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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट में पूर्व राज्यपाल का हस्तक्षेप गलत
jantaserishta.com
11 May 2023 11:30 AM GMT
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फाइल फोटो
सुमित सक्सेना
नई दिल्ली (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने यह निष्कर्ष निकालने में गलती की कि उद्धव ठाकरे सरकार सदन में बहुमत खो चुकी है।
अदालत ने कहा कि न तो संविधान और न ही संसद द्वारा बनाए गए कानून में कोई ऐसा प्रावधान है जिसके द्वारा किसी विशेष राजनीतिक दल के सदस्यों के बीच विवादों को सुलझाया जा सके, और वे निश्चित रूप से राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और भूमिका निभाने का (भले वह कितनी ही छोटी क्यों न हो) अधिकार नहीं देते हैं चाहे वह किसी दल का अंदरूनी विवाद हो या दो दलों के बीच का।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ जिसमें न्यायमूर्ति एम.आर. शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा भी शामिल थे, ने कहा, शक्ति परीक्षण के लिए बुलाने के लिए अनुरोध मात्र के अलावा कुछ ठोस कारण होना चाहिए। इस मामले में राज्यपाल के पास यह इंगित करने के लिए कोई कारण नहीं था कि मौजूदा सरकार ने विश्वास खो दिया है और उसे शक्ति परीक्षण के लिए बुलाना चाहिए। इसलिए, इस मामले में राज्यपाल द्वारा विवेक का प्रयोग कानून के अनुरूप नहीं था।
पीठ ने कहा कि राज्यपाल ने देवेंद्र फडणवीस और सात 'निर्दलीय' विधायकों द्वारा लिखे गए पत्रों पर भरोसा किया, जिसमें ठाकरे को सदन के पटल पर बहुमत साबित करने का निर्देश देने का आान किया गया था।
पीठ की ओर से सर्वसम्मत निर्णय लिखने वाले मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने 141 पन्नों के फैसले में कहा कि पहली बात तो यह कि फडणवीस और सात विधायक अविश्वास प्रस्ताव भी ला सकते थे और कुछ भी उन्हें ऐसा करने से नहीं रोक रहा था। दूसरे, मुख्यमंत्री को अपना बहुमत साबित करने का निर्देश देने के लिए कुछ विधायकों का अनुरोध मात्र शक्ति परीक्षण के लिए बुलाने का एक प्रासंगिक और सार्थक कारण नहीं है।
पीठ ने पाया कि राज्यपाल ने 25 जून 2022 को शिवसेना विधायक दल के 38 सदस्यों के पत्र पर भरोसा किया, जिसमें दावा किया गया था कि उन्हें और उनके परिवारों को प्रदान की गई सुरक्षा अवैध रूप से वापस ले ली गई थी।
पीठ ने कहा, विधायकों को सुरक्षा की कमी का इस सवाल से कोई मतलब नहीं है कि सरकार को सदन का विश्वास प्राप्त है या नहीं। ऐसे मामलों में राज्यपाल की उचित प्रतिक्रिया यह सुनिश्चित करने की है कि जिस सुरक्षा के वे कानूनी रूप से हकदार हैं, यदि इसे हटा दिया गया है तो वह उन्हें मिलती रहे। यह एक असंबद्ध कारण था जिस पर राज्यपाल ने विचार किया था।
विधायकों की सुरक्षा वापस लेने के पहलू पर मुख्य न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि इसका मतलब यह नहीं निकाला जा सकता है कि उन्होंने सदन के पटल पर अपना समर्थन वापस ले लिया था। राज्यपाल द्वारा भरोसा किए गए किसी भी संचार में ऐसा कुछ भी था जिससे संकेत मिलता हो कि शिवसेना के असंतुष्ट विधायकों ने मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद से अपना समर्थन वापस लेने का मन बना लिया है।
पीठ ने कहा कि राज्यपाल ने 21 जून, 2022 को एकनाथ शिंदे द्वारा डिप्टी स्पीकर को संबोधित पत्र पर भरोसा किया जिसमें कहा गया था कि अजय चौधरी की नियुक्ति अवैध थी।
पीठ ने कहा, राज्यपाल विधायिका की कार्यवाही की वैधता के बारे में पूछताछ या राय व्यक्त नहीं कर सकते हैं। यह विशेष रूप से विधायिका के अधिकार क्षेत्र में या (इस फैसले के पिछले खंड में चर्चा की गई) कुछ परिस्थितियों में अदालतों के दायरे में है ..राज्यपाल को 21 जून 2022 के पत्र पर भरोसा नहीं करना चाहिए था। किसी भी स्थिति में, पत्र की सामग्री से यह संकेत नहीं मिलता था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकरे ने सदन का विश्वास खो दिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यपाल उस शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते जो उन्हें संविधान या उसके तहत बने कानून द्वारा प्रदत्त नहीं है।
न तो संविधान और न ही संसद द्वारा अधिनियमित कानून में कोई प्रावधान है जिसके द्वारा किसी विशेष राजनीतिक दल के सदस्यों के बीच विवादों को सुलझाया जा सकता है। वे निश्चित रूप से राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और एक भूमिका निभाने (भले ही वह कितनी भी छोटी क्यों न हो) का अधिकार नहीं देते हैं - चाहे दलों के अंदरूनी विवाद हों या दलों के बीच। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि राज्यपाल अपने द्वारा निकाले गए इस निष्कर्ष पर कार्रवाई नहीं कर सकते कि शिवसेना का एक वर्ग सदन के पटल पर सरकार से अपना समर्थन वापस लेना चाहता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यपाल का ठाकरे को सदन के पटल पर बहुमत साबित करने के लिए बुलाना उचित नहीं था क्योंकि उनके पास इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए ठोस तथ्यों पर आधारित कारण नहीं था कि ठाकरे ने सदन का विश्वास खो दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने नौ दिन तक दलीलें सुनने के बाद 16 मार्च को महाराष्ट्र राजनीतिक संकट के संबंध में उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समूहों की क्रॉस-याचिकाओं के एक बैच पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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