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मां तो मां है...जहां बेटे का हुआ अंतिम संस्कार, वहां जाकर उसकी चिता की राख पर सो जाती है, वजह कर देगी भावुक

jantaserishta.com
14 May 2021 11:56 AM GMT
मां तो मां है...जहां बेटे का हुआ अंतिम संस्कार, वहां जाकर उसकी चिता की राख पर सो जाती है, वजह कर देगी भावुक
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जैसे बेटा अपनी मां गोद में सो रहा है, इस तरह से मां वहां पर सो जाती है.

अहमदाबाद. हमारे यहां एक कहावत है कि 'मां ते मां दूसरे वगदा वा.' मां जैसा कोई नहीं, उनकी जगह कोई नहीं ले सकता. उत्तर गुजरात में बनासकांठा और सौराष्ट्र में मोरबी जिले में मातृ प्रेम के दो उत्कृष्ट उदाहरण सामने आए. बनासकांठा के मामले में एक मां का बेटे के वियोग में विलाप देखने को मिला. बेटे का जहां अंतिम संस्कार हुआ था, वहां जाकर मां अपने बेटे को प्यार से इस तरह से दुलार देती है जैसे आज भी मां की ममता जीवित है. जैसे बेटा अपनी मां गोद में सो रहा है, इस तरह से मां वहां पर सो जाती है.

दूसरी ओर, सौराष्ट्र के मोरबी में मंगलवार को एक वीडियो सामने आया है, जहां एक बेटा 90 वर्षीय मां को झाड़ू से पीटता है. मामला सामने आने के बाद, 90 वर्षीय बूढ़ी मां ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा, 'मेरे बेटे ने मुझे हाथ भी नहीं लगाया. मेरे बेटे ने मुझे नहीं मारा! मेरे पति ने मुझे कई बार मारा, लेकिन मेरे बेटे ने कभी मुझे नहीं मारा!'
उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिले के अमीरगढ़ तालुका के जुनिरोह गांव में मातृ प्रेम का एक उत्कृष्ट उदाहरण पाया गया है. इस बारे में स्थानीय लोग और मीडिया में काफी चर्चा हुई है. गांव में रहने वाली मंगूबेन चौहान अपने मृत बेटे को याद करती हैं और हर दिन कुछ ऐसा करती हैं जिसे देखने वालों की आंखों से आंसू आ जाते हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक मंगूबेन के पति की 10 साल पहले मौत हो गई थी. मंगूबेन के चार बच्चे हैं और उनमें से तीन विवाहित हैं.
महेश मंगूबेन का सबसे छोटा और सबसे लाडला बेटा था. करीब एक महीने पहले महेश की किसी कारण से मौत हो गई. उसका शव रेलवे ट्रैक के पास मिला था. अपने बेटे की लाश को देखने के बाद मां टूट गई. अश्रुपूरित आखों से महेश का अंतिम संस्कार किया गया. हालांकि, आज भी मां अपने लाडले बेटे को नहीं भूल सकी है. मां अभी भी उस जगह पर जाती है जहां महेश का अंतिम संस्कार किया गया था. बेटे को याद करके राख पर मां सो जाती है. ऐसा लगता है जैसे बेटा गोद में है और मां लाडले बेटे से बात कर रही है. ग्रामीणों ने बताया कि ऐसा अक्सर होता है. जब ग्रामीणों को पता चलता है, तो वे मंगूबेन को घर वापस ले आते हैं.


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