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बच्ची से रेप का मामला, हाईकोर्ट का ये फैसला चर्चा में आया

jantaserishta.com
22 Oct 2022 9:46 AM GMT
बच्ची से रेप का मामला, हाईकोर्ट का ये फैसला चर्चा में आया
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न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान | DEMO PIC 

सजा इस आधार पर कम कर दी कि दोषी ने 4 साल की पीड़िता के साथ रेप करने के बाद उसकी हत्या नहीं की।
इंदौर: मध्य प्रदेश की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में एक फैसला सुनाया, जिसमें उसने रेप करने वाले शख्स की आजीवन कारावास की सजा को 20 साल की सजा में बदल दिया। इंदौर खंडपीठ ने दोषी की आजीवन कारावास की सजा इस आधार पर कम कर दी कि दोषी ने 4 साल की पीड़िता के साथ रेप करने के बाद उसकी हत्या नहीं की। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर और जस्टिस एस.के. सिंह ने अपीलकर्ता को दोषी पाया लेकिन उसकी आजीवन कारावास की सजा को कम करना ठीक समझा।
खंडपीठ ने कहा,"ऐसी परिस्थितियों ने न्यायालय को ट्रायल कोर्ट द्वारा साक्ष्य की सराहना करने और अपील कर्ता भयानक कृत्य पर विचार करने में कोई त्रुटि नहीं मिलती है, जो महिला की गरिमा के लिए कोई सम्मान नहीं है। 4 साल की बच्ची से यौन अपराध करने के मामले में न्यायालय को यह उपयु्क्त मामला नहीं लगता है जहां पहले से दी गई सजा को कम किया जा सके, हलांकि इस तथ्य पर विचार करते हुए कि वह पीड़ित पक्ष को जीवित छोड़ने के लिए पर्याप्त दयालू रहा इसलिए अदालत की यह राय है कि आरोपी आजीवन कारावास की सजा को 20 सालों के कठोर कारावास में बदल दिया जाए।"
मामले में अपीलकर्ती 4 साल की बच्ची से रेप करने का दोषी है जिस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2) (एफ) के तहत केस दर्ज किया गया था। अब आरोपी ने अदालत में अपनी दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील दायर की थी। जिसकी सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने ये फैसला लिया।
अपीलकर्ता ने अदालत के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि, उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है। उसने यह भी बताया कि पीड़िता द्वारा एफएसएल रिपोर्ट को सामने नहीं लाया गया है। अपीलकर्ता ने तर्क दिया था कि यह ऐसै अपराध नहीं है जिसमें अजीवन कारावास की सजा दी जाए। अपीलकर्ता के विपरीत राज्य सरकार ने तर्क दिया कि आरोपी का अपराध नरमी के योग्य नहीं है। उसकी अपील को खारिज किया जाना चाहिए।
लाइव लॉ के अनुसार, पक्षकारों की दलीलों और निचली अदालत की जांच करते हुए कोर्ट ने कहा कि अपराध के लिए अपीलकर्ता को सही तरीके से दोषी ठहराया गया है। एफएसएल रिपोर्ट को रिकॉर्ड में नहीं लाने के संबंध में आपत्ति से निपटने के लिए न्यायालय ने माना कि यह पुलिस की ओर से की गई लापरवाही का उदाहरण है। इन सब के बाद भी कोर्ट ने माना कि तथ्यों की पूरी तरह से जांच की गई है उसके बाद सजा दी गई है।
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