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सुप्रीम कोर्ट में होगा CBI के काम का परीक्षण, हाल के वर्षो में मिली सफलता का रिकार्ड किया तलब

Deepa Sahu
4 Sep 2021 5:05 PM GMT
सुप्रीम कोर्ट में होगा CBI  के काम का परीक्षण, हाल के वर्षो में मिली सफलता का रिकार्ड किया तलब
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देश के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा।

नई दिल्ली, देश के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब सुप्रीम कोर्ट देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआइ की कार्य कुशलता का परीक्षण करेगा। शीर्ष न्यायालय देखेगा कि खास मामलों में सीबीआइ के अभियोजन का स्तर क्या रहा, वह उनमें कितने आरोपितों को सजा दिला पाया और आपराधिक मामले को उसके तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचा पाया या नहीं।

जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्रीय जांच एजेंसी से हाल के वर्षो के उन मामलों का रिकार्ड मांगा है जिनमें वह लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट में आरोपितों को सजा दिलवाने में सफल रही। पीठ ने कहा, सीबीआइ ने किसी मामले की एफआइआर दर्ज कर ली और उसकी जांच शुरू कर दी, यह पर्याप्त नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी जांच एजेंसी की सफलता का आकलन पंजीकृत मामलों में आरोपित को दंडित कराने में मिली सफलता के आधार पर तय होता है। सीबीआइ की कार्य कुशलता का आकलन भी इसी पैमाने पर करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी जम्मू-कश्मीर के मुहम्मह अल्ताफ और शेख मुबारक के मामले की सुनवाई के दौरान की। मामले में सीबीआइ और गृह मंत्रालय के जवाब से असंतुष्ट पीठ ने कार्य कुशलता के आकलन का फैसला किया है। जनवरी 2020 में हुई सुनवाई में पीठ ने पाया था कि सीबीआइ को विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने में 542 दिन की अनावश्यक देरी हुई।
24 जनवरी, 2020 के अपने अंतरिम आदेश में कोर्ट ने लिखा कि एजेंसी को एक अर्जी दाखिल करने के बारे में निर्णय लेने में दस महीने से ज्यादा लगे। ऐसा तब हुआ जब एडीशनल सोलिसिटर जनरल ने तीन मई, 2019 को राय दी थी कि मामले में अपील की जानी चाहिए। इसके बाद एजेंसी को अपने वकील को याचिका तैयार करने के लिए कहने में तीन महीने से ज्यादा लग गए।
पीठ ने सीबीआइ की धीमी कार्यप्रणाली को लेकर मामले से जुड़े कुछ और उदाहरण भी दिए। कहा, यह सीबीआइ के कानूनी मामलों के अनुभाग की अक्षमता का स्पष्ट उदाहरण है। इससे एजेंसी की मामलों के अभियोजन की क्षमता पर सवाल पैदा होते हैं।


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