भारत

भारत की जेलों का हाल: 'कैदी ज्यादा जेल कम', पढ़े चौकाने वाली रिपोर्ट

jantaserishta.com
3 Feb 2021 5:13 AM GMT
भारत की जेलों का हाल: कैदी ज्यादा जेल कम, पढ़े चौकाने वाली रिपोर्ट
x

फाइल फोटो 

भारत की जेलों में बंद 69 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं. यानी कि भारत की जेलों में बंद हर 10 में से 7 कैदी अंडरट्रायल हैं. यानी कि ये वो बंदी हैं जिन्हें अदालत से सजा नहीं मिली है, लेकिन वो जेल में बंद हैं. ये कैदी ट्रायल प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार कर रहे हैं. बहुत संभव है कि इनमें से कई कैदी बरी होकर बाहर आ जाएं. लेकिन धीमी न्यायिक प्रक्रिया, संसाधनों की कमी की वजह से इन्हें अपनी जिंदगी जेल में गुजारनी पड़ रही है.

ये तथ्य इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 के अध्ययन में सामने आई है. बता दें कि हाल ही में टाटा ट्रस्ट ने कुछ अन्य संस्थानों के सहयोग से इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2020 (India Justice Report-2020) जारी की है. यह रिपोर्ट देश के अलग-अलग राज्यों की न्याय करने की क्षमता का आकलन करती है.
टाटा ट्रस्ट की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 चार श्रेणियों में सर्वे के आधार पर तैयार की गई है. ये श्रेणी हैं पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी मदद.
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट कहती है कि भारत में कुल कैदियों में से दो तिहाई बिना दोष सिद्ध हुए ही कैद में हैं. इन पर न्यायिक प्रक्रिया चल रही है. न्यायिक भाषा में इन्हें विचाराधीन कैदी कहा जाता है. विचाराधीन कैदी वो व्यक्ति हैं जिन्हें कैद में रखा गया हो वह अपने अपराध की पुष्टि के लिए मुकदमे की प्रतीक्षा करता है.
जेलों में 19 फीसदी ज्यादा कैदी
रिपोर्ट के अनुसार भारत के कारागारों में भीड़भाड़ की स्थिति है. यानी कि यहां क्षमता से ज्यादा कैदी हैं. 2016 में जेल ऑक्युपेंसी रेट 114% थी जो 2019 में बढ़कर 119 फीसदी हो गई.
भीड़भाड़ वाली जेलें
35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अंडर ट्रायल कैदियों की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से ऊपर है. 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 5 साल से ज्यादा समय के विचाराधीन कैदियों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है.
भारत की जेल में प्रत्येक दोष सिद्ध कैदी पर दो अंडरट्रायल कैदी हैं. लॉकडाउन के कारण हो रही देरी, वकीलों के कोर्ट तक न पहुंच पाने से कैदियों का अधिकार और प्रभावित हुआ है.
देश में कैदियों की संख्या बढ़ी है. 2016 में देश में 4 लाख 33 हजार 3 कैदी थे, जबकि 2019 में ये संख्या बढ़कर 478600 हो गई. हालांकि हैरान करने वाला पक्ष ये है कि देश में जेलों की संख्या कम हो गई है. 2016 में देश में 1412 जेलें थीं जो अब कम होकर 1350 हो गई है. इससे जेलों में भीड़ और बढ़ी है.
दिल्ली और यूपी की जेलें भरी हुईं
आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली के जेलों में कैदियों की संख्या सबसे ज्यादा 175 फीसदी है यानी कि यहां की जिन जेलों में 100 कैदियों के रहने की क्षमता है वहां 175 कैदी रह रहे हैं. जबकि उत्तर प्रदेश में ये स्थिति 168 प्रतिशत थी. यहां जिन जेलों में 100 कैदियों के रहने की क्षमता है वहां 168 बंदी रहते हैं.
देश की सेंट्रल जेलों में सबसे ज्यादा भीड़भाड़ है. यहां क्षमता के अनुपात में 124 फीसदी कैदी रहते हैं, जबकि जिला जेलों में 130 फीसदी कैदी रहते हैं.
सामान्य आबादी की तुलना में जेलों में 2 गुने तेजी से फैलता है HIV, यौन रोग
जेल के बारे में एक चौंकाने वाला खुलासा इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में हुआ है. जेलों में सामान्य आबादी की तुलना में HIV, यौन संक्रमित रोग, हेपाटाइटिस बी और सी का प्रसार सामान्य आबादी की तुलना में 2 से 10 गुना अधिक है.
रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना संक्रमण की पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है, लेकिन दिसंबर 2020 तक 18000 से अधिक कैदी और कर्मचारी इसकी चपेट में आए थे.
जेलों में होने वाली मौतों में भी इजाफा हो रहा है. 2001 में प्रति 10 लाख मौतों की संख्या 311.8 थी जो कि 2016 में बढ़कर 382.2 हो गई. 2019 में इसमें मामूली गिरावट हुई और ये आंकड़ा 370.87 पर पहुंच गया.
जेलों में अधिकारियों के एक तिहाई पद खाली
भारत की जेलों में अधिकारियों की बड़ी संख्या में कमी है. अधिकारी स्तर पर बात करें तो आधे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में तीन में से एक पद खाली है. उत्तराखंड में 75 प्रतिशत वैकेंसी है, वहीं तेलंगाना ने इस दिशा में सुधार किया है और वहां रिक्तियां 1 फीसदी से भी कम है. जबकि कैडर स्टाफ की बात करें तो 29 प्रतिशत पद खाली है. झारंखड में 64 फीसदी पद खाली है.
मॉडल जेल मैनुअल 2016 के मुताबिक प्रत्येक 200 कैदियों के लिए एक सुधारक अधिकारी और प्रत्येक 500 कैदियों के लिए एक मनोवैज्ञानिक अधिकारी होना चाहिए. इसकी तुलना में अगर राष्ट्रीय औसत की बात करें ते 1617 कैदियों पर एक कल्याण अधिकारी और प्रत्येक 16503 कैदियों पर एक मनोचिकित्सक है. राज्यों के स्तर पर तो हालत और भी खराब है. यहां पर प्रति 50649 कैदी पर एक मनोचिकित्सक है. इसी कैटेगरी में उत्तर प्रदेश भी आता है.
आंध्र प्रदेश और सिक्कमि सहित नौ राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने यहां ऐसे पद की स्वीकृति ही नहीं दी है.

Next Story