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जलवायु परिवर्तन पर ग्लासगो में जारी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन अब खत्म
Pushpa Bilaspur
13 Nov 2021 1:01 PM GMT
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जलवायु परिवर्तन पर ग्लासगो में जारी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन अब खत्म
ग्लासगो। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर बीते दो हफ्ते से ब्रितानी शहर ग्लासगो में जारी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन काप 26 (COP26) सम्मेलन अब खत्म हो चुका है। दुनिया के तमाम राजनेताओं ने पिछले दो हफ्तों से जारी इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए जरूरी उपाय करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है। इसके बावजूद आशंकाएं जताई जा रही है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना संभव नहीं होगा। आइए जानते हैं कि आखिर इस महासम्मेलन में क्या हुआ।
मीथेन के उत्सर्जन को कम करने के लिए वैश्विक साझेदारी की घोषणा
काप 26 में अमेरिका और यूरोपीय संघ ने वर्ष 2030 तक ग्रीन हाउस गैस मीथेन के उत्सर्जन को कम करने के लिए वैश्विक साझेदारी की घोषणा की है। वायुमंडल में मीथेन की कटौती को ग्लोबल वार्मिंग को तेजी से कम करने की दिशा में एक बेहतर विकल्प माना जा रहा है। दुनिया के 40 से ज्यादा देशों ने कोयले का इस्तेमाल कम करने का संकल्प लिया है। हालांकि, अमेरिका और चीन जैसे देश जो सबसे ज्यादा कोयले का इस्तेमाल करते हैं, वह इस संकल्प से दूर रहे। इसके साथ विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन का सामना करने और इससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए नए आर्थिक कोष बनाने की घोषणा हुई है। हालांकि, विशेषज्ञ यह मानते हैं कि यह काफी नहीं है। अमेरिका समेत दुनिया के कई मुल्कों ने घोषणा करते हुए इस दशक में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए साथ काम करने की घोषणा की है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने किया आगाह
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि ये लक्ष्य पहले से ही जीवन रक्षक प्रणाली पर था। उन्होंने कहा कि ये संभव है कि इस सम्मेलन में सरकारें कार्बन उत्सर्जन में पर्याप्त कटौती करने के लिए राजी न हों। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर दिया गया तो हमारी दुनिया जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब प्रभावों से बच सकती है। वर्ष 2015 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में हुए एक ऐसे ही सम्मेलन में वैश्विक नेताओं ने संकल्प लिया था कि दुनिया के तापमान में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि रोकने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती की जाएगी।
तापमान में अब 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी
एक आकलन के मुताबिक दुनिया के तापमान में अब 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होने जा रही है। इसके असर की कल्पना इससे समझा जा सकता है कि अगर मात्र दो डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई तो दुनिया भर में मौजूद कोरल रीफ समाप्त हो जाएंगी। संयुक्त राष्ट्र संघ महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि सरकारों द्वारा उत्सर्जन कम करने के वादों का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि सरकारें लगातार जीवाश्म ईंधन में निवेश करना जारी रखा है। उन्होंने कहा कि वादों का कोई मतलब नहीं हैं, क्योंकि जीवाश्म ईंधन उद्योग को अभी भी कई ट्रिलियन डालर की सरकारी सब्सिडी दी जा रही है। गुटेरेस ने ग्लासगो में अब तक किए गए वादों को नाकाफी बताते हुए कहा है कि हमें पता है कि क्या करना चाहिए, लेकिन उन्होंने कहा है कि उम्मीद आखिरी पल तक बनी हुई।
गरीब देशों का सहयोग करने की अपील
इस समझौते में अमीर देशों से अपील की गई है कि वह जलवायु परिवर्तन का सामना करने में गरीब देशों का सहयोग करें। इस जीवाश्म ईंधन एवं कोयले आदि के प्रयोग को कम करने के लिए संकल्प को कमजोर करता हुआ दिखता है। मसौदे में सरकारों को पहले से तेज गति से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने की बात कही गई है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि अगर दुनिया के औसत तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़त को रोका जा सके तो जलवायु परिवर्तन के सबसे खतरनाक प्रभावों से बचा जा सकता है।
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