
अपनीबात : केंद्र सरकार ने लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने की बात फिर से छेड़ी है। उसने कहा कि यदि सभी राजनीतिक दल इस पर सहमत हों तो यह संभव हो सकता है। कुछ दिन पहले लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने इस प्रस्ताव पर विस्तार से बताया कि एक साथ चुनाव कराने से न केवल सरकारी खजाने को भारी बचत होगी, बल्कि राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों का व्यय भी घटेगा। इससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण लागू आदर्श आचार संहिता के चलते रुकने वाली विकास परियोजनाएं भी प्रभावित नहीं होंगी। हालांकि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सभी दलों और राज्य सरकारों को एक साझा मंच पर आकर कोई युक्ति निकालनी होगी। साथ ही संविधान एवं चुनावी कानूनों में भी कुछ संशोधन करने होंगे।
सरकार ने विधि आयोग से इस मुद्दे की मीमांसा करने का अनुरोध किया है। आयोग 1999 में पहले ही इसके पक्ष में सहमति व्यक्त कर चुका है। भले ही विधि आयोग की प्रतिक्रिया की नए सिर से प्रतीक्षा हो, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्रहित में एक साथ चुनाव का निर्णय विचारणीय अवश्य है। कम से कम इसके तीन प्रमुख कारण हैं। सबसे पहले तो हर साल देश में कहीं न कहीं होने वाली चुनावी चकल्लस से मुक्ति मिलेगी। दूसरा, चुनावों के चलते विकास कार्य बार-बार नहीं रुकेंगे। तीसरा, इससे चुनावी खर्च घटने के साथ ही चुनावों में काले धन का प्रभाव भी कम होगा।
