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कार्यकर्ता ने लिखा शिकायती पत्र...नीचे से ऊपर तक पार्टी में मच गई खलबली...जानें क्या है पूरा माजरा

jantaserishta.com
13 March 2021 5:43 PM GMT
कार्यकर्ता ने लिखा शिकायती पत्र...नीचे से ऊपर तक पार्टी में मच गई खलबली...जानें क्या है पूरा माजरा
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फाइल फोटो 

शिकायती पत्र

किसी राजनीतिक दल का एक कार्यकर्ता अर्से से अपने आप को उपेक्षित अनुभव कर रहा था। जब पानी नाक तक पहुंच गया और उसका दम घुटने लग गया तो उससे बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने पहला काम यह किया कि अपनी पार्टी के अध्यक्ष को एक पत्र लिख भेजा। नीचे से ऊपर तक खलबली मच गई, क्योंकि जिसे वह पत्र बता रहा था, वह वास्तव में शिकायती पत्र था। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता एक साथ उस पर झपट पड़े। एक सीनियर नेता, जो आलाकमान की नाक के बाल भी कहे जाते थे, उस कार्यकर्ता को हड़काते हुए बोले, 'तुमने यह पत्र क्यों लिखा? लिखने से पहले मुझसे परामर्श कर लेना चाहिए था। अध्यक्ष जी को बहुत बुरा लगा है। तुम पर अनुशासनहीनता की कारवाई होनी तय समझो।'

यह दुनिया की रीति है। हर बड़ा चाहता है कि उससे छोटा कोई भी कदम उठाने से पहले उससे सलाह- मशविरा जरूर कर लिया करे। सरकारी सेवा में तो थ्रू प्रॉपर चैनल के विरुद्ध चलना आचरण नियमावली के प्रतिकूल माना जाता है। यदि किसी अधीनस्थ कर्मचारी को अपनी बात कहनी होती है तो इसके लिए उचित माध्यम का अनुपालन करना होता है।
कार्यकर्ता को अपनी आवाज ऊपर तक पहुंचाने के लिए बीच वालों की लेनी होती है अनुमति
एक बार किसी दफ्तर में आग लग गई। चूंकि आग बाहर लगी हुई थी, इसलिए उसे सबसे पहले साहब के कमरे के बाहर बैठने वाले चतुर्थ श्रेणी कर्मी ने देखा। वह बारी- बारी साहब और फिर बड़े साहब को मोबाइल मिलाता रहा, लेकिन दौरे पर निकले साहब लोगों का फोन नहीं उठा। दिक्कत यह थी कि उनके आदेश के बिना किसी भी बाहरी संस्था से न तो सीधे संपर्क किया जा सकता था और न ही उसे बुलाया जा सकता था। इसी उधेड़बुन में आधा दफ्तर जल गया। राजनीति का क्षेत्र भी कुछ-कुछ ऐसी ही नौकरशाही जैसा हो चला है। चाहे पूरी पार्टी का सत्यानाश हो जाए, आग लग जाए, लेकिन जमीनी कार्यकर्ता को अपनी आवाज ऊपर तक पहुंचाने के लिए भी कुछ बीच वालों की अनुमति लेनी होती है।
वह साधारण कार्यकर्ता पहले से ही चिढ़ा बैठा था। उसकी पार्टी में सुनी नहीं जा रही थी। लिहाजा उसने वरिष्ठ नेता से ही पलट कर सवाल कर दिया, 'मैं पत्र क्यों नहीं लिख सकता? क्या पत्र व्यवहार के लिए भी आप जैसे लोगों की परमीशन चाहिए!' उस वरिष्ठ नेता ने कार्यकर्ता की शिकायत को घुमाकर सीधा संविधान के हवाले कर दिया कि हां, चाहिए। पार्टी का संविधान तुम्हें ऐसा करने की इजाजत नहीं देता। कार्यकर्ता ने प्रतिप्रश्न किया, 'कहां है पार्टी का संविधान। मैंने तो कभी देखा नहीं। यहां तो सब कुछ ऊपर-ऊपर तय हो जाता है। आज दशकों बीत गए। अपनी पार्टी में एक चुनाव तक नहीं हुआ। इसीलिए हम हर चुनाव हार जाते हैं।'
साधारण कार्यकर्ता हो तो उस जैसा ही आचरण करना भी सीखो
इस पर वरिष्ठ नेता ने उसे डपटते हुए कहा, 'ज्यादा न बोलो। अगर पार्टी में बने रहना है तो अपने मुंह पर ताला लगाना सीखो। साधारण कार्यकर्ता हो तो उस जैसा ही आचरण करना भी सीखो। तुम्हारे एक पत्र लिख देने से तुम्हें कोई अपनी पार्टी का अध्यक्ष नहीं बना देगा।'
फिर कार्यकर्ता ने संवेदना भरी चाल चली, 'और मुझे बनना भी नहीं है। मैं ऐसे ऊंचे सपने नहीं देखता। मुझको पार्टी के अतीत और इतिहास से खानदानी लगाव है। मेरी पांच पीढ़ियों ने इस पार्टी की सेवा की है। मैं नहीं चाहता कि इतनी पुरानी पार्टी एक इतिहास बनकर रह जाए।'
वरिष्ठ नेता पर इस दांव का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने कहा, 'तुम जैसों की यही तो दिक्कत है। अपनी ही गाते रहते हो। तुम्हारी पांच पीढ़ियों ने पार्टी की सेवा की है तो अध्यक्ष जी की छह पीढ़ियों ने। तुम्हें पार्टी नेतृत्व पर भरोसा नहीं है तो कोई और रास्ता देखो।' कार्यकर्ता बोला, 'देख चुका हूं। हर दल की एक ही कहानी है।' नेता ने कहा, 'अब सही रास्ते पर आए हो। यही आज की राजनीति का सच है। इसलिए ज्यादा पत्र-वत्र लिखने के फेर में न पड़ो।'
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