाभारत के अर्जुन, भीम के समेत अन्य महान लोगों के नाम से जाने जाते हैं.

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