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ओबीसी आरक्षण का मुद्दा सरकार पर पड़ सकता है भारी

Nilmani Pal
16 Dec 2021 12:45 PM GMT
ओबीसी आरक्षण का मुद्दा सरकार पर पड़ सकता है भारी
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ओबीसी के राजनीतिक आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला महाराष्ट्र सरकार के गले की फांस बन गया है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया कि निकाय चुनाव में कोई ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जाएगा जो 27 फ़ीसदी सीटें इसके तहत आरक्षित की गईं है उसे सामान्य सीट में तब्दील कर चुनाव कराए जाएं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना जरूरी सूचनाएं जुटाए यह आरक्षण देने का फैसला लिया गया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार ने कल कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर स्थानीय निकाय चुनाव को 3 महीने आगे बढ़ाने की विनती चुनाव आयोग से की है. राज्य सरकार ने भले ही गेंद चुनाव आयोग के पाले में डाल कर चुनाव आगे बढ़ाने की विनती की हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग चुनाव आगे बढ़ाएगा इसकी उम्मीद कम ही है. आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय की आबादी लगभग 5 करोड़ है किसी भी राजनीतिक दल के समीकरण बनाने और बिगाड़ने में ओबीसी समुदाय निर्णायक साबित हो सकता है इस बात का अंदाजा सत्ता में बैठी शिव सेना एनसीपी कांग्रेस के साथ विपक्षी दल बीजेपी को भी है लिहाजा सरकार हो या विपक्ष हर कोई इस समुदाय के साथ खड़ा होता दिखाई दे रहा है.

महाराष्ट्र में 10 बड़ी महानगर पालिकाओं के निकाय चुनाव आने वाले वक्त में होने वाले हैं लिहाजा ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को सरकार जल्द लागू नहीं कर सकी तो इसका राजनीतिक नुकसान भी सरकार को उठाना पड़ सकता है . साल 2019 में ठाकरे सरकार जब सत्ता में आई उसी वक्त सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा जरूरी डेटा न दिए जाने के चलते ओबीसी के राजनीतिक आरक्षण पर रोक लगा दी थी. उस वक्त से ही विपक्ष में बैठी बीजेपी सरकार पर इस मुद्दे पर ढीला रवैया अपनाने का और ओबीसी समाज को अनदेखा करने का आरोप लगा रही है.

सच्चाई यह भी है कि कई महीनों तक सरकार में बैठी पार्टियां जरूरी डेटा मुहैया कराने के लिए सरकार पर आरोप लगाती रही तो इस डाटा को जमा करने के लिए महत्वपूर्ण पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना कर प्रक्रिया करती दिखी लेकिन जिस गति की आवश्यकता डाटा एकत्रित करने के लिए जरूरी थी वह करने में सरकार नाकामयाब रही है.

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