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भारत के पहले परमाणु परीक्षण का बटन दबाने वाले शख्स का निधन, जानें सब कुछ

jantaserishta.com
28 Feb 2022 5:46 AM GMT
भारत के पहले परमाणु परीक्षण का बटन दबाने वाले शख्स का निधन, जानें सब कुछ
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18 मई 1974 को पोकरण में भारत ने किया था पहला परमाणु परीक्षण।

नई दिल्‍ली : भारत के पहले न्‍यूक्लियर वेपन टेस्‍ट का बटन दबाने वाले प्रणब दस्‍तीदार नहीं रहे। उन्‍होंने 11 फरवरी को अमेरिका के कैलिफोर्निया में अंतिम सांस ली। 18 मई, 1974 को 'स्‍माइलिंग बुद्धा' कोडनेम वाले ऑपरेशन के तहत भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया था। दस्‍तीदार को अगले साल, 1975 में पद्मश्री से सम्‍मानित किया गया था। वह भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) के डायरेक्‍टर भी रहे। इसके अलावा यूनाइटेड नेशंस इंटरनैशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) के निदेशक भी रहे। बतौर वैज्ञानिक, उन्‍होंने भारत की पहली स्‍वदेशी परमाणु पनडुब्‍बी INS अरिहंत के लिए रिएक्‍टर के डिजाइन और डिवेलपमेंट में भी अहम भूमिका निभाई।

कौन थे प्रणब दस्‍तीदार?
प्रणब रेवतीरंजन दस्‍तीदार को पोकरण-I में इलेक्ट्रॉनिक डेटोनेशन सिस्‍टम टीम की कमान सौंपी गई थी। पूरे प्रॉजेक्‍ट की जानकारी बेहद चुनिंदा लोगों को दी। 1967 से 1974 के बीच करीब 75 साइंस्टिस्‍ट्स और इंजिनियर्स ने देश की पहली न्‍यूक्लियर डिवाइस तैयार की। इसे ट्रिगर करने के लिए BARC की लेजर डिविजन ने हाई स्‍पीड गैस ट्यूब स्विचेज तैयार किए। 15 मई 1974 तक डिवाइस को शाफ्ट में उतारा जा चुका था।
18 मई, 1974 का वह दिन
उस दिन दस्‍तीदार और उनकी टीम टेस्‍ट साइट से 5 किलोमीटर दूर ऑब्‍जर्वेशन बंकर में मौजूद थी। टेस्‍ट का समय सुबह 8 बजे मुकर्रर किया गया था लेकिन देरी हुई। ऐसा इसलिए क्‍योंकि हाई स्‍पीड कैमरा चेक करने के लिए भेजे गए इंज‍िनियर वीएस सेठी की जीप स्‍टार्ट होने का नाम ही नहीं ले रही थी। टेस्‍ट समय पर हो, इसके लिए सेठी चढ़ाई करके साइट पर पहुंचे मगर जीत ठीक करने की सेना की कोशिशों के चलते और देरी हुई। आखिरकार सुबह 8.05 बजे दस्‍तीदार ने फायरिंग बटन दबाया। इस टेस्‍ट के बारे में पोकरण में मौजूद टीम से इतर सिर्फ तीन लोगों को पता था - तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके खासमखास - पीएन हसकर और डीपी धार।
आज ही के दिन यानी 18 मई 1974 को राजस्थान के पोकरण में अपने पहले भूमिगत परमाणु बम का परीक्षण किया था। इस परीक्षण के साथ भारत दुनिया के उन छह देशों में शामिल हो गया जो परमाणु शक्ति संपन्न देश थे। पहले पांच देश अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन और फ्रांस के पास परमाणु शक्ति थी। परीक्षण से पहले दुनिया को भनक तक नहीं लगी थी और जब सबको इस बारे में पता चला तो दुनिया हैरान रह गई थी...
इस ऑपरेशन का नाम स्माइलिंग बुद्धा था। परमाणु परीक्षण वाले दिन बुद्ध पूर्णिमा भी पड़ रही थी। इसको ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने इस ऑपरेशन का नाम स्माइलिंग बुद्धा रखने का सुझाव दिया और मिसाइल पर स्माइलिंग बुद्धा का फोटो भी बनाया गया था। परमाणु परीक्षण टीम में 75 वैज्ञानिक शामिल थे। सुबह आठ बज कर पांच मिनट पर भारत ने अपने पहले परमाणु बम पोकरण का सफल टेस्ट कर पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया था। उस बम की गोलाई करीब 1.2 मीटर थी और वजन 1400 किलोग्राम था। इसकी वास्तविक विस्फोटक शक्ति 8 से 12 किलोटन टीएनटी थी।
यह भारत की एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि दुनिया की महाशक्तियों को भनक तक नहीं लगी और भारत ने परमाणु परीक्षण कर लिया। साथ ही यह दुनिया भर में मशहूर अमेरिकी खुफिया एजेंसी की यह बड़ी असफलता भी थी। हालांकि अमेरिका को संकेत मिल गया था कि भारत परमाणु परीक्षण कर सकता है लेकिन तत्कालीन निक्सन ऐडमिनिस्ट्रेशन ने भारत को कम करके आंका। इसका श्रेय भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च ऐंड अनैलिसिस विंग (रॉ) को भी जाता है। हालांकि अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने भारत को किसी भी परमाणु परीक्षण के परिणाम को लेकर चेताया था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी परवाह नहीं की और परमाणु कार्यक्रम को रुकने नहीं दिया।
भारत को परमाणु शक्ति बनाने का काम आजादी से कुछ साल पहले 1944 में ही शुरू हो गया था। इसका नेतृत्व महान भौतिक वैज्ञानिक होमी जे.भाभा ने किया था। होमी जे. भाभा के ही निर्देशन में भारत ने अपने इतिहास में परमाणु कार्यक्रम शुरू किया था। होमी भाभा ने भौतिक वैज्ञानिक राजा रमन्ना के साथ परमाणु कार्यक्रम पर काम करना शुरू किया। इसके बाद कई और बड़े वैज्ञानिक इस मुहिम से जुड़े। परमाणु कार्यक्रम ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में रफ्तार पकड़ी थी। जब यह सफल कार्यक्रम अंत तक पहुंचा तब देश की कमान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों में थी। उन्होंने भी देश के परमाणु कार्यक्रम को पूरा समर्थन दिया। वैज्ञानिकों ने भी इसे बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिसका नतीजा यह हुआ कि 1974 के आते-आते भारतीय वैज्ञानिकों का दल भारत को एक परमाणु बम देने में कामयाब हो गया।
टीम के लीडर भौतिक वैज्ञानिक राजा रमन्ना थे जो भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) के निदेशक थे। उन्होंने सिस्टम डिवेलपमेंट के काम में समन्वय के लिए डिफेंस रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) के तत्कालीन निदेशक और रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ.बसंती दुलाल नाग चौधरी के साथ मिलकर काम किया। पी.के.आयंगर ने डिवेलपमेंट के प्रयास में निर्देशन में अहम भूमिका निभाई और आर.चिदंबरम ने न्यूक्लियर सिस्टम डिजाइन का नेतृत्व किया। डॉ.नगापट्टिनम संबासिवा वेंकटेशन ने चंडीगढ़ स्थित डीआरडीओ टर्मिनल रिसर्च लैबरेट्री का निर्देशन किया जहां सिस्टम को बनाया गया।
पोकरण-I में अहम भूमिका निभाने वाले फिजिसिस्‍ट राजा रमन्‍ना ने अपनी ऑटोबायोग्रफी 'Years Of Pilgrimage' में वजह का खुलासा किया है। वे विस्‍फोट के दिनों को याद करते हुए लिखते हैं कि उस रोज इसपर थोड़ी बहस हुई कि बटन कौन दबाएगा। रमन्‍ना ने लिखा, 'मैंने यह सुझाव देकर चर्चा को विराम दिया कि जिस आदमी ने ट्रिगर तैयार किया है, उसे ही दबाना भी चाहिए। दस्‍तीदार को बटन दबाने के लिए चुना गया...।'
भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु शक्ति हासिल कर ली थी। जिन वैज्ञानिकों ने भारत को इस काबिल बनाया, वे नैशनल हीरो बन गए। 1975 में दस्‍तीदार को भारत के दूसरे सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान से नवाजा गया।
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