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हरिद्वार में पंचायती अखाड़ा श्रीनिरंजनी के श्रवणनाथ मठ
जनता से रिश्ता वेबडेस्क: हरिद्वार में पंचायती अखाड़ा श्रीनिरंजनी के श्रवणनाथ मठ के अध्यक्ष और एसएमजेएन पीजी कॉलेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष श्रीमहंत लखन गिरी की एम्स ऋषिकेश में निधन हो गया। श्रीमहंत लखन गिरि कोविड संक्रमित थे और पिछले 10 दिनों से एम्स ऋषिकेश में भर्ती थे.
पंचायती अखाड़ा श्रीनिरंजनी के श्रीमहंत लखन गिरि को करीब 20 दिन में पहले बुखार और खांसी की शिकायत के बाद जगजीतपुर के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यहां कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उनको एम्स ऋषिकेश भर्ती कराया गया था।
एम्स ऋषिकेश में बीते 10 दिनों से उनका इलाज चल रहा था। बुधवार को अचानक श्रीमहंत की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। डॉक्टरों के काफी प्रयासों के बाद भी शाम को उन्होंने दम तोड़ दिया। संत के ब्रह्मलीन होने से कुंभनगरी के संत समाज में शोक की लहर दौड़ गई।
पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव श्रीमहंत रविन्द्रपुरी ने बताया कि श्रीमहंत लखन गिरि अखाड़े के वृद्ध संत और अच्छे संत थे। कहा कि श्रीमहंत लखन गिरी त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने श्रीमहंत के कोविड संक्रमित होने की पुष्टि की है।
हाथ बांधे बैठी है विभाग की फौज, संक्रमितों की मौत हो रही हर रोज
हरिद्वार जिले में अस्पतालों में भर्ती होने वाले कोविड संक्रमितों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है। स्वास्थ्य विभाग के पास आईसीयू वेंटिलेटर और प्रशिक्षित स्टाफ भी है। इसके बावजूद गंभीर मरीजों को देहरादून और ऋषिकेश रेफर किया जा रहा है। रोजाना 50 से 60 गंभीर संक्रमित रेफर हो रहे हैं। वहीं समय पर इलाज न मिलने के चलते संक्रमितों की मौत का आंकड़ा भी दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है।
शासन ने कोविड संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग को 50 वेंटिलेंटर दिए थे। इनमें से 36 वेंटिलेंटर मेला अस्पताल और 14 वेंटिलेटर सिविल अस्पताल रुड़की में भेजे गए। इनमें अब तक केवल मेला अस्पताल में चार वेंटिलेंटर को इंस्टॉल किया गया है। जबकि इस महामारी के बीच 46 वेंटिलेटर दोनों अस्पतालों में धूल फांक रहे हैं।
वहीं हैरानी की बात है कि मेला अस्पताल में चार वेंटिलेंटर बेड पर एक भी गंभीर मरीज को भर्ती नहीं किया। सभी गंभीर मरीजों और हायर सेंटर भेज दिया जाता है। कई गंभीर मरीजों को देहरादून और ऋषिकेश के अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद भी बेड नहीं मिल पाता है। ऐसे में सरकारी बदहाली की कीमत मरीज को अपनी जान से चुकानी पड़ती है।
स्वास्थ्य विभाग प्रशिक्षित स्टाफ न होने का हवाला देते हुए अव्यवस्थाओं से पल्ला झाड़ लेता है। दरअसल, वेंटिलेटर बेड के संचालन के लिए एनेस्थेटिक और प्रशिक्षित स्टाफ की जरूरत होती है। जिले में तीन सरकारी कोविड अस्पताल हैं। जबकि स्वास्थ्य विभाग के पास चार एनेस्थेटिक भी है। वहीं जिले भर में 152 चिकित्सक और 159 स्टाफ नर्स हैं। जबकि आउटसोर्स पर वेंटिलेटर टेक्नीशियन की भर्ती की जा सकती है।
कोविड महामारी के शुरुआत में चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ को वेंटिलेटर के संचालन के लिए प्रशिक्षण भी दिया गया था। इन गंभीर परिस्थितियों में यदि 70 बेड के राजकीय मेला अस्पताल में रखे 36 वेंटिलेंटर चालू हो जाते तो गंभीर मरीजों को देहरादून और ऋषिकेश की दौड़ नहीं लगानी पड़ती है। वहीं समय से इलाज मिलने से मरीजों की जान बच पाती।
Deepa Sahu
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