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दस साल से ज्यादा लंबी चली पेंशन पाने की कानूनी लड़ाई, अब आया ये फैसला

jantaserishta.com
20 Nov 2021 5:09 AM GMT
दस साल से ज्यादा लंबी चली पेंशन पाने की कानूनी लड़ाई, अब आया ये फैसला
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हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका।

नई दिल्ली: एक दशक से भी अधिक समय से कोर्ट कचहरियों के चक्कर काटकर पेंशन के लिए लड़ रही एक मृतक कर्मचारी की विधवा को पेंशन देने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है. कोर्ट ने इस आदेश के साथ उसकी लड़ाई को जीत के साथ विराम दे दिया है. जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा कि पेंशन लंबे समय तक सेवा करने के बाद दिया गया मुआवजा है. यह एक कर्मचारी को मिलने वाला संपत्ति की प्रकृति का ही कठिन लाभ है.

12 जनवरी 2011 को कर्मचारी की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद पेंशनभोगी की विधवा ने पेंशन योजना 1998 के प्रावधान अनुसार, अपने पति की पूर्ण मासिक पेंशन से 100 गुना के बराबर राशि का दावा किया. 30 सितंबर 2012 को दिए एक पत्र के अनुसार, उन्होंने कोल माइंस पेंशन स्कीम के तहत एकमुश्त राशि के भुगतान के लिए आवेदन किया।
हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
इसके बाद महिला का आवेदन खारिज हो गया तो उसने याचिका के जरिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने भी याचिका इस आधार पर खारिज कर दी कि पटना हाईकोर्ट के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर कोई कारण नहीं बनता है. पेंशनभोगी द्वारा दी की गई सेवाएं पटना हाईकोर्ट के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर थीं. इसलिए पेंशनभोगी की विधवा द्वारा दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं मानी गई.
दस साल तक चली लड़ाई में कोर्ट ने की ये टिप्पणी
अपील की सुनवाई में कहा कि कोल माइंस पेंशन स्‍कीम, 1998 को कोयला क्षेत्र में कर्मचारियों के लिए सामाजिक- आर्थिक न्याय दिलाए जाने के लिए कोल माइंस प्रोविडेंट फंड और विविध प्रावधान अधिनियम, 1948 की धारा 3-ई के तहत सामाजिक सुरक्षा के उपाय के रूप में तैयार किया गया था. कोर्ट ने कहा कि फिर भी एक दशक से अधिक समय तक कर्मचारी की विधवा को पेंशन पाने के लिए मुकदमा लड़ने के लिए मजबूर किया गया.
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