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हिन्दुस्तान के 'आंगन' में दुनिया की महाशक्तियां, वीरान द्वीप पर भारत का खुफिया सैन्य ठिकाना? अल जजीरा की रिपोर्ट से खलबली

jantaserishta.com
9 Aug 2021 4:39 AM GMT
हिन्दुस्तान के आंगन में दुनिया की महाशक्तियां, वीरान द्वीप पर भारत का खुफिया सैन्य ठिकाना? अल जजीरा की रिपोर्ट से खलबली
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हिन्द महासागर के अनंत विस्तार के बीच एक सूने से टापू पर भारत का खुफिया नौसैनिक अड्डा! इस सैन्य अड्डे का इस्तेमाल भारत समंदर में अपनी ताकत, रुतबा और वर्चस्व बढ़ाने के लिए करने वाला है. कुछ ही दिन पहले कतर स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यूज चैनल अल जजीरा ने अपने रिसर्च के आधार पर ये दावा कर समंदर में भारत की दमदार सैन्य मौजूदगी का इशारा किया है.

अल जजीरा ने दावा किया है कि भारत मॉरीशस से 1100 किलोमीटर दूर अगालेगा द्वीप में अपना नौसैनिक अड्डा बना रहा है. इस संस्थान ने सैटेलाइट इमेज, मौके पर चल रही निर्माण गतिविधियों के आधार पर दावा किया है कि यहां तेजी से निर्माण कार्य चल रहा है. यहां भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर का हवाई पट्टी बना रहा है ताकि कोई भी जहाज आसानी से उतर सके.
अगालेगा (Agalega) हिन्द महासागर (Indian Ocean) में स्थित मॉरीशस के स्वामित्व का वाला एक छोटा सा द्वीप है. अगालेगा मुख्य मॉरीशस द्वीप से लगभग 1000 किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित है. ये 12 किलोमीटर लंबा और लगभग 1.5 किलोमीटर चौड़ा है. यहां की आबादी बहुत ही कम है. एक अनुमान के अनुसार यहां मात्र 300-350 लोग रहते हैं.
खास बात यह है कि अगालेगा द्वीप जहां स्थित है उसी क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य अड्डा डिएगो गार्सिया, चीन का सैन्य अड्डा जिबूती ( Djibouti), फ्रांस का मिलिट्री बेस रियूनियों मौजूद है. ये सभी सैन्य अड्डे समंदर में हैं. क्षेत्रफल में महज कुछ किलोमीटर के ये मिलिट्री स्टेशन अपार ताकत समेटे हुए हैं. इसकी असली ताकत वहां की सेना और राष्ट्राध्यक्षों को ही पता है. दुनिया भर की एजेंसियां इसकी शक्ति के बारे में महज अनुमान भर लगाती हैं. मतलब स्पष्ट है कि भारत के आंगन (बैकयार्ड) हिन्द महासागर का व्यापक रूप से सैन्यीकरण हो चुका है. यह दुनिया का वो समुद्री क्षेत्र है जहां से होकर विश्व के दो तिहाई ईंधन की सप्लाई होती है.
अगर अल जजीरा का दावा सही है तो इस भू-रणनीतिक परिपेक्ष्य में अगालेगा में भारत के सैन्य प्रतिष्ठान का होना सामरिक क्षेत्र में इंडिया का ऐसा दखल है जो हिंद महासागर में शक्ति संतुलन (बैलेंस ऑफ पावर) को भारत के पक्ष में करने की क्षमता रखता है.
कतर के मीडिया हाउस अल जजीरा की मानें तो अगालेगा द्वीप पर भारत खुफिया सैन्य ठिकाना बना रहा है. अल जजीरा ने नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के रिसर्च फेलो अभिषेक मिश्रा के हवाले से दावा किया है कि 'यह भारत के लिए एक इंटेलिजेंस फैसिलिटी है, इसके जरिए भारत दक्षिण पश्चिम हिंद महासागर और मोजाम्बिक चैनल में अपनी हवाई और नौसैनिक उपस्थिति दर्ज कराएगा.'
दावा किया गया है कि भारत यहां 3 किलोमीटर लंबी हवाई पट्टी का निर्माण कर रहा है. अभिषेक मिश्रा ने अल जजीरा को बताया है कि उन्हें पता चला है कि इस अड्डे का इस्तेमाल भारत अपने जहाजों के लिए स्टेशन के रूप में करेगा, इसके अलावा रनवे का इस्तेमाल P-8I एयरक्राफ्ट करेंगे. बता दें कि P-8I भारत का समुद्री पैट्रोल एयरक्राफ्ट है. इसका इस्तेमाल सर्विलांस, एंटी सरफेस और एंटी सबमरीन गतिविधियों में किया जा सकता है. इस द्वीप के किनारों पर जहाजों और बोट के रुकने के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जा रहा है.
अल जजीरा के अनुसार अगालेगा से मिली तस्वीरें और डाटा बताते हैं कि ये द्वीप पिछले दो सालों में निर्माण संबंधी गतिविधियों का केंद्र बन गया है. यहां अस्थायी कैंप में सैकड़ों मजदूर रहते हैं जो यहां निर्माण संबंधी कार्यों में जुड़े हैं. अलजजीरा ने सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर अपनी रिपोर्ट को सही ठहराया है.
अगालेगा पर अल जजीरा का दावा जो भी हो. लेकिन हिन्द महासागर के इस विरान पड़े द्वीप पर भारत की एंट्री साल 2015 में हुई. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉरीशस की यात्रा पर थे. तब दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे. उसमें एक समझौता इस द्वीप को विकसित करना भी था. इस समझौते के अनुसार भारत अगालेगा द्वीप पर समुद्री और हवाई परिवहन की सुविधाओं में बढ़ोतरी करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करेगा.
आज तक की खबर के मुताबिक समझौते में लिखा है कि भारत के काम से इस दूरस्थ द्वीप में रहने वाले लोगों की स्थिति में काफी सुधार होगा. बता दें कि इस द्वीप की आबादी मात्र 300 है. इस समझौते की ही अगली पंक्तियां हैं, "ये सुविधाएं मॉरीशस के सैन्य बलों की इस बाहरी द्वीप में उनके हितों की रक्षा करने की क्षमता में इजाफा करेगी."
इन शब्दों का अर्थ द्वीप का विकास एक सैन्य अड्डे के रूप में करना निकाला जा रहा है वर्ना महज 300 लोगों के लिए 3 किलोमीटर लंबी हवाई पट्टी बनाने की जरूरत तर्क पर खरी नहीं उतरती. बता दें कि भारत अगालेगा को विकसित करने के लिए भारी भरकम 630 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है.
हालांकि भारत और मॉरीशस ने कभी स्वीकार नहीं किया है कि अगालेगा हिन्द महासागर की गोद में विकसित हो रहा एक सैन्य अड्डा है. अल जजीरा की रिपोर्ट को खारिज करते हुए मॉरीशस की सरकार ने स्पष्ट किया कि उसने अगालेगा द्वीप पर भारत मिलिट्री बेस बनाने की इजाजत नहीं दी है. प्रधानमंत्री प्रवीण जगन्नाथ के कम्युनिकेशन सलाहकर केन एरिन ने कहा कि अगालेगा में भारत और मॉरीशस के बीच सैन्य अड्डा बनाने के लिए कोई समझौता नहीं है.
हालांकि एरिन ने माना कि अगालेगा में भारत का दो प्रोजेक्ट पर काम जारी है जिसके लिए दोनों देशों के बीच 2015 में हस्ताक्षर हुए थे. इनमें से एक 3 किलोमीटर लंबी हवाई पट्टी और दूसरा जेट्टी का निर्माण शामिल है. बता दें कि जेट्टी का इस्तेमाल पानी जहाज के ठहरने के लिए किया जाता है.
वैसे भारत के नजरिए से अगालेगा की सामरिक स्थिति काफी महत्वपूर्ण है. सबसे पहले अगालेगा द्वीप का स्वामित्व उस देश के पास है जो भारत का मित्र राष्ट्र है. मॉरीशस और भारत के बीच न सिर्फ आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते हैं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक रिश्ते रहे हैं. लगभग 150 साल पहले पूर्वांचल से अंग्रेजों के मजदूर के रूप में मॉरीशस गए भारतीयों ने ही इस देश की सींचा और संवारा है. भोजपुरी यहां ऐसे ही बोली जाती है जैसे बनारस और बिहार में.
अब अगर अगालेगा की भौगोलिक स्थिति पर नजर डालें तो दुनिया के मानचित्र पर हिंद महासागर में छिपा ये द्वीप यूं तो नंगी आंखों से नजर भी नहीं आता है. लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति महत्वपूर्ण है.
भारत के दक्षिणी छोर से दक्षिणी-पश्चिम भारतीय महासागर के मध्य में पड़ने वाले इस द्वीप के दक्षिण में रियूनियों द्वीप है. इस द्वीप पर फ्रांस का कब्जा है और उसने यहां पर मिलिट्री बेस बना रखा है. अगालेगा के पूर्व में अमेरिका सैन्य अड्डा डिएगो गार्सिया है. डिएगो गार्शिया के ऊपर ही मालद्वीव है, जहां चीन बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है. लेकिन भारत की असल चुनौती है जिबूती में मौजूद चीन का सैन्य अड्डा.
हिन्द महासागर को भारत का आंगन कहा जाता है. कूटनीतिक और राजनीतिक शब्दावली में हिन्द महासागर भारत का बैकयार्ड कहलाता है. इस समंदर से भारत का मजबूत राजनीतिक, आर्थिक और यहां तक कि सामाजिक रिश्ता है.
देश के विदेशी व्यापार का बड़ा हिस्सा इसी रास्ते से होता था और अभी भी होता है. लेकिन भारत का ये आंगन चीन को खुली आंख नहीं सुहाता है. भारत ने जब 2015 में अगालेगा को विकसित करने के लिए मॉरीशस के साथ समझौता किया था तो उसके कुछ दिन बाद चीन ने कहा था कि एक खुले समुद्र और समुद्र के अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों के लिए आंगन (बैकयार्ड) शब्द का इस्तेमाल करना बहुत अधिक उचित नहीं है.
चीन के रक्षा विशेषज्ञ झाओ यी ने कहा था कि भारत यह मानता है कि हिंद महासागर उसका आंगन है, तो कैसे अमेरिका, रूस और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाएं हिंद महासागर में मुक्त आवाजाही करती हैं? लेकिन चीन ये लॉजिक तब भूल जाता है जब दक्षिण चीन सागर में भारत के युद्धपोत गश्ती अभियान पर या युद्धाभ्यास के लिए जाते हैं और उसे मिर्ची लगने लगती है.
चीन भले ही भारत की वाजिब महात्वाकांक्षाओं पर सवाल उठाता हो लेकिन उसे अपने भू-भाग से बाहर अपनी मिलिट्री ताकत का विस्तार करने में जरा भी गुरेज नहीं है. साल 2017 में चीन ने अपनी जमीन से लगभग 6000 किलोमीटर दूर अफ्रीकी देश जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य ठिकाना बनाने की पहल शुरू की.
'अफ्रीका का सिंगापुर' बनने की चाह में इस अफ्रीकी देश ने अपनी जमीन कई देशों को सैन्य ठिकाना बनाने के लिए दे दिया है. यहां अमेरिका, फ्रांस और जापान पहले ही मिलिट्री बेस स्थापित कर चुके हैं. चीन इस रेस में सबसे बाद में शामिल हुआ है. जिबूती भौगोलिक रूप से हॉर्न ऑफ अफ्रीका में मौजूद है. लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति एक व्यस्त जलीय मार्ग पर है. यहां से भारत समेत दुनिया के कई जहाज माल लेकर गुजरते हैं. लिहाजा यहां से विश्व के कई जहाजों की निगरानी की जा सकती है.
जिबूती में चीन ने कई सैन्य निर्माण किए हैं. चीन ने यहां लगभग एक वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में किलेबंदी की है. यहां पर 1 से 2 हजार चीनी नौसैनिक हमेशा मौजूद रहते हैं. चीन ने यहां 23 हजार वर्गफीट का तहखाना बनाया है. रहस्य और गोपनीयता के आवरण में हुए निर्माण के बाद जो छन छनकर जानकारी आई है उसके अनुसार चीन ने यहां एक रनवे बनाया है. इसके अलावा यहां एयर ट्रैफिक कंट्रोल, अस्पताल जैसी सुविधाएं हैं.
रिपोर्ट के अनुसार यहां पर चीन के कई एयरक्राफ्ट मौजूद रहते हैं. इसके अलावा चीन यहां न्यूक्लियर सबमरीन को भी लाने की क्षमता रखता है. जिबूती से भारत की दूरी 3200 किलोमीटर के आसपास है. सड़क मार्ग से ये दूरी भले ही लंबा फासला लगती हो लेकिन सुपर सोनिक विमानों के दौर में आसमान में इस दूरी को कुछ ही मिनटों, घंटों में तय किया जा सकता है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि जिबूती चीन द्वारा भारत को हिन्द महासागर क्षेत्र में घेरने के लिए बनाए जा रहे स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स का ही विस्तार है. स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति के तहत ही चीन पाकिस्‍तान के ग्‍वादर, श्रीलंका के हंबनटोटा, सेशेल्‍स, मॉलदीव, बांग्‍लादेश और म्यांमार में अपने बंदरगाह, सैन्य अड्डे का निर्माण कर रहा है. इसकी अगली कड़ी जिबूती है.
अगालेगा से ही कुछ दूरी पर डिएगो गार्सिया है. बता दें कि यूं तो डिएगो गार्सिया मॉरीशस का द्वीप है. लेकिन इस वक्त इस पर ब्रिटेन का कब्जा है. ब्रिटेन ने 1960 के दशक में इस द्वीप को अमेरिका को लीज पर दे दिया है. नए समझौते के अनुसार अमेरिका 2036 तक इस द्वीप का उपयोग सैन्य उद्देश्य के लिए कर सकता है. डिएगो गार्शिया द्वीप का इस्तेमाल अमेरिका की नौसेना और वायुसेना बड़े पैमाने पर करती है. पूर्वी अफ्रीका, पूर्वी एशिया और दक्षिण एशिया के मध्य में स्थित होने के कारण यह द्वीप अमरीकी नौ सैनिकों के लिए एक चौकी जैसा काम करता है. 1991 का खाड़ी युद्ध, फिर 1998 में इराक युद्ध और 2001 के दौरान अफगानिस्तान में हमले के लिए अमेरिका के कई अभियान से ही ऑपरेट हुए.
अगर कहा जाए कि अपनी जमीन से दूर अमेरिका इस द्वीप का इस्तेमाल दुनिया के देशों पर दादागिरी दिखाने के लिए करता है तो गलत न होगा. यूं तो अमेरिका से भारत के संबंध अच्छे हैं लेकिन अपने पास के जलीय क्षेत्र में किसी भी महाशक्ति को बिना चेक एंड बैलेंस के छोड़ देना भारत जैसी उभरते विश्व ताकत के लिए अच्छी रणनीति नहीं कही जा सकती है.
इस समंदर में अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे सुपर पावर की मौजूदगी के बाद भारत हिन्द महासागर के इस पावर गेम से बाहर नहीं हो सकता. क्योंकि ये हमारा बैकयार्ड है. समय की मांग है कि भारत अपने आंगन में चल रहे सामरिक गठजोड़, युद्धाभ्यास, व्यापार की न सिर्फ जानकारी रखे बल्कि इसमें लीड रोल भी निभाए.
अगालेगा से भारत अगर मिलिट्री बेस का निर्माण करता है तो भारत हिन्द महासागर में अपने सहयोगी राष्ट्रों जैसे फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ संयोजन बिठा सकता है और इस जल क्षेत्र का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकता है.
भारत ने इसकी शुरुआत भी कर दी है. भारतीय नौसेना ने कुछ दिन पहले फ्रांस के रियूनियों द्वीप पर फ्रांस के साथ संयुक्त गश्ती अभियान चलाया था.
इसके अलावा भारत हिन्द महासागर से गुजरने वाले देश के व्यावसायिक पोतों को भी सुरक्षा प्रदान कर सकेगा. समुद्री व्यापार के दौरान भारत के जहाजों को अक्सर समुद्री डकैतों की चुनौतियों से जूझना पड़ता है.
अगालेगा से भारत को एक और अहम फायदा जो मिल सकता है वो है सर्विलांस और शक्ति संतुलन का. अगालेगा से भारत इस मार्ग से गुजरने वाले चीनी जहाजों, युद्धपोतों और पनडुब्बियों पर नजर रख सकता है. चीन दक्षिण अफ्रीकी व्यावसायिक मार्ग का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर सकता है. इसी रूट पर चीन का ऊर्जा बाजार टिका है. चीन अगर जिबूती से भारत पर नजर रखने की जुर्रत करता है तो भारत अगालेगा से उसके इस कदम को काउंटर कर सकता है.
विस्तारवादी चीन की कुत्सित महात्वाकाक्षाएं न सिर्फ भारत के साथ देश के उत्तर और पूर्वी सीमा पर टकरा रही है, बल्कि चालबाज चीन समंदर में भी अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है. अगर अगालेगा की कल्पना सच है तो इससे चीन की इस विस्तारवादी और साम्राज्यवादी सोच का माकूल और खरा प्रतिकार किया जा सकेगा.


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