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विश्व का एकमात्र अस्पताल जहा अंदर चलती है टॉय ट्रेन, कैंसर पीड़ित बच्चों का होता है इलाज

jantaserishta.com
15 Nov 2021 1:47 AM GMT
विश्व का एकमात्र अस्पताल जहा अंदर चलती है टॉय ट्रेन, कैंसर पीड़ित बच्चों का होता है इलाज
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कोलकता: छुक-छुक गाड़ी, शानदार नजारे और मस्ती में झूमते बच्चे. ये नजारा कोलकाता के एक अस्पताल में देखने को मिलता है. ये कैंसर पीड़ित बच्चों के इलाज का हॉस्पिटल है और इसी हॉस्पिटल में टॉय ट्रेन चलती है. इस हॉस्पिटल का नाम सरोज गुप्ता कैंसर सेंटर एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट है. ये भारत में एकमात्र अस्पताल है, जिसके अंदर टॉय ट्रेन चलती है.

यहां दो साल का एक बच्चा त्रियन घोष है जिसको ब्लड कैंसर है और यहां सरोज गुप्ता कैंसर सेंटर एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में उसका इलाज चल रहा है. त्रियन की पिछले छह महीने में सात बार कीमोथेरपी की गई है. दो साल के इस बच्चे को पता भी नहीं है कि वह किस बीमारी से पीड़ित है, लेकिन उसे हर वक्त इसके दर्द से गुजरना पड़ता है. हालांकि, अस्पताल में चलने वाली टॉय ट्रेन ने इस छोटे से बच्चे के दर्द को कुछ हद तक कम किया है और उसके बचपन की यादों में एक बड़ी भूमिका निभाने का काम कर रहा है. उसके साथ उसकी मां दिनभर यहां रहती है.
त्रियन की मां सुचिशमिता घोष कहती हैं, "शुरू में हमें ब्लड कैंसर के बारे में कुछ पता नहीं था. त्रियन को नियमित खांसी और सर्दी होती थी, जिसका इलाज हम करवाते थे. ऐसे ही एक दिन उसे तेज बुखार आया तब डॉक्टर ने हमें ब्लड टेस्ट कराने के लिए कहा, जिसमें हमें पता चला कि उसकी ब्लास्ट रक्त कोशिकाएं 90% हैं. डॉक्टर शुरू में हिचकिचा रहे थे, लेकिन फिर कहा कि उसे ब्लड कैंसर है. शुरू में हमारे लिए यह यकीन करना बहुत मुश्किल था. हमें लगा कि डॉक्टर गलत है. हालांकि, हमने 2-3 डॉक्टरों से सलाह लेने के बाद बोन मैरो लेने का फैसला किया.
इलाज के लिए देश-विदेश से भी आते हैं लोग
इस अस्पताल में बहुत सारे मरीज बांग्लादेश से भी आते हैं. यहां 9 साल का अब्दुल अजीज है, जो पुलिस अधिकारी बनने के सपने आखों में लिए कैंसर जैसी बीमारी को मात देने की जंग लड़ रहा है. अब्दुल अजीज ने टॉय ट्रेन की सवारी का लुफ्त उठाते हुए अपनी खुशी साझा की और कहा, "मैं यहां बहुत खुश हूं. मेरे माता-पिता भी खुश हैं. मुझे इस बात का कोई मलाल नहीं है कि मैंने अपना एक पैर खो दिया है. मेरा सपना ट्रेन में यात्रा करने का था. हमारे सपने को साकार करने के लिए धन्यवाद."
दिलशाद शेख जो दिलवार हुसैन के दादा हैं और अपने पोते को इस टॉय ट्रेन की सवारी करवाने लाए थे उन्होंने बताया, "जब वह बीमार हुआ तो हम उसे यहां ले आए और डॉक्टरों ने कहा कि उसे ब्लड कैंसर है. वह अब ठीक है, लेकिन हम गरीब लोग हैं, इसलिए बिलों का भुगतान करना हमारे लिए मुश्किल है. हमें सीएम और पीएम फंड से कुछ पैसे मिलेगा.
'पहली इमारत 76 में शुरू हुई थी'
सरोज गुप्ता कैंसर संस्थान के अंजन गुप्ता ने बताया, "हमने 1973 में इस अस्पताल का निर्माण किया था. इसका पंजीकरण उसी समय किया गया था. संस्थापक डॉ. सरोज गुप्ता, वे मेरे पिता थे. उन्होंने देखा कि गांवों से आने वाले गरीबों को सिटी अस्पताल में बिस्तर नहीं मिल रहा था, इसलिए उन्होंने ये बनाने के बारे में सोचा. घर से दूर घर में, प्रकृति के साथ, प्रकृति की गोद में, कुछ निर्माण करने की सोची और दानकर्ता के माध्यम से कुछ जमीन भी मिली. पहली इमारत 1976 में शुरू हुई थी. उस समय यह एक घर था. उसके बाद उन्होंने एक चाइल्ड केयर सेंटर बनाया, क्योंकि बच्चों को अपने इलाज के लिए कम से कम 6 महीने अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है और सौभाग्य से वे ठीक हो जाते हैं. 80% से 90% बच्चे ठीक हो जाते हैं."
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