भारत
कृषि कानूनों की वापसी! क्या आगामी विधानसभा चुनाव में हार का डर, जानें क्या हो सकती है वजह?
jantaserishta.com
19 Nov 2021 8:16 AM GMT
x
नई दिल्ली: सालभर से कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के आगे आखिरकार मोदी सरकार को झुकना पड़ा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार सुबह राष्ट्र के नाम संबोधन करते हुए तीनों कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया. आगामी संसद सत्र में कानूनों की वापसी की प्रक्रिया पूरी की जाएगी. पीएम मोदी के इस ऐलान के बाद जहां कई नेताओं ने इसका स्वागत किया है तो कइयों ने स्वागत करते हुए भी प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार पर हमला बोला है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपना पुराना वीडियो फिर से शेयर करते हुए कहा है कि किसानों ने सत्याग्रह से अहंकार का सिर झुका दिया.
तकरीबन एक साल से चल रहे किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी को अतीत में कई बार विरोध का सामना करना पड़ा है. फिर चाहे वह पंजाब हो, हरियाणा हो या पश्चिमी उत्तर प्रदेश. कई किसानों ने बीजेपी नेताओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए. इसके अलावा, बीजेपी के कुछ नेताओं द्वारा भी किसान आंदोलन का समर्थन किया जाने लगा था, जिसके चलते भी पार्टी को कुछ मौकों पर शर्मिंदगी झेलनी पड़ी. आइए उन संभावित वजहों के बारे में जानते हैं, जो मोदी सरकार के कानून वापसी के फैसले की वजह बनीं...
अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. कृषि कानूनों का सबसे ज्यादा असर यूपी और पंजाब में पड़ने की संभावना जताई जा रही थी. दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर सालभर से डटे किसानों में बड़ी संख्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब के किसानों की है. खुद भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत भी पश्चिमी यूपी से आते हैं, जबकि संयुक्त किसान मोर्चा के कई अहम किसान नेताओं का ताल्लुक पंजाब से है. कई मौकों पर किसान नेताओं ने बीजेपी के खिलाफ वोट देने और बीजेपी नेताओं का विरोध करने का खुलकर ऐलान किया था. यहां तक कि किसान नेताओं ने चुनावी राज्यों में रैलियां, महापंचायत के जरिए से वोटर्स को बीजेपी के खिलाफ वोट देने की अपील करने की पूरी रणनीति भी तैयार की थी. चुनावी एक्सपर्ट्स भी कहते आ रहे थे कि पंजाब और पश्चिमी यूपी में बीजेपी को बड़ा नुकसान होने वाला है.
जब पिछले साल कृषि कानूनों को संसद में पारित करवाया गया, तब इनका ज्यादा विरोध कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल ही कर रहे थे. लेकिन जैसे-जैसे समय बीता और किसानों का आंदोलन बढ़ता गया, विरोध के स्वर तेज होते गए. जम्मू-कश्मीर और गोवा के राज्यपाल रह चुके और वर्तमान समय में मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक ने कृषि कानूनों का खुलकर विरोध किया, जिसके बाद बीजेपी की लीडरशिप की छवि को बड़ा डेंट लगा. सत्यपाल मलिक ने कई मौकों पर साफ कहा कि सरकार को इन कानूनों को वापस ले लेना चाहिए और एमएसपी पर कानून बनाना चाहिए. उन्होंने यहां तक कह दिया कि किसी जानवर की मौत होने पर दिल्ली के नेताओं की प्रतिक्रिया आ जाती है, लेकिन कई किसान शहीद हो गए, पर अब तक उनके लिए किसी ने श्रद्धांजलि नहीं दी. इसी बीच, उन्होंने गोवा और जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार का भी जिक्र कर विपक्षी दलों को मुद्दा उठाने का अच्छा-खासा मौका दे दिया.
पिछले एक साल में जहां बीजेपी का एक धड़ा यह साबित करने में लगा रहा कि दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर चल रहा आंदोलन कुछ मुठ्ठीभर किसानों का है और इसका असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन वहीं, कुछ ऐसे भी नेता थे, जिन्होंने खुलकर कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की. पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी भी किसान आंदोलन का कई बार समर्थन कर चुके हैं. सितंबर महीने में यूपी के मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत का वीडियो शेयर करते हुए किसानों का पक्ष लिया. इस वीडियो में किसानों का महापंचायत में जनसैलाब उमड़ता हुआ दिखाई दे रहा था. इसके अलावा, वरुण गांधी किसानों की समस्या को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी तक लिख चुके हैं. इसमें उन्होंने गन्ना किसानों की आर्थिक समस्याओं, गन्ने की बढ़ती लागत आदि को देखते हुए सरकार से गन्ने का दाम बढ़ाने की मांग की थी. उन्होंने लिखा था कि सरकार को गन्ने का रेट कम-से-कम 400 रुपये प्रति क्विंटल करना चाहिए. वरुण गांधी के अलावा, बीजेपी के वरिष्ठ नेता बीरेंद्र सिंह ने भी किसानों का समर्थन किया. मालूम हो कि बीरेंद्र सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं और उनके बेटे बृजेंद्र बीजेपी से सांसद हैं. उन्होंने कहा था कि किसानों के समर्थन में खड़ा होना मेरी नैतिक जिम्मेदारी है और इन कानूनों से किसानों की आर्थिक व्यवस्था पर असर पड़ा सकता है.
मार्च-अप्रैल में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में भी किसान आंदोलन की गूंज सुनाई दी थी, लेकिन उस समय बीजेपी की हार के पीछे इसे वजह नहीं माना गया था, लेकिन जब हाल ही में कई राज्यों में हुए उप-चुनावों में बीजेपी की कई सीटों पर करारी हार हुई तो उसके बाद पार्टी ने कई मोर्चों पर अहम निर्णय लिए. इस महीने की शुरुआत में आए तीन लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों में 7 पर बीजेपी को जीत मिली, जबकि 8 सीटें उनके सहयोगियों ने जीतीं उधर, कांग्रेस ने बीजेपी से एक ज्यादा सीट पर कब्जा करते हुए 8 सीटें जीतीं. हिमाचल प्रदेश की तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर बीजेपी की करारी हार हुई और इस पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया. राज्य में अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
एक्सपर्ट्स की मानें तो इन जगहों पर हुई बीजेपी की हार में महंगाई भी एक अहम मुद्दा रही. केंद्र सरकार ने नतीजों के बाद पेट्रोल-डीजल के दामों पर एक्साइज ड्यूटी कम की, जिससे तेल की कीमत कई रुपये घट गई. विपक्षी दलों ने दावा किया कि चुनावों में मिली हार की वजह से ही केंद्र ने पेट्रोल-डीजल के दाम घटाए हैं. इसके अलावा, अब जब मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है तो फिर से विपक्षी नेता इसे चुनाव से जोड़ रहे हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने ट्वीट किया, ''लोकतांत्रिक विरोध से जो हासिल नहीं किया जा सकता, वह आने वाले चुनावों के डर से हासिल किया जा सकता है. तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री की घोषणा नीति परिवर्तन या हृदय परिवर्तन से प्रेरित नहीं है. यह चुनाव के डर से प्रेरित है!''
jantaserishta.com
Next Story