सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, जहां सोशल मीडिया ने लोगों को जोड़ा है, तकनीक के उपयोग में उम्र के भेद खत्म किए हैं, वहीं ऑनलाइन अपशब्द कहने व ट्रोलिंग जैसे नए व्यवहार भी देखने को मिल रहे हैं। इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में भी दुरुपयोग, भ्रम फैलाने और लोगों को धमकाने व धौंस जमाने के खतरे मौजूद हैं। आईआईटी चेन्नई के 60वें दीक्षांत समारोह में उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि तकनीकी क्षेत्र से जुड़े आप सभी लोगों के लिए इन्हें दूर करना प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
सीजेआई ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और सोशल मीडिया सहित त्वरित संवाद को बढ़ावा दे रही तकनीकों के दुरुपयोग को लेकर चेताया है। उन्होंने कहा, ये तकनीकें हर क्षेत्र में पहुंच चुकी हैं, लेकिन बुनियादी मानव मूल्यों और व्यक्तिगत निजता को सर्वोच्च महत्व देते हुए इन्हें सभी के लिए उपयोग में लाना होगा, तभी दुरुपयोग रुकेगा।
एआई में पक्षपात, इसलिए मानवीय मूल्य जरूरी
सीजेआई ने कहा, मैं आप युवाओं के सामने मैं दो सवाल छोड़ रहा हूं, आप इन्हें खुद से पूछें। पहला, आपकी तकनीक किन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है? दूसरा, यह लोगों के लिए कितनी सुसाध्य है? यहां मूल्य का मतलब आपके विचार, इनोवेशन या तकनीक का वित्तीय मूल्य नहीं, बल्कि यह तकनीक किन उसूलों पर बनी है? खासतौर पर आप इसे जिस परिपेक्ष्य में रख रहे हैं, वहां यह किन मूल्यों को बढ़ावा देगी?
सीजेआई ने याद दिलाया कि एआई आधारित भर्तियों के दौरान कई पक्षपात व भेदभाव सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि कोई तकनीक जब वास्तविक दुनिया में उपयोग होती है तो वह निरपेक्ष नहीं रह पाती। इसी वजह से तकनीकी उपयोग के दौरान इसमें कुछ मानवीय मूल्य रखना, उनका प्रतिनिधित्व करना जरूरी है।
तकनीक का अस्तित्व शून्य में नहीं हो सकता, इसे सुसाध्य बनाना होगा
सीजेआई कहा कि तकनीक का अस्तित्व शून्य में नहीं हो सकता, इसलिए इन्हें सुसाध्य बनाना होगा। सभी के लिए इनका उपयोग आसान करने के उपाय करने होंगे। आम लोगों में इनकी वजह से निजी स्वतंत्रता खत्म होने की घबराहट नहीं होनी चाहिए, बल्कि इनका उपयोग विश्वसनीय होना चाहिए। सीजेआई के अनुसार, जहां सोशल मीडिया ने लोगों को जोड़ा है, तकनीक के उपयोग में उम्र के भेद खत्म किए हैं, वहीं ऑनलाइन अपशब्द कहने व ट्रोलिंग जैसे नए व्यवहार भी देखने को मिल रहे हैं। इसी तरह एआई में भी दुरुपयोग, भ्रम फैलाने और लोगों को धमकाने व धौंस जमाने के खतरे मौजूद हैं।
कार्यक्रम में आईआईटी मद्रास के निदेशक वी कामाकोटि ने बताया कि 60वें दीक्षांत में 2,571 विद्यार्थियों ने स्नातक पूरा किया है। वहीं, 453 को डॉक्टरेट डिग्री दी गई हैं, इनमें 19 को विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ संयुक्त डिग्री दी गईं। संस्थान के शासक मंडल अध्यक्ष पवन गोयनका ने बताया कि यहां शोध पर खर्च पिछली बार के 250 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,000 करोड़ किया गया है।
4.30 करोड़ सुनवाई ऑनलाइन
सीजेआई ने याद दिलाया कि कोविड-19 महामारी के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 4.30 करोड़ सुनवाई ऑनलाइन की। देशभर में अदालतों ने भी इसी प्रकार वकीलों और वादकारियों को पेश होने का मौका दिया और मुकदमों का निस्तारण किया। इस तरह तकनीक ने न्याय को समावेशी बनाने व सभी तक पहुंचाने का रास्ता दिया। टेली-लॉ ने भी लोगों को, खासतौर पर महिलाओं व बच्चों को कानूनी सेवाएं प्रदान करने में मदद की। इस समय प्रयोग के तौर पर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की सुनवाई के दौरान प्रतिलेखन के लिए एआई को उपयोग हो रहा है।