जनता से रिस्ता वेबडेसक | केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राज्य सरकार किसी भी मामले में सीबीआई जांच के लिए सहमति वापस लेने के लिए व्यापक निर्देश जारी करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकती है। केंद्र सरकार ने कहा है कि केंद्रीय एजेंसी (सीबीआई) को किसी भी मामले में सहमति नहीं देने का निर्णय लेने की शक्ति या सभी मामलों में सहमति वापस लेने के लिए राज्य द्वारा एक व्यापक आदेश पारित करना अधिकारहीन अभ्यास और गैर-स्थाई है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राज्य सरकार द्वारा किसी भी मामले की जांच सीबीआई से कराने की सहमति वापस लेने का आदेश या सभी मामलों में सहमति वापस लेने का व्यापक आदेश, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा-6 के तहत मिली शक्ति का बेजा इस्तेमाल है। केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्य सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर केंद्र सरकार ने कहा है कि पश्चिम बंगाल राज्य का यह दावा है कि उसके पास सीबीआई से जांच वापस लेने की पूर्ण शक्ति है, आधारहीन है। केंद्र ने कहा है कि सीबीआई जांच के लिए सहमति देने की राज्य सरकार की शक्ति में किसी भी मामले में सहमति न देने या पहले से दी गई सहमति को वापस लेने के लिए व्यापक निर्देश पारित का अधिकार शामिल नहीं है
केंद्र सरकार का यह जवाब कई मामलों की जांच सीबीआई को देने के खिलाफ पश्चिम बंगाल द्वारा दायर एक मूल वाद (सूट) पर आया है। इन मामलों में चुनाव बाद हिंसा और कोयला चोरी का मामला शामिल है। याचिका में कहा गया है कि चूंकि तृणमूल कांग्रेस सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसी को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली गई है इसलिए दर्ज की गई प्राथमिकी पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि इस तरह की शक्ति का इस्तेमाल केस टू केस के आधार पर किया जाता है और इसके लिए अच्छे, पर्याप्त और मजबूत कारण होने चाहिए। दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा-6 के तहत राज्य सरकार को प्रदान की गई वैधानिक शक्ति को हमेशा बड़े जनहित में इसका उपयोग किया जाना चाहिए न कि किसी भी आरोपी को बचाने के लिए या विशुद्ध रूप से राजनीतिक कारणों से इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
अपने हलफनामेमें केंद्र सरकार ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि संघीय सिद्धांतों के बावजूद संविधान के एकात्मक पूर्वाग्रह को अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है। केंद्र ने कहा कि केंद्र सरकार ने खुद पश्चिम बंगाल में कोई मामला दर्ज नहीं किया है और न ही वह किसी मामले की जांच कर रही है। फिर भी दायर वाद में केंद्र सरकार को निर्देशित किया गया है।
हैरानी की बात यह है सीबीआई द्वारा प्राथमिकी दर्ज की गई है लेकिन उसे मुकदमे में पक्षकार नहीं बनाया है। शुक्रवार को जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस हलफनामे को रिकॉर्ड पर लेते हुए कहा कि इस मामले पर 16 नवंबर को सुनवाई की जाएगी। पीठ ने कहा कि जो पक्षकार केंद्र के हलफनामे पर जवाब देना चाहता है, वह 16 नवंबर से पहले देने के लिए स्वतंत्र है।