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जानवरों का निवाला बना कैंसर पीड़ित बुजुर्ग बंदी का शव, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक मामला पहुंचने पर स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप

jantaserishta.com
5 Dec 2021 8:21 AM GMT
जानवरों का निवाला बना कैंसर पीड़ित बुजुर्ग बंदी का शव, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक मामला पहुंचने पर स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप
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आयोग ने स्वास्थ्य विभाग पर दो लाख का हर्जाना ठोका है.

बस्ती: स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से कैंसर पीड़ित बुजुर्ग बंदी के शव के अंग जानवर खा गए। मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक पहुंचने के बाद अब स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। आयोग ने स्वास्थ्य विभाग पर दो लाख का हर्जाना ठोका है, जिसे मृतक के वारिसों को दिया जाना है। मामले में शासन ने कड़ा रुख अपनाते हुए रिपोर्ट तलब की है। स्वास्थ्य विभाग ने तीन सदस्यीय टीम बनाकर रिपोर्ट तैयार कराई है, जिसे शासन को भेजा जाएगा।

संतकबीरनगर जिले के विचाराधीन बंदी 70 वर्षीय बंदी मोहम्मद वसील को जेल कर्मी 4 नवंबर, 2018 को गंभीर हालत में जिला अस्पताल लेकर आए थे। कैंसर का मरीज होने के कारण उसे खून की उल्टियां हो रही थीं। जिस समय कैदी को जिला अस्पताल लाया गया, उसकी मौत हो चुकी थी। इसके बाद शव को जिला अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया गया। मृतक के परिजनों ने आरोप लगाया कि विभाग की लापरवाही के कारण बुजुर्ग का शव दो दिन तक मर्चरी में पड़ा रहा। शव के अंगों को किसी जानवर ने खा लिया। बाएं कान और दायीं एड़ी के पास का हिस्सा गायब होने निशान मौजूद था। दाएं नितंब पर सफेद टेप लगाकर घाव छिपाया गया था। परिजनों की शिकायत पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले की जांच की। जांच में कई तथ्य सही पाए गए। आयोग का मानना है कि मामला दुखद और चौकाने वाला है। मृतक के शव को गरिमा व उचित सम्मान नहीं दिया गया। इस मामले में मानवाधिकार का उल्लंघन हुआ है। इस मामले में आयोग ने स्वास्थ्य विभाग पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है तो शासन ने विभाग से रिपोर्ट तलब की है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच में यह भी पाया गया कि जेल में बंदियों को उचित उपचार की सुविधा नहीं मिल रही है। इसका मुख्य कारण जेल में नियमित तौर पर चिकित्साधिकारियों की कमी है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से जिला जेल में अस्पताल का संचालन किया जाता है तथा चिकित्सक व अन्य स्टाफ की तैनाती की जाती है। बंदी के बीमार होने पर सबसे पहले जेल के अस्पताल में इलाज कराया जाता है। अगर हालत गंभीर होती है तो बंदी को जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाता है। बंदी मोहम्मद वसील को समय से जिला अस्पताल नहीं पहुंचाया गया। जेल के अस्पताल में कोई चिकित्सक अपनी तैनाती नहीं चाहता है। यही कारण है कि वहां या तो अस्पताल चिकित्सक विहीन होता है या कामचलाऊ व्यवस्था के तहत अस्पताल का संचालन किया जाता है।
'शासन से इस संबंध में पत्र आया है। टीम बनाकर मामले की जांच की जा रही है। रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी। शासन स्तर से आगे का निर्णय लिया जाएगा।'
-डॉ. एफ हुसैन, प्रभारी सीएमओ, बस्ती


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