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पास्ता और आईसक्रीम में मिलेगी काला नमक चावल की सुगंध और पौष्टिकता
jantaserishta.com
9 Oct 2022 6:06 AM GMT
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विवेक त्रिपाठी
लखनऊ (आईएएनएस)| सुगंध एवं स्वाद के लिए प्रसिद्ध काला नमक चावल को ज्यादा बड़ा बाजार मुहैया कराने की कवायद की जा रही है। चावल से इतर अब इससे पास्ता, कुकीज आइसक्रीम बनाये जाने पर काम चल रहा है। इसका मकसद लोगों तक इसकी खास सुंगध के साथ-साथ पौष्टिकता के लाभ को लोगों तक पहुंचाना है।
कालानमक चावल पोषक तत्वों की वजह से अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र (इरी) वाराणसी इस पर काम भी कर रहा है। इरी में इस बाबत जारी शोध अंतिम चरण में है। इसमें अपेडा (एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्टस एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथारिटी) भी सहयोग कर रहा है।
इरी के दक्षिण एशिया रीजन के निदेशक डॉक्टर सुधांशु सिंह और वैज्ञानिक डॉक्टर सौरभ भदोनी के मुताबिक पास्ता, बिस्किट, आइसक्रीम, ब्रेड, कुकीज के रूप में प्रसंस्कृत करने पर शोध कार्य चल रहा है।
इरी वाराणसी के वैज्ञानिक डॉक्टर सौरभ भदोनी बताते हैं कि काला नमक चावल की सुगंध व पौष्टिकता पर शोध कार्य चल रहा है। पहले काला नमक के चावल से पास्ता, कुकीज और आईसक्रीम तैयार किया। काला नमक चावल से भी स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद तत्वों को संग्रहित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इसकी खुशबू बासमती से चार-पांच गुना ज्यादा है। इसके खाने का स्वाद बेजोड़ है। इसमें पोषक तत्व सामान्य चावल से ज्यादा होता है।
डॉ सौरभ ने बताया कि हम लोग काला नमक चावल की गुणवत्ता चेक करते है। एरोमा की वाराईटी वाले करीब दस से बारह जगह ही अच्छे सैम्पल मिले हैं। अच्छी गुणवत्ता वाले चावल से पास्ता, कुकीज और आईसक्रीम तैयार कर रहे हैं। काला नमक चंदौली वाला देखने मे अच्छा लगता है। इसमे न्यूट्रीयंेट्स अच्छे मिले हैं। इससे पास्ता तैयार किये जा रहे हैं। मणिपुर के काले चावल का उपयोग किया गया। मणिपुर के ब्लैक राइस में प्रोटीन और आयरन अच्छा होता है। इसके अलावा पौष्टिकता से भरपूर मुस्ली को भी बनाने पर शोध कार्य चल रहा है। साथ ही ब्रेड बनाने का काम अभी पाइपलाईन में है। आईसक्रीम में दूध मिलाकर बनाया जा रहा है। सिद्धार्थनगर के कालानमक में खुशबू बहुत अच्छी है। डॉ सौरभ ने बताया कि शुगर नियंत्रण रखने के लिए बहुत सारी विभिन्न प्रजाति हैं। उन्होंने बताया कि डॉ हमीदा काला नमक से उत्पाद बनाने में सहयोग कर रही हैं।
कालानमक चावल में परंपरागत चावल की किस्मों की तुलना में जिंक एवं आयरन अधिक होता है। जिंक दिमाग के लिए जरूरी है। रही आयरन की बात तो इसकी कमी की वजह से होने वाली एनीमिया (रक्तअल्पता) आम हिंदुस्तानियों खासकर किशोरियों एवं महिलाओं में आम है। कालानमक चावल का गलेशमिक इंडेक्स भी तुलनात्मक रूप से कम होता है। लिहाजा यह शुगर के रोगियों के लिए भी कुछ हद तक मुफीद है।
वैज्ञानिकों की मानें तो सामान्य चावल में प्रोट्रीन 5-6 फीसद जबकि काला चावल में 8.5 प्रतिशत, वहीं काला नमक में 10. 6 प्रतिशत पाया जाता है। सामान्य चावल में वसा 0.52 ग्राम, काला चावल में 2.0 प्रतिशत और काला नमक में 0.51 ग्राम मिलता है। सामान्य में काबोर्हाइड्रेट 88 प्रतिशत, काला में 88 प्रतिशत जबकि काला नमक में 87.96 प्रतिशत होता है। सामान्य में विटामिन ए जीरो, काला चावल में भी जीरो वहीं काला नमक में 0.42 मिली ग्राम/ 100 ग्राम है। सामान्य में जिंक 0.1 मिली ग्राम/100 ग्राम, काला में 0.1 मिली ग्राम/100 ग्राम वहीं काला नमक में 0.4 मिली ग्राम/ 100 ग्राम होता है। सामान्य और काला में सुगन्ध नहीं होती है। जबकि काला नमक अत्यंत सुगंधित होता है।
करीब एक दशक पहले केंद्र सरकार ने देश के कुपोषित जिलों के लिए एक न्यूट्री फॉर्म मैनेजमेंट योजना तैयार की थी। मकसद यह था कि संबंधित जिलों में वहां की कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार उन फसलों को प्रोत्साहित किया जाय, जिनमें अधिक पोषक तत्वों हों। उस समय इन 100 जिलों में करीब तीन दर्जन जिले उत्तर प्रदेश के थे इसमें भी करीब 12 जिले पूर्वी उत्तर प्रदेश के थे। बाद में वर्तमान केंद्र सरकार ने कई मानकों के आधार पर देश के जिन 115 जिलों को आकांक्षात्मक जिलों को चुना उनमें पूर्वांचल के तीन जिले शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि कालानमक धान का इतिहास करीब छह हजार साल पुराना है। इसे भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है। इसकी तमाम खूबियों के ही नाते योगी सरकार-1 में शुरू की गई फ्लैगशिप योजना में इसे सिद्धार्थनगर का ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) घोषित किया गया। इसके बाद खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसकी ब्रांडिंग में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसी क्रम में कपिलवतु में कालानमक चावल महोत्सव भी आयोजित किया गया है। एक ही छत के नीचे सारी आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराने के लिए वहां कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) का निर्माण कराया गया।
कृषि वैज्ञानिक आरसी चौधरी के मुताबिक अब तक चावल के लिए काला नमक धान की कुटाई परंपरागत पुरानी मशीनों से होता था। अधिक टूट निकलने से दाने एक रूप नहीं होते थे। भंडारण एवं पैकेजिंग एक बड़ी समस्या थी।
सीएफसी में हर चीज की अलग व्यवस्था होगी। पहले धान को स्टोनर मशीन से गुजारा जाएगा। इससे इसमें कंकड़-पत्थर अलग हो जाएंगे। धान से भूसी अलग करने और पॉलिशिंग की मशीनें अलग-अलग होंगी। असमान दानों के लिए शॉर्टेक्स मशीन होगी। उत्पादक की मांग के अनुसार पैकिंग की भी व्यवस्था होगी। धान के भंडारण के लिए सामान्य और तैयार चावल को लंबे समय तक इसकी खूबियों को बनाए रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था होगी।
काला नमक धान को पूर्वांचल के 11 जिलों (गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर और गोंडा) के लिए जीआई प्राप्त है। मसलन इन जिलों की एग्रो क्लाइमेट (कृषि जलवायु) एक जैसी है। लिहाजा इस पूरे क्षेत्र में पैदा होने वाले काला नमक की खूबियां समान होंगी। इनमें से बहराइच एवं सिद्धार्थनगर नीति आयोग के आकांक्षात्मक जिलों की सूची में शामिल हैं।
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