सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना में बदलाव, बंगाली उपराष्ट्रवाद का दुर्गा उपासक राम और जय श्रीराम का शस्त्र
कल सिल्लीगुड़ी में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण शुरू किया तो उद्घोष वही पुराना था - भारत माता की जय। देश को एक माले में पिरोने के इस सूत्र के अलावा आज नंदीग्राम, सिंगूर समेत पश्चिम बंगाल में भगवा झंडे के साथ जय श्रीराम का घोष सुनाई दे रहा है। राममय बंगाल के पीछे सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना में बदलाव है। ये भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के अथक प्रयासों से सामने आया है। राम कभी भी एक बंगाली हिंदू की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक चेतना में शीर्ष पुरुष नहीं रहे। चैतन्य महाप्रभु के वैष्णव बंगाल की विरासत और शक्ति की पूजा में राम का स्थान सर्वोच्च नहीं रहा। चैतन्य महाप्रभु को कृष्ण का अवतार भी माना जाता है। कृत्तिबासी ओझा ने श्रीराम पांचाली में लिखा कि भगवान राम ने रावण को हराने के लिए दुर्गा की अराधना की थी। कृत्तिबासी रामायण को वाल्मीकि रामायण का अनुवाद माना जाता है।