अधिकारी को हाईकोर्ट ने बहाल करने कहा, CM के खिलाफ मैसेज करने का लगा था आरोप

यूपी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा व्हाट्सएप मैसेज भेजने के आरोप में बर्खास्त किए गए एक अधिकारी को बहाल करने का निर्देश दिया है। इस मैसेज में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर जातिवादी होने का आरोप लगाया गया था। न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा अतिरिक्त निजी सचिव के पद पर कार्यरत अमर सिंह की बर्खास्तगी, उनके अपराध की प्रकृति की तुलना में ज्यादा थी। अदालत ने पाया कि अमर सिंह के खिलाफ सरकार के पास एकमात्र साक्ष्य उनका स्वयं का लिखित बयान था, जिसमें उन्होंने गलती से मैसेज आगे भेजने और बाद में उसे डिलीट करने की बात स्वीकार की थी।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "राज्य सरकार द्वारा जांच अधिकारी या तकनीकी समिति के समक्ष कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया, जिससे यह साबित हो सके कि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर मैसेज फॉरवर्ड किया था ताकि सरकार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया जा सके।" इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि विभाग यह साबित करने में असफल रहा कि मैसेज को व्यापक रूप से पढ़ा गया या फैलाया गया, इसलिए यह कहना केवल अटकलें होंगी कि इससे सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा।
2018 में अमर सिंह को एक व्हाट्सएप मैसेज प्राप्त हुआ था जिसमें लिखा था, "यूजीसी के नियमों के अनुसार, ओबीसी और अनुसूचित जाति समुदायों के लिए अवसर प्रभावी रूप से बंद कर दिए गए हैं। इस रामराज्य के युग में, मुख्यमंत्री ठाकुर अजय सिंह योगी और उपमुख्यमंत्री पंडित दिनेश शर्मा जातिवाद समाप्त करने का दावा करते हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय में कुल 71 पदों में से 52 पद अपने ही जाति के व्यक्तियों को असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त कर रहे हैं।"
अमर सिंह ने यह मैसेज एक व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर कर दिया। हालांकि, उनके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई, लेकिन उन्होंने स्वेच्छा से सरकार को यह लिखित रूप में सूचित किया कि संदेश गलती से फॉरवर्ड हुआ और उन्होंने इसे डिलीट कर दिया। इसके बाद, सरकार ने उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की और आरोप लगाया कि इस आपत्तिजनक संदेश ने सरकार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया। 2020 में उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं।