कल तक दिल्ली के जहांगीरपुरी की पहचान प्रवासी मजदूरों और कचरा बीनने वालों के घर के तौर पर थी, लेकिन आज इसकी पहचान पूरी तरह बदल गई है. कारण है यहां हुई सांप्रदायिक हिंसा. हनुमान जयंती के दिन शोभायात्रा जुलूस के दौरान हुई हिंसा ने छोटे से जहांगीरपुरी को देशभर में पहचान दिला दी है. हिंसा के कुछ दिन बाद जिस तरह से यहां के अवैध कब्जों पर बुलडोजर चलाया गया, उसने ध्यान और खींचा.
जहांगीरपुरी उत्तरी दिल्ली में है. ये पूरा इलाका एक किलोमीटर के दायरे में बसा हुआ है. छोटा सा जहांगीरपुरी दिल्ली की तीन विधानसभाओं में आता है. जहांगीरपुरी जिन तीन विधानसभाओं में पड़ता है, उनमें आदर्श नगर, बादली और बुराड़ी है. जिस मस्जिद के बाहर हिंसा हुई, वो बुराड़ी विधानसभा में आती है.
कैसा है जहांगीरपुरी?
चेतनालय नाम के NGO के मुताबिक, जहांगीरपुरी में बड़ी सारी झुग्गियां हैं, जिनमें कचरा बीनने वालों के परिवार रहते हैं. इनमें से ज्यादातर वो बंगाली मुस्लिम हैं, जो बंगाल, बिहार और बांग्लादेश सीमा से सटे इलाकों से पलायन कर यहां आए हैं. जहांगीरपुरी में 5 लाख से ज्यादा आबादी रहती है, लिहाजा यहां खचाखच लोग भरे हुए हैं. यहां कई कॉलोनियां हैं जो 12 ब्लॉक में बंटी हैं. जहांगीरपुरी के C, CD पार्क, EE, G, H, K और I ब्लॉक में ज्यादातर परिवार कचरा बीनने वालों के हैं. यहां की कुल आबादी में 20 फीसदी आबादी कचरा बीनने वाले बच्चों और परिवारों की है. ऐसे करीब 5 हजार परिवार इन झुग्गियों में रहते हैं जो कचरा उठाकर और उसे बेचकर अपना पेट पालते हैं. जो लोग कचरा बीनने का काम करते हैं, उनमें करीब 30 फीसदी हिंदू हैं और बाकी सारे मुस्लिम हैं. जहांगीरपुरी में कचरा बीनने वालों की आबादी इसलिए ज्यादा है, क्योंकि बगल में ही भाल्स्वा में डंपिंग यार्ड बना है. हर परिवार का कम से कम एक सदस्य कचरा बीनने के काम में लगा है.
यहां पर बेरोजगारी, गरीबी, निरक्षरता, खराब स्वास्थ्य व्यवस्था, घरेलू हिंसा, बाल मजदूरी, कन्या भ्रूण हत्या, शराब, ड्रग्स जैसी समस्याएं हैं. जहांगीरपुरी के बसने के पीछे दो तरह की कहानियां सामने आती हैं. सत्याग्रह (स्क्रॉल) ने 2016 में एक रिपोर्ट की थी. इस रिपोर्ट में जहांगीरपुरी में रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया था कि आजादी के बाद जब बंगाल में अकाल पड़ा तो करीब 10 हजार परिवार दिल्ली आए. ये लोग जहांगीरपुरी में आकर बसे. पलायन कर यहां आने वालों में 95 फीसदी मुस्लिम थे. ये लोग बंगाल के पश्चिमी मिदनापुर जिले के रहने वाले थे.
उस व्यक्ति ने बताया कि 1970 के दशक की शुरुआत में सरकार ने प्रवासियों को बसाने का काम शुरू किया. उस समय देश में नसबंदी का कार्यक्रम भी चल रहा था. जो लोग नसबंदी के लिए राजी हुए, उन्हें उत्तर पूर्वी दिल्ली के सीमापुरी में बसाया गया और जो लोग इसके खिलाफ थे उन्हें जहांगीरपुरी में रहने के लिए घर दिया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक, यहां बसे ज्यादातर प्रवासी मजदूर कचरा बीनने का काम करते हैं. ये लोग सी और डी ब्लॉक में रहते हैं. यहां के स्थानीय इसे 'मिनी पाकिस्तानी' और 'बांग्लादेशी कॉलोनी' कहकर बुलाते हैं.
जहांगीरपुरी बसने की एक दूसरी कहानी भी है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 1975 में इंदिरा गांधी की सरकार में संजय गांधी की अगुवाई में दिल्ली को सजाने-संवारने की मुहिम शुरू हुई. इसी मकसद से झुग्गियों को हटाया गया. झुग्गी हटाने के बाद इनमें रह रहे लोगों को जहांगीरपुरी और मंगोलपुरी इलाके में घर बनाने के लिए 22.5 गज की जमीन दी गई. इस जमीन पर लोगों ने धीरे-धीरे अपने घर बनाने शुरू किए और इस तरह जहांगीरपुरी बस गई.
सोर्स - आज तक