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साइकिल से गिरे बच्चे की 2 बार हुई सर्जरी, डॉक्टरों ने किया अपंग से निजात दिलाने का दावा

Nilmani Pal
11 Oct 2023 12:12 PM GMT
साइकिल से गिरे बच्चे की 2 बार हुई सर्जरी, डॉक्टरों ने किया अपंग से निजात दिलाने का दावा
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एमपी। रायसेन जिले के सिलवानी में रहने वाला 11 वर्ष का एक बच्चा साइकिल चलाते हुए गिर गया. इससे उसकी गर्दन और सिर के बीच की हड्डी अपने स्थान से हट गई और इसने स्पाइनल कॉर्ड को दबा दिया. वह इस वजह से लगभग अपंग हो गया था. उसके हाथ और पैर दोनों ने काम करना बंद कर दिया था. वह अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा था. उसे अपने हर कार्य के लिए घर के सदस्यों पर निर्भर रहना पड़ता था. इस बच्चे का बीएमएचआरसी के न्यूरो सर्जरी विभाग में दो चरणों में सफल ऑपरेशन हुआ है. बच्चा अब पहले से काफी बेहतर है और अपने पैरों पर चलने लगा है. डॉक्टरों का कहना है कि बच्चा अगले 6 महीने में पूरी तरह ठीक हो जाएगा. बीएमएचआरसी के अतिरिक्त यह सर्जरी मप्र के चुनिंदा अस्पतालों में ही हो रही है.

बीएमएचआरसी के न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ संदीप सोरते ने बताया कि बच्चे के माता-पिता कई अस्पतालों से निराश होने के बाद बीएमएचआरसी आए थे. सीटी स्कैन और एमआरआई जांच करने के बाद बच्चे का दो चरणों में ऑपरेशन करने का फैसला किया गया. पहले चरण में स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव बना रही एक हड्डी को मुंह के रास्ते से सर्जरी कर काटा गया. इस पूरे ऑपरेशन में करीब 3-4 घंटे का समय लगा. न्यूरो सर्जरी विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. सौरभ दीक्षित ने बताया कि कुछ दिन बाद दूसरा चरण किया गया. इस चरण में गर्दन के पीछे की हड्डी को काटकर बाकी हड्डी को स्क्रू और रॉड से जोड़ा गया. इस तरह पूरी नस स्पाइनल कॉर्ड पर पड़ रहे दबाव को हटाया गया. इस चरण में कुल 7—8 घंटे का समय लगा. ऑपरेशन के बाद मरीज की फिजियोथेरेपी शुरू की गई.

बीएमएचआरसी के फिजियोथेरेपी विभाग में फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. नेहल शाह ने बताया कि ऑपरेशन से पहले मरीज की मांसपेशियों में कोई ताकत नहीं थी, जिसके लिए उसे हाथ-पैरों के कुछ व्यायाम करवाए गए. सांस के लिए भी कसरत बताई गई. ऑपरेशन के बाद जैसे-जैसे मांसपेशियों ने काम करना शुरू किया, उसे कुछ और व्यायाम करने के तरीके सिखाए गए और व्हीलचेयर पर घुमाया गया. फिर जैसे ही पैरों में और ताकत बढ़ी तो उसे डायनेमिक फुट-ड्रॉप स्प्लिंट लगा कर चलाया गया और डिस्चार्ज के समय घर के लिए भी व्यायाम सिखाया गया. फिजियोथेरेपी के कुछ दिन बाद अब उसकी हालत में धीरे—धीरे सुधार हो रहा है.

डॉ. दीक्षित ने बताया कि मरीज का एक बार में ऑपरेशन करना मुमकिन नहीं था, क्योंकि एक बार स्पाइन कार्ड पर दबाव बनाने वाली हड्डी को एक बार आगे से काटना था और एक बार पीछे से. बच्चे की उम्र कम थी, इसलिए उसे कितने समय तक बेहोश करके रखना है, इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी था. बीएमएचआरसी के निश्चेतना विभाग में प्रोफेसर डॉ. सारिका कटियार ने बताया कि ऑपरेशन के लिए मरीज को जनरल एनेस्थीसिया देना होता है. मरीज को बेहोश करने और कत्रिम सांस देने के लिए एक ट्यूब को मुंह से फेफड़ों तक पहुंचाया जाता है. चूंकि मरीज की स्पाइनल कॉर्ड गर्दन की हड्डी से दबी हुई थी, इसलिए ट्यूब को अंदर तक पहुंचाना बहुत रिस्की था. सर्जरी के बाद इस ट्यूब को बाहर निकालना भी उतना ही मुश्किल होता है. अगर थोड़ी भी गड़बड़ होती है, तो मरीज पैरालिसिस का शिकार हो सकता है.

ऑपरेशन के दौरान ऐसे मरीजों की हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर बढ़ता—घटता रहता है, इसे मेंटेन करना बहुत मुश्क़िल होता है. डॉ. संदीप सोरते ने बताया कि सिर और गर्दन का जोड़ काफी नाजुक होता है. इसके आसापास खून की बड़ी और प्रमुख धमनियां होती हैं, इसलिए ऑपरेशन करने में अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती है. ऑपरेशन के दौरान अधिक ब्लीडिंग होने का खतरा भी होता है. ऑपरेशन के बाद मरीज के लंबे समय तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर चले जाने की आशंका होती है.


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