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'किशोरियां यौन इच्छा पर काबू रखें'...सलाह देने वाले रिटायर्ड जज ने अपने फैसले पर खुलकर की बात

jantaserishta.com
15 July 2024 7:47 AM GMT
किशोरियां यौन इच्छा पर काबू रखें...सलाह देने वाले रिटायर्ड जज  ने अपने फैसले पर खुलकर की बात
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सांकेतिक तस्वीर

बीते साल सुनाए फैसले में उन्होंने किशोरियों के कुछ 'कर्तव्यों' का भी जिक्र किया था।
नई दिल्ली: किशोरियों को सेक्स की इच्छा नियंत्रित करने की सलाह देने वाले रिटायर्ड जज चितरंजन दास ने अपने फैसले पर खुलकर बात की। हाल ही में दिए एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि कोई भी पिता अपनी बेटी को ऐसी ही सलाह देगा। खास बात है कि इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी आपत्ति जताई थी। जस्टिस ओडिशा और कलकत्ता उच्च न्यायालय में सेवाएं दे चुके हैं।
बीते साल सुनाए फैसले में उन्होंने किशोरियों के कुछ 'कर्तव्यों' का भी जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि किशोरियों को 'यौन इच्छाएं/इच्छाओं को नियंत्रित करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि जब वह महज दो मिनट के यौन आनंद के लिए ऐसा करती हैं, तो समाज की नजरों में लूजर साबित हो जाती हैं।' इसपर शीर्ष न्यायालय का कहना था कि न्यायिक आदेशों में ऐसी टिप्पणियां गलत संदेश देती हैं।
बार एंड बेंच से बातचीत में सीआर दास ने कहा कि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है और इसपर मुझे कुछ नहीं कहना चाहिए। उन्होंने कहा, 'मैं बस इतना कह सकता हूं कि मैं कहीं भी पीड़िता को शर्मिंदा करने में शामिल नहीं हूं। पूरा फैसला रिसर्च का काम है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट भी है, जिसमें कहा गया है कि इस आयुवर्ग के लोगों को सेक्स करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।'
उन्होंने कहा, 'इसके बाद मैंने स्टैंड लिया है कि ऐसा सही नहीं हो सकता, क्योंकि यह कानून के तहत अपराध है और उस कानून को असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता। कोई भी हक आधारित दृष्टिकोण नहीं अपना सकता है। इसे कर्तव्य आधारित होना चाहिए। जहां तक सेक्स की बात है, तो आपको अपराध से दूर रहने के लिए इस अवधि में इससे बचना चाहिए।'
उन्होंने कहा, 'दिशानिर्देश जारी करने के दौरान मैंने समाज की सच्चाई को बताया है। मैंने अपना व्यू नहीं दिया। मेरा फैसला बहुत लंबा नहीं और मुझे लगता है कि आदेश में शायद कुछ गलत होगा, लेकिन इसे ठीक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट वहां था।' उन्होंने कहा, 'लेकिन मैं अपने फैसले पर अडिग हूं और इससे पीछे नहीं हट सकता।'
उन्होंने कहा, 'इसे देखने का एक और नजरिया यह हो सकता है कि फैसला एक पिता की अपनी बेटी को सलाह थी। अगर मेरी बेटी भी किसी व्यक्ति के साथ प्रेम प्रसंग में होती और डेट करती, तो मैं खुलकर उसे बोलता कि तुम डेटिंग पर जा सकती हो पर सेक्स से दूर रहो। छोटी सी बात को बड़ा बनाया जा रहा है। कोई भी पिता अपनी बेटी को ऐसी ही सलाह देगा।' उन्होंने साफ किया है कि इस फैसले का आरएसएस से कोई लेना देना नहीं था।
उन्होंने कहा, 'आखिरकार हम सभी भारतीय हैं...। इसमें कोई शक नहीं है कि हम एक आधुनिक समाज में रहते हैं, लेकिन ढांचा पारंपरिक है। हमारे समाज में सेक्स अभी तक टैबू है। मैं कई जगहों पर गया हूं। फिर चाहे वो गांव हो या शहर, लोगों से बात करने के बाद मैं यह कह सकता हूं समाज के कई वर्गों में सेक्स टैबू है। आप POCSO के स्टैटिस्टिक्स से भी देख सकते हैं। अधिकांश मामले मिडिल क्लास से आते हैं, हाई क्लास से नहीं। इसलिए मैंने कहा कि मेरा फैसला एक पिता की बेटी को सलाह थी।'
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