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जयपुर,(आईएएनएस)| जयपुर में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 83वें सम्मेलन में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायी कार्यवाही में न्यायिक हस्तक्षेप की चुनौतियों पर चर्चा की। उन्होंने सदन चलाने के दौरान सांसदों और विधायकों के बीच मर्यादा कायम रखे जाने का भी आह्वान किया।
उपराष्ट्रपति ने संसद द्वारा पारित कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने पर नाराजगी जताई।
धनखड़ ने कहा, "1973 में एक गलत परंपरा शुरू हुई। केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार अदालतों के संवैधानिक संशोधनों को रद्द करने का अधिकार विकसित किया, जो कि 'मूल संरचना', या संविधान की मूल भावना का उल्लंघन करता था। संविधान में संशोधन करने और कानून से निपटने की संसद की शक्ति किसी अन्य प्राधिकरण के अधीन नहीं है। यह लोकतंत्र की जीवनरेखा है।"
उन्होंने कहा, "मैं अदालत के संबंध में कहना चाहता हूं कि मैं इससे सहमत नहीं हूं, सदन बदलाव कर सकता है। इस सदन को बताना चाहिए कि क्या यह किया जा सकता है।"
धनखड़ ने कहा, "जब मैंने राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्यभार संभाला था, तो मैंने कहा था कि न तो कार्यपालिका कानून देख सकती है और न ही अदालत हस्तक्षेप कर सकती है। यदि कोई संस्था संसद द्वारा बनाए गए कानून को किसी भी आधार पर अमान्य कर देती है, तो वह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होगा। तब यह कहना मुश्किल होगा कि हम एक लोकतांत्रिक देश हैं।"
उन्होंने कहा कि बाद के वर्षो में सर्वोच्च न्यायालय ने उन मामलों पर महत्वपूर्ण फैसले दिए जो इस 'मूल संरचना' के लिए महत्वपूर्ण थे और इस प्रक्रिया में संसदीय संप्रभुता से समझौता किया गया था। 'मूल संरचना सिद्धांत' की सबसे हालिया और प्रमुख न्यायिक अभिव्यक्ति 16 अक्टूबर, 2015 को हुई थी, जब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 4-1 के बहुमत के फैसले में 99वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम, 2014, दोनों को मूल संरचना का उल्लंघन करार दिया था।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि एनजेएसी के संबंध में संसद में एक तरह का इतिहास रचा गया था, क्योंकि लोकसभा पूरी तरह से एकमत हो गई थी। विरोध का एक भी स्वर नहीं था। सदन ने इस संवैधानिक संशोधन के पक्ष में सर्वसम्मति से मतदान किया था। राज्यसभा भी एकमत थी, लेकिन एक सदस्य अनुपस्थित थे। सोलह राज्यों की विधानसभाओं ने भी एकमत होने की पुष्टि की, जिसमें राजस्थान विधानसभा पहली थी। यह अभ्यास संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत राष्ट्रपति की सहमति के साथ एक संवैधानिक नुस्खे के रूप में स्पष्ट हो गया।
उन्होंने कहा, यह न्यायपालिका द्वारा पूर्ववत किया गया था। दुनिया के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा परिदृश्य शायद अद्वितीय है। कार्यपालिका को संसद से निकलने वाले संवैधानिक नुस्खे के अनुपालन में ठहराया जाता है। यह एनजेएसी का पालन करने के लिए बाध्य था। कोई न्यायिक फैसला, इसके महत्व को कम नहीं कर सकता।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता को योग्य या समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए सर्वोत्कृष्ट है।
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका कानून नहीं बना सकती और विधानमंडल न्यायिक फैसला नहीं लिख सकता।
धनखड़ ने कहा, यह याद रखा जाना चाहिए कि संविधान ने कभी भी संसद के लिए तीसरे और उच्च सदन की परिकल्पना नहीं की, जो दोनों सदनों द्वारा पारित कानून को मंजूरी दे सके।
उन्होंने निर्वाचित प्रतिनिधियों के आचरण के बारे में भी चिंता जताई और कहा, "संसद और विधानमंडलों में वर्तमान परिदृश्य वास्तव में चिंता का कारण है। यही समय है कि हम मर्यादा की कमी पर लोगों के व्यापक मोहभंग और घृणा को दूर करें।"
उन्होंने कहा, संसद और विधानमंडलों में नि:संदेह संसद और विधानमंडलों की कार्यवाही में मर्यादा और अनुशासन की कमी से लोगों में वेदना और निराशा है। जनता में संसद और विधानमंडलों के प्रतिनिधि के प्रति सम्मान में निरंतर कमी हो रही है। इसका कारण यह है कि कुछ प्रतिनिधि - विधायक, एमएलसी और सांसद संविधान और कानून की शपथ लेते हैं, लेकिन नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं और मर्यादा का चोला उतारकर हवा में फेंक देते हैं।"
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि न्यायपालिका को भी मर्यादा का पालन करना चाहिए। न्यायपालिका से अपेक्षा की जाती है कि वह संवैधानिक रूप से उसे जो दिया गया है, उसका उपयोग करे और शक्ति संतुलन भी बनाए रखे।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि कई बार न्यायपालिका से मतभेद हो जाते हैं, जो हमारे काम में दखल दे रही है। दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजकुमारों के प्रिवी पर्स को खत्म कर दिया गया था, हालांकि न्यायपालिका ने उन आदेशों को रद्द कर दिया। बाद में न्यायपालिका ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण के उनके सभी फैसलों के पक्ष में निर्णय दिए।
गहलोत ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को क्रांतिकारी नेता बताते हुए कहा, "अध्यक्ष के सामने सदन चलाना एक बड़ी चुनौती है। सरकार और विपक्ष के बीच संतुलन बनाए रखना और अपनी विश्वसनीयता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है।"
विधानसभा अध्यक्ष सी.पी. जोशी ने कहा कि आज संसदीय लोकतंत्र के सामने कई चुनौतियां हैं। आज कार्यपालिका की तानाशाही है। जब विधानसभाओं की बैठकें कम होंगी, तब सरकार को जवाबदेह कौन बनाएगा।
--आईएएनएस
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