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शातिर अपराधी का खेल खत्म, पार्षद को उतारा था मौत के घाट

5 Jan 2024 10:02 PM GMT
शातिर अपराधी का खेल खत्म, पार्षद को उतारा था मौत के घाट
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लखनऊ: एसटीएफ ने गोरखपुर के शातिर अपराधी विनोद उपाध्याय को सुलतानपुर में गोपालपुरवा के पास शुक्रवार तड़के मुठभेड़ में मार गिराया। उस पर पिछले साल सितम्बर में एक लाख रुपये इनाम घोषित हुआ था। विनोद के पास नाइन एमएम फैक्ट्रीमेड स्टेनगन, मैगजीन, कारतूस व एक कार बरामद हुई है। विनोद उपाध्याय फरारी के दौरान लखनऊ, …

लखनऊ: एसटीएफ ने गोरखपुर के शातिर अपराधी विनोद उपाध्याय को सुलतानपुर में गोपालपुरवा के पास शुक्रवार तड़के मुठभेड़ में मार गिराया। उस पर पिछले साल सितम्बर में एक लाख रुपये इनाम घोषित हुआ था। विनोद के पास नाइन एमएम फैक्ट्रीमेड स्टेनगन, मैगजीन, कारतूस व एक कार बरामद हुई है। विनोद उपाध्याय फरारी के दौरान लखनऊ, दिल्ली, मुम्बई में शरण लेता था। विनोद ने वर्ष 2007 में बसपा के टिकट पर गोरखपुर से सांसद का चुनाव भी लड़ा था। इसमें वह हार गया था। उसके खिलाफ लखनऊ के हजरगंज में हत्या का मुकदमा व दो अन्य मुकदमे विभूतिखंड व गोमतीनगर थाने में दर्ज हैं। एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश के मुताबिक विनोद उपाध्याय पिछले 30 सालों से वह गोरखपुर की रेलविहार कालोनी में रह रहा था। पिछले साल 24 मई को गोरखपुर में रहने वाले पूर्व सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता प्रवीण श्रीवास्तव से रंगदारी मांगी गई थी।

गोरखपुर के तिवारीपुर से सपा पार्षद रहे अफजल उर्फ फैजी की वर्ष 2003 में सात मार्च को लखनऊ में श्रीराम टावर के पास गोलियों से छलनी कर दिया गया था। उसकी मौके पर ही मौत हो गई थी। इस सनसनीखेज हत्याकाण्ड में माफिया विनोद उपाध्याय का नाम आया। तब उसके साथ ही दो और लोग नामजद हुये थे। यह एफआईआर हजरतगंज कोतवाली में दर्ज हुई थी। इस हत्याकाण्ड ने लखनऊ से गोरखपुर तक सनसनी फैला दी थी। अंडरवर्ल्ड में भी विनोद उपाध्याय का नाम तेजी से लिया जाने लगा था।

तत्कालीन एसएसपी राजीव कृष्ण और सीओ हजरतगंज दिनेश कुमार सिंह ने गोरखपुर में कई बार टीम भेजी। उस समय खुलासा हुआ था कि विनोद उपाध्याय का नेटवर्क गोरखपुर से लखनऊ तक फैला हुआ है। इसका फायदा उठाकर ही यह वारदात लखनऊ में की गई। कहा जाता है कि अफजल को गोरखपुर में मारना आसान नहीं था। यही वजह थी कि उसके लखनऊ तक आने का इंतजार किया जाता रहा था। सात मार्च को जब अफजल की सरेआम गोलियां बरसाकर हत्या की गई तो पूरा इलाका दहल उठा था। उस समय लखनऊ के लोगों ने माफिया के तौर पर विनोद उपाध्याय का नाम पहली बार सुना था।

वर्ष 2007 के बाद लखनऊ में विनोद उपाध्याय के खिलाफ दो और मुकदमे दर्ज हुये। वर्ष 2014 में गोमतीनगर थाने में विनोद के खिलाफ बंधक बनाने की एफआईआर हुई जबकि दूसरा मुकदमा विभूतिखंड में मारपीट, चोरी का लिखा गया। यह मुकदमा आपसी विवाद में लिखाया गया था।

वर्ष 1999 में विनोद उपाध्याय के खिलाफ पहला मुकदमा दर्ज हुआ था। दो साल बाद ही यानी वर्ष 2001 में सनसनीखेज तरीके से एक युवक की हत्या गोरखपुर में कर दी गई। इसमें विनोद के खिलाफ ही एफआईआर हुई। वर्ष 2003 में विनोद पर गुण्डा एक्ट लगा और उसे छह महीने के लिये जिला बदर कर दिया गया। इस दौरान ही उसने लखनऊ को अपना ठिकाना बना लिया। वह यहां कई माफिया गिरोह के सम्पर्क में रहा। इस बीच ही उसने युवाओं की एक फौज खड़ी कर ली थी जो उसके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहती। इनकी मदद से ही उसने गोरखपुर में कई व्यापारियों को धमका कर रंगदारी वसूली। गोरखपुर व आस पास उसकी तूती बोलने लगी थी। उसके डर से लोग एफआईआर तक कराने में घबराने लगे थे।

दावा यहां तक किया जाता है कि वर्ष 2007 में हजरतगंज इलाके में स्थित श्रीराम टॉवर के पास सपा के पार्षद अफजल उर्फ फैजी पर हमला करने में उसने लखनऊ में अपने नेटवर्क का ही सहारा लिया था। इनके जरिये ही वह हत्या के बाद सुबह होने तक लखनऊ में ही छिपा रहा था। उसे लखनऊ से भगाने में गिरोह के लड़कों ने काफी मदद की थी।

एसटीएफ के डिप्टी एसपी दीपक कुमार सिंह ने बताया कि विनोद के खिलाफ 45 मुकदमे दर्ज है। लेकिन एक भी मामले में उसे सजा नहीं हुई। उसके खिलाफ कोई गवाही देने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाता था। कई मुकदमे भी उसके खौफ में नहीं लिखे गये। उसे सात महीने से एसटीएफ और गोरखपुर पुलिस ढूंढ़ रही थी। वह काफी समय से अपनी पत्नी व बेटी के साथ फरार था।

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