नई दिल्ली. दिल्ली जल बोर्ड हिंसा मामले में अदालत ने दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को निष्पक्ष तरीके से जांच करने का आदेश भी दिया. मंगलवार को मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में जिला सत्र न्यायाधीश ने सीसीटीवी फुटेज (CCTV Footage) को देखा और पुलिस अधिकारियों की तथ्यों की अनदेखी करने पर आलोचना की. अदालत ने हिंसा मामले में दर्ज निरर्थक एफआईआर (FIR) पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि एफआईआर महामारी अधिनियम की अत्यंत निम्न धारा में दर्ज की गई है, जो पूरी तरह से भ्रामक है. न्यायालय ने कहा कि घटना के सीसीटीवी फुटेज में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि भीड़ ने जल बोर्ड के दफ्तर को नुकसान पहुंचाया. इसके बावजूद सही धाराओं में केस दर्ज नहीं किया गया.
कोर्ट ने सुनवाई करते हुए डीसीपी से पूछा कि इस मामले की जांच वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को क्यों नहीं सौंपी जा रही, जबकि इस मामले में बड़े राजनेता शामिल हैं. अदालत ने सुनवाई के मौजूद पुलिस अधिकारियों को उनकी निष्क्रियता और सही प्रक्रिया नहीं अपनाने के लिए फटकार लगाते हुए कहा कि यह न्याय का मजाक उड़ाना है.
गौरतलब कि दिल्ली जल बोर्ड हिंसा मामले में उपाध्यक्ष राघव चड्ढा ने जांच की मजिस्ट्रेट निगरानी के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था. इसके बाद अदालत ने देशबंधु गुप्ता रोड के एसएचओ को निर्देश दिया था कि वह इस मामले में जांच की स्थिति के संबंध में एक स्टेटस रिपोर्ट दे. एडवोकेट प्रशांत मनचंदा द्वारा एडवांस स्टेटस रिपोर्ट पर दलीलें सुनने के बाद मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अदालत में जिला सत्र न्यायाधीश ने 15 फरवरी 2021 को पाया था कि घटना के सीसीटीवी फुटेज और वीडियो में दिख रहा है कि भीड़ ने बैरीकेट्स को पार कर लोहे के गेट और कांच तोड़ दिए और दिल्ली जल बोर्ड के गेट- फर्नीचर को नुकसान पहुचांया. इसके बावजूद अभी तक सही धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज नहीं की गई जबकि उस वक्त पुलिस अधिकारी उपस्थित थे.
कोर्ट की ओर से 15 फरवरी 2021 के आदेश में संबंधित डीसीपी से एक विशेष विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी. डीसीपी (मध्य दिल्ली) से स्पष्टीकरण के साथ विस्तृत रिपोर्ट के साथ यह बताने के लिए कहा कि प्राथमिकी में कड़ी धाराओं को क्यों नहीं जोड़ा गया? इसके अलावा किसी गवाह की जांच क्यों नहीं की गई? महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्र नहीं किए गए? अपराध टीम को मौके पर क्यों नहीं बुलाया गया? डीसीपी से पूछा कि इस मामले की जांच अतिरिक्त एसीपी/डीसीपी स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को क्यों नहीं सौंपी जा रही है, जबकि इस मामले में बड़े राजनेता शामिल हैं.