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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा- 'आरोपी फरार न हो और समन को माने तो गिरफ्तारी की जरूरत नहीं'
Deepa Sahu
20 Aug 2021 9:43 AM GMT
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सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महज इसलिए किसी को गिरफ्तार करना कि यह कानूनी रूप से वैध है, इसका यह मतलब नहीं है कि गिरफ्तारी की ही जाए. साथ ही उसने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता संवैधानिक जनादेश का एक महत्वपूर्ण पहलू है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर नियमित तौर पर गिरफ्तारी की जाती है तो यह किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को ''बेहिसाब नुकसान'' पहुंचा सकती है.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि अगर किसी मामले के जांच अधिकारी को यह नहीं लगता कि आरोपी फरार हो जाएगा या समन की अवज्ञा करेगा तो उसे हिरासत में लेकर अदालत के समक्ष पेश करने की आवश्यकता नहीं है.
पीठ ने इस हफ्ते की शुरुआत में एक आदेश में कहा, ''हमारा मानना है कि निजी आजादी हमारे संवैधानिक जनादेश का एक महत्वपूर्ण पहलू है. जांच के दौरान किसी आरोपी को गिरफ्तार करने की नौबत तब आती है जब हिरासत में पूछताछ आवश्यक हो जाए या यह कोई जघन्य अपराध हो या ऐसी आशंका हो कि गवाहों को प्रभावित किया जा सकता है या आरोपी फरार हो सकता है.''
इस याचिका पर सुनवाई कर रहा था सुप्रीम कोर्ट
शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. हाई कोर्ट ने एक मामले में अग्रिम जमानत का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज कर दी थी. इस मामले में सात साल पहले प्राथमिकी दर्ज की गयी थी.
पीठ ने कहा, ''महज इसलिए किसी को गिरफ्तार करना कि यह कानूनी रूप से वैध है, इसका यह मतलब नहीं है कि गिरफ्तारी की ही जाए. अगर नियमित तौर पर गिरफ्तारी की जाती है तो यह किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं आत्मसम्मान को बेहिसाब नुकसान पहुंचा सकती है.''
हाई कोर्ट का आदेश किया रद्द
हाई कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता अदालत का दरवाजा खटखटाने से पहले जांच में शामिल हुआ था और मामले में आरोपपत्र भी तैयार था.
कोर्ट कहा, ''अगर जांच अधिकारी को यह नहीं लगता कि आरोपी फरार हो जाएगा या सम्मन की अवज्ञा करेगा जबकि उसने जांच में सहयोग किया तो हमें यह समझ नहीं आता कि आरोपी को गिरफ्तार क्यों किया जाए.''
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