विष्णुगुप्त
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् ए न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् । प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् ए एष धर्मः सनातनरू ॥
सत्य बोलना चाहियेए प्रिय बोलना चाहियेए सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये । प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये य यही सनातन धर्म है ॥
दुनिया में सिर्फ सनातन धर्म है जो सत्य बोलने और सत्य पर आधारित जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। रावण की श्रीलंका पर भगवान श्रीराम की जीत इसलिए हुई थी कि वे सत्य पर आसीन थे, जबकि रावण अति विद्वान, शिवभक्त और बलशाली योद्धा था, उसकी शिव स्तूति रक्षा कवच थी।
भगवान श्रीकृष्ण कौरवों के लाखों सैनिकों और भीष्म पितामह, द्रोनाचार्य तथा कर्ण जैसे महारथियों को इसलिए पराजित करने में सफल हुए थे कि वे सत्य पर थे, भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था फिर भी अर्जुन ने उन्हें अपने तीरों से विद्ध दिया था, वे अजु्र्रन के तीरों पर लेटे-लेटे प्राण थे। द्रोनाचार्य भी कम पराक्रमी नहीं थे, कर्ण की धनुष विद्या के सामने अर्जुन भी फीके थे। कौरव गलत थे जबकि पांडव सही थे, कौरव असत्य थे, पांडव सत्य थे। असत्य का साथ देने के कारण कर्ण की धनुष विद्या काम नहीं आयी थी और भीष पितामह व द्रोनाचार्य जैसे महारथी पराजित हुए थे। भगवान श्रीराम या फिर भगवान श्रीकृष्ण अगर सत्य पर नहीं होते तो फिर उनकी जीत नहीं होती और न ही वे दोनो ऐसी प्रेरक, वंदनीय हस्तियां भगवान के रूप में स्थापित होतीं।
कुछ सुविधा भोगी, अनैतिक, असंस्कृति के वाहक लोग यह कहते हैं कि किसी को भी ब्रूर्यात सत्य नहीं बोलना चाहिए, सत्य अगर कटू है तो नुकसान करते हैं। ऐसे लोग कभी भी आईकाॅन नहीं हो सकते हैं, ऐसे लोग कभी भी प्रेरक नहीं हो सकते हैं, ऐसे लोग कभी भी परिवर्तन के कारक नहीं हो सकते हैं, ऐसे लोग कभी भी क्रांति के पर्याय नहीं हो सकते। ऐसे लोग हमेशा शकूनी की भूमिका होते हैं, ऐसे लोग हमेशा कालनामी होते हैं, ऐसे लोग हमेशा ठग होते हैं, ऐसे लोग हमेशा झूठे होते हैं, ऐसे लोग हमेशा लालची और अपराधी होते हैं। अगर ऐसे लोग असत्य का सहारा नहीं लेंगे तो फिर ऐसे लोग झूठ, फेरब और लालच की करतूत को अंजाम कैसे दे सकते हैं? यही कारण है कि भ्रष्टचारी लोग, झूठे लोग, अपराधी लोग और अनैतिक लोग यह कहते सुने जाते हैं कि क्या आप दुनिया को सुधार दोगे, क्या आपके एक प्रयास से दुनिया सत्यवादी हो जायेगी, भ्रष्टचार मिट जायेगा, सुशासन आ जायेगा, इत्यादि-इत्यादी।
मेरा प्रयोग सफलता की मंजिल बनाया। मेरा प्रयोग सफल रहा है। आज मुझे लोग दुर्बाशा श्रषि कहते हैं। मैंने हमेशा कटू सत्य बोलना सीखा है, कटू सत्य बोलना और लिखना मेरा धर्म है। मेरे कटू शब्दो से मेरे अपने दोस्त और शुभचिंतक दूर भाग खड़े हुए, मुझे नकरात्मक सोच का मनुष्य मान लिया गया, मुझे थाली में छेद करने वाला शख्त मान लिया गया। मैंने फिर भी कटू सत्य बोलना और लिखना नहीं छोड़ा, कटू सत्य का अर्थ सत्यवादी शब्द वाण चलना नहीं छोड़ा। मेरे सत्यवादी शब्द वाणों से ऐसी-ऐसी हस्तियां बेनकाब हुई हैं, उनके जातिवादी चेहरे सामने आये हैं, उनके भ्रष्टचार सामने आये है, उनकी अनैतिकता सामने आयी है, उनकी वैचारिक करतूत सामने आयी है जो अपने आप को महान के तौर पर स्थापित कर रखी थी, और अपने आप को प्रेरक, आईकाॅन, क्रांतिकारी हस्तियां कहती थी।
सत्य कभी भी पराजित नहीं होता है, जिस प्रकार से आत्मा अमर है, आत्मा न तो मरती है और न ही आत्मा को कोइ्र्र मार सकता है, न ही कोई उसे नुकसान पहुंचा सकता है, इसी प्रकार से सत्य को कोई बाल बाॅका भी नहीं कर सकता है। बादल को भी उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। बादल आकाश को भी ढक लेता है पर वर्षा होने के साथ ही साथ आकाश फिर साफ हो जाता है। कुछ समय के लिए असत्यवादी लोग अपनी झूठ, अपने फेरब और अपनी अनैतिक करतूत के भरोसे खुश रह सकते हैं, मनोरंजन कर सकते हैं, भौतिकवादी वस्तुओं पर राज कर सकते हैं, अपनी तानाशाही चला सकते थे पर अंत उनका हमेशा विनाशकारी होता है, भयानक होता है, कष्टकारी होता है, न कहने योग्य दुर्गति होती है। आज दुनिया में रावण का नाम कौन लेता है।
आप भी जीवन में सत्यवादी शब्द वाण चलाना सीखिये, सत्यवादी शब्द वाण का सारथी बनिये। मनुष्यता यही कहती है। भगवान ने आपको सोचने और विचारने के लिए दिमाग दिया है। दिमाग ही वह कसौटी है जिस पर मनुष्य जानवरों से भिन्न और सर्वश्रेष्ठ होते हैं, नही ंतो फिर मनुष्य भी जानवरों की ही श्रेणी में खड़ा होगा। भगवान बुद्ध भी अपनी एक शिक्षा में ऐसा ही कहते हैं। एक बार भगवान बुद्ध से उनके शिष्य ने पूछ दिया कि आपको पीपल के पेड़ के नीचे कौन सा ज्ञान प्राप्त हुआ था और ज्ञान क्या है? भगवान बुद्ध ने बड़ा ही रोचक उत्तर दिया। भगवान बुद्ध ने अपने शिष्य को उत्तर में कहा कि अपो दीपो भव। उनका उत्तर पाली शब्द में था। यानी कि अपना दीप खुद जलाओ। उनका कहने का अर्थ था कि तुम अपने अंदर में भला-बुरा, अच्छा-गलत और सत्य-असत्य का अंतर करना सीखो, निर्णय लेना सीखो, जब तुम अपने दिमाग का एक्सरसाइज कर लोगो तो फिर तुम ज्ञानवादी हो जाओगे, सत्यवादी हो जाओगे, तुम सत्यवादी शब्द ज्ञान वलाना शुरू कर दोगो। मनुष्य कब भगवान की श्रेणी में खड़ा होता है? मनुष्य भगवान की श्रेणी में तब खड़ा हो जाता है जब वह सत्य बोलना शुरू कर देता है, सत्य की पहचान करना शुरू कर देता है, उसके विचार सत्य पर आधारित होते हैं, उनके कर्म सत्य पर आधारित होते हैं। मनुष्य से जो भी भगवान बनें हैं वे सब सत्य पर आधारित ही आगे बढे हैं, रूढ़ियों और विंसगतियों को सच से परिचित कराया और पराजित कराया। इतिहास तो वही लोग बनाते हैं जो शब्दवादी बाण चलाते हैं, जिनके शब्दवादी वाणों से अपराधी, भ्रष्ट, अनैतिक और स्वार्थी लोग दम तोडते हैं, घायल होते हैं, बेनकाब होते हैं। इतिहास इसका गवाह है। इतिहास का अध्ययण आप कर सकते हैं।
तात्पर्य और संदेश यह है कि किसी भी परिस्थिति में हमें सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। हमेशा सत्यवादी वाण ही चलाना चाहिए। अंतिम जीत सत्यवादी शब्द वाण की ही होगी। भौतिक वस्तुए यहीं रह जायेगी। आपके लिए सिर्फ और सिर्फ सत्य ही धरोहर रहेगा। सत्य के लिए आपके मुंह से सत्यवादी शब्दवाण निकलना जरूरी है।