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युद्ध ने लिया भयानक रूप, जानें क्यों इस भारतीय इंजीनियर की हो रही चर्चा?

jantaserishta.com
7 March 2022 4:53 AM GMT
युद्ध ने लिया भयानक रूप, जानें क्यों इस भारतीय इंजीनियर की हो रही चर्चा?
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नई दिल्ली: जंग कभी भी किसी भी तरह से अच्छी नहीं होती है. उससे सिर्फ नुकसान ही होता है. कुछ नुकसान भौतिक तो कुछ मानसिक होते हैं. लेकिन ऐसे में भी कुछ लोग हैं जो अपनी जिजीविषा और जूझने की फितरत के दम पर एक मिसाल कायम करते हैं. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है एक भारतीय आईटी पेशेवर ने, जिसने कीव की कड़कड़ाती ठंड में एक दंपति और उसके दो महीने के बच्चे को अपने देश लौटाने में मदद की है.

बरूण वर्मा और उनकी पत्नी स्मिता सिन्हा ने मुंबई के बांकड़ा परिवार की मदद की जो उन्हीं की तरह यूक्रेन में फंसे हुए थे. वर्मा ने इस दंपति और इनके बच्चे को न सिर्फ खाना मुहैया करवाया, बल्कि उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित की. ये तब हुआ जब 28 फरवरी को वर्मा ने ट्विटर पर एक संदेश देखा जिसमें एक फोन नंबर था जो मदद मांगने के उद्देश्य से शेयर किया गया था.
द हिंदू से हुई बातचीत में वर्मा ने बताया, नंबर पर बात करने पर पता चला कि दंपति का एक दो महीने का बच्चा है और वे कीव के बाहरी इलाके में फंसे हुए हैं. यहां तक कि इन्हें वहां की स्थानीय भाषा भी नहीं आती. वर्मा ने उन्हें अपने घर बुला लिया जहां उनकी पत्नी और दो बेटियां भी थीं और ये पोलैंड के सीमा पर बसे शांतिपूर्ण इलाके लीव के लिए अगले दिन निकलने वाले थे.
वर्मा ने आगे बताया कि रात का कर्फ्यू शुरू होने वाला था और ऐप पर टैक्सी ढूंढकर ये लोग निकलने की तैयारी कर रहे थे. जब तक बांकड़ा पहुंचे, बमबारी शुरू हो गई थी और उधर टैक्सी चालक को देरी होती जा रही थी. इस बीच वर्मा के घर पहुंचे बांकड़ा को इन्होंने खाना दिया और उस रात ये दोनों परिवार 30 फुट गहरे बंकर में रहे जहां तापमान – 2 डिग्री था. अगले दिन सुबह जब ये रेलवे स्टेशन पहुंचे तब कीव छोड़ने वालों का हुजूम लगा था.
बताया गया कि यूक्रेनियन मर्दों को जाने नहीं दिया जा रहा था. वहीं महिला, बच्चे और वरिष्ठ नागरिकों को सुरक्षित जगह भेजा जा रहा था. विदेशियों में भी सिर्फ उन्हीं मर्दों को जाने दिया जा रहा था जिनके पास बच्चे हैं.
दोनों परिवारों की पहली ट्रेन छूट गई और अगली ट्रेन के लिए वर्मा ने अपनी पांच साल की बेटी को कंधे पर उठाया और बांकड़ा ने अपने बच्चे को ताकि उन्हें भी ट्रेन में जाने दिया जाए. पांच घंटे का सफर नौ घंटे में पूरा हुआ और बिस्किट खाकर इन लोगों ने गुज़ारा किया.
वर्मा ने बताया कि लीव में एक परिचित ने उनकी मदद की जिसके बाद पोलैंड की सीमा पार करने में इन्हें नौ घंटे लगे जहां तापमान – 5 डिग्री था. इस बीच दो महीने का बच्चा छह घंटे से भूखा था और छोटी बेटी का बुरा हाल था. वर्मा ने दिल्ली में अपने दोस्तों को फोन किया. इधर इनके पासपोर्ट पर पांच दिन के ट्रांसिट वीज़ा का ठप्पा लगा और पोलैंड में प्रवेश करने पर इन्हें दूतावास के एक होटल में लेकर गया जहां बहुत भीड़ थी.
बांकड़ा ने वर्मा परिवार का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने इस परिवार की मुसीबत में मदद की. वहीं वर्मा का कहना था कि उन्हें लोगों की मदद करना पसंद है और वह उम्मीद करते हैं कि भविष्य में किसी को भी ऐसा सफर न तय करना पड़े. वर्मा ने ये भी कहा कि वह यूक्रेन लौटना चाहते हैं और उम्मीद है कि उस देश में जल्द ही सब ठीक होगा.


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