भारत
मंदिर में लगेगी श्रीराम के बाल रूप की मूर्ति, परिसर में महर्षि बाल्मीकि का भी बनेगा मंदिर
jantaserishta.com
19 April 2022 5:09 PM GMT
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नई दिल्ली: पिछले 70 साल से श्रीराम जन्मभूमि परिसर में स्थापित जिन मूर्तियों की पूजा-अर्चना लोग करते चले आ रहे हैं. उन मूर्तियों को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित नहीं किया जाएगा. भगवान श्रीराम की कितनी बड़ी और किस पत्थर से निर्मित मूर्ति स्थापित की जानी है, इसके बारे में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट देशभर के संतों से राय लेगा.
महर्षि बाल्मीकि का भी बनाया जाएगा मंदिर
अभी तक जिन मूर्तियों की पूजा-अर्चना हो रही है. उन्हें प्राण प्रतिष्ठित करने के बजाए उत्सव मूर्तियों का दर्जा मिलेगा. जिन्हें उसी मंदिर में स्थापित तो किया जाएगा लेकिन उन मूर्तियों को जीवंत नहीं माना जाएगा. इसी के साथ ही जो बड़ी खबर निकल कर सामने आई है. वह यह है कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के साथ-साथ महर्षि बाल्मीकि, माता शबरी, निषादराज जटायू, गणेशजी और माता सीता के मंदिर भी अगल-बगल ही बनाए जाएंगे.
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट और श्रीराम मंदिर निर्माण समिति की बैठक में कई बड़े फैसले लिए गए हैं. सबसे बड़ा फैसला यह कि पिछले 70 साल से श्रीराम की जिन मूर्तियों की पूजा-अर्चना लोग करते आ रहे हैं. उन मूर्तियों को भव्य और दिव्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित नहीं किया जाएगा. लेकिन श्रीराम की इन मूर्तियों के बारे में साधु, संत और मंदिर मस्जिद विवाद के दौरान कोर्ट में अधिवक्ता रहे यही बताते हैं कि यह मूर्ति प्रकट हुई है.
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय के मुताबिक, जिन मूर्तियों की अब तक लोग पूजा करते आए हैं. उन्हें प्राण प्रतिष्ठित नहीं किया जाएगा. यह उत्सव मूर्तियां होंगी, जिन्हें कहीं भी लाया ले जाया जा सकेगा. निर्माणाधीन मंदिर में श्रीराम की कितनी बड़ी और किस पत्थर से निर्मित मूर्ति लगेगी. इसके बारे में संतों से राय ली जाएगी. इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि जो भी मूर्ति लगेगी वह श्रीराम के बाल रूप की होगी.
उन्होंने कहा, 'मंदिरों का संचालन करने वाले सभी लोग जानते हैं कि एक मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति होती है. वह अचल मूर्ति होती है, स्थिर रहती है, उसे हटाया नहीं जा सकता. वह आकृति में बड़ी भी रहती है. दूसरी प्रतिमाएं चल प्रतिमा होती है. उन्हें उत्सव मूर्ति भी कह सकते हैं. किसी पूजा उपासना में उनको ग्रुप से बाहर निकाल कर ले आया जाता है, इसलिए 70 साल से जिन प्रतिमाओं का पूजन किया जा रहा था, वह अब उत्सव मूर्तियों का रूप ग्रहण करेंगी. आप बड़े मंदिर में किसी देखने जाइए प्रतिष्टित मूर्तियां और उत्सव मूर्तियां एक साथ रहती है एक ही सिंहासन पर.'
महासचिव चंपत राय ने बताया कि मीटिंग में 15 में से 14 ट्रस्टी उपस्थित थे. एक विचार यह आया है कि परिसर में रामलला के मंदिर के साथ-साथ महर्षि बाल्मीकि, माता शबरी, निषाद राज, जटायु, गणेश जी और माता सीता का मंदिर बनना चाहिए. इन बातों पर आज काफी चर्चा हुई है और लोगों ने सैद्धांतिक रूप से इसको स्वीकार किया है कहां बने कैसे बने, इसकी चर्चा आगे चलेगी.
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