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ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया आई सामने

jantaserishta.com
28 May 2022 3:44 AM GMT
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया आई सामने
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नई दिल्ली: भारत में ज्ञानवापी मस्जिद का मामला कई दिनों से चर्चा के केंद्र में है. वाराणसी की इस मस्जिद में हिंदू पक्ष ने शिवलिंग मिलने का दावा किया है लेकिन मुस्लिम पक्ष इस बात से इनकार करता है और उसका कहना है कि वो शिवलिंग नहीं बल्कि एक फव्वारा है. सुप्रीम कोर्ट ने शिवलिंग मिलने वाले जगह को संरक्षित रखने का आदेश देते हुए कहा है कि मुस्लिम पक्ष वहां पहले की तरह नमाज अदा करता रहेगा. फिलहाल ये मामल निचली अदालत में चल रहा है. भारत के इस विवाद पर मुस्लिम दुनिया की भी नजर है. पाकिस्तान के अखबारों में इस खबर को काफी तरजीह दी जा रही है.

पाकिस्तान के अखबारों में ज्ञानवापी मस्जिद के मामले को प्रमुखता से जगह दी जा रही है. पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन ने इस मुद्दे को लेकर प्रकाशित अपनी एक खबर में लिखा है कि भारत की निचली अदालतों ने इस तरह के विवादों को बढ़ाने का काम किया है.
अखबार ने लिखा है कि बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए भी लोगों को जिला अदालत के फैसले ने ही उकसाया था. अयोध्या विवाद की सुनवाई करने वाले जस्टिस एस. यू. खान के एक बयान का हवाला देते हुए रिपोर्ट में लिखा गया है, '1986 में उत्तर प्रदेश की एक जिला अदालत के एक आदेश का ही परिणाम था जिसने पांच सालों बाद हिंदुत्व कार्यकर्ताओं को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए उकसाया.'
पाकिस्तान के अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने भी ज्ञानवापी मस्जिद मामले को लेकर कई रिपोर्ट प्रकाशित की है. अपनी एक रिपोर्ट में अखबार समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से लिखता है, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद, उत्तर प्रदेश की कई मस्जिदों में से एक है, जिसके बारे में कुछ हिंदुओं का मानना ​​है कि इसे मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था.'
अखबार आगे लिखता है कि भारत के 20 करोड़ मुसलमानों के नेता मानते हैं कि इस तरह मस्जिद के अंदर सर्वेक्षणों को भाजपा की मौन स्वीकृति है. भाजपा के इस प्रयास को वो अपने धर्म को कमजोर करने के रूप में देखते हैं.
अपनी एक और रिपोर्ट में अखबार लिखता है, 'ऐसे धार्मिक जगहों पर धार्मिक समुदायों के बीच भारत की आजादी के बाद से ही विवाद होता रहा है. लेकिन हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी सरकार के शासन में इस तरह की घटनाएं आम हो गई हैं. कट्टर हिंदू संगठनों ने पिछले कुछ हफ्तों में भारत के कुछ हिस्सों में विवादित स्थलों को लेकर स्थानीय अदालतों में कई मामले पेश किए हैं. मुसलमान इसे मोदी की सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी भाजपा की मौन सहमति से उन्हें हाशिए पर डालने की कोशिश के रूप में देखते हैं.'
पाकिस्तान टुडे ने ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है, 'काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है. हिंदू संगठनों ने मस्जिद परिसर के अंदर पूजा करने की अनुमति मांगी है. हिंदू कट्टरपंथी समूह मस्जिद को हटाने की मांग कर रहे हैं, और वे कह रहे हैं कि इसे एक मंदिर के ऊपर बनाया गया था.'
मुस्लिम बहुल देश तुर्की के अखबार में भी ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा छाया हुआ है. तुर्की की समाचार एजेंसी Anadolu की एक खबर को Daily Sabah ने प्रकाशित किया है जिसमें लिखा गया है कि मस्जिदों पर दक्षिणपंथी हिंदुओं के दावे से भारत में दहशत का माहौल है.
रिपोर्ट में विशेषज्ञ के हवाले से लिखा गया है कि बीजेपी अपने वोट बैंक के लिए इस तरह के ऐतिहासिक घावों को कुरेदकर सांप्रदायिक तनाव को बरकरार रखना चाहती है.
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निरंजन साहू से बातचीत के हवाले से रिपोर्ट में लिखा गया, 'राज्य के चुनावों में भाजपा की हालिया जीत ने दक्षिणपंथी तत्वों को प्रेरित किया है. ये सब मुद्दे सत्ताधारी पार्टी को मुद्रास्फीति, मूल्य वृद्धि और बढ़ती बेरोजगारी के वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने में बहुत मदद करते हैं. इस प्रकार, ये एक तीर से दो निशाना लगाने जैसा है.'
अखबार आगे लिखता है कि इस तरह के विवाद धार्मिक ध्रुवीकरण पैदा करते हैं, जिससे सत्ताधारी पार्टी को लाभ होता रहा है. बीजेपी की इसी राजनीति के कारण साल 1992 में भीड़ ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था.
बांग्लादेश के अखबार 'द डेली स्टार' ने समाचार एजेंसी एपी की एक रिपोर्ट के हवाले से लिखा है, 'आलोचकों का कहना है कि इस तरह के मामले भारत के मुसलमानों की धार्मिक स्थानों के लिए खतरा पैदा करते हैं. मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर हाल के वर्षों में हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा लगातार हमले किए जा रहे हैं. ये हिंदू राष्ट्रवादी आधिकारिक तौर पर धर्मनिरपेक्ष भारत को एक हिंदू राष्ट्र में बदलना चाहते हैं.'
रिपोर्ट में आगे लिखा गया है कि हिंदू कट्टरपंथी दावा करते हैं कि मुगलों ने मध्यकाल में बहुत से मंदिरों को तोड़कर उस पर मस्जिद बनाए लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि उस दौरान उतनी संख्या में मंदिरों को नहीं तोड़ा गया बल्कि केवल कुछ मंदिरों को ही तोड़ा गया था. संख्या को धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों से बढ़ाकर बताया जाता है.
अखबार ने भारत के राजनीतिक विश्लेषक निलंजन मुखोपाध्याय की टिप्पणी भी छापी है. वह कहते हैं, "अदालतों में याचिकाओं की झड़ी लगाने का एक ही मकसद है कि मुस्लिमों को हद में रखा जाए और सांप्रादायिक तनाव फैलाया जाए. ये मुस्लिमों को बताने का एक तरीका है कि भारत में अब सार्वजनिक रूप से वे अपनी धार्मिक आस्था का इजहार नहीं कर सकते हैं और मध्यकालीन शासकों के द्वारा उनके कथित अपमान का हिसाब करने का वक्त आ गया है."
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