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बेंगलुरु मे छात्रों की टीम ने किया कमाल, पोर्टेबल मशीन चुटकियों में इकट्ठा कर लेगी प्लास्टिक थैला

Apurva Srivastav
2 March 2021 2:58 PM GMT
बेंगलुरु मे छात्रों की टीम ने किया कमाल, पोर्टेबल मशीन चुटकियों में इकट्ठा कर लेगी प्लास्टिक थैला
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प्लास्टिक कचरे की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए बेंगलुरु के छात्रों की टीम ने एक ऐसी पोर्टेबल मशीन (Portable Machine) बनाई है

प्लास्टिक कचरे की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए बेंगलुरु के छात्रों की टीम ने एक ऐसी पोर्टेबल मशीन (Portable Machine) बनाई है, जो प्लास्टिक के थैलों (Plastic Bags) को बड़ी कुशलता से चुटकियों में ही इकट्ठा कर लेती है. कमाल की बात ये है कि यह मशीन बहुत कम लागत से बनाई गई है. तमिलनाडु के सेलम में सोना कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी के अंतिम वर्ष के 6 इंजीनियरिंग छात्रों ने यह मशीन बनाई है, जिसका अभी नगरपालिका (म्यूनिसिपल) के अंदर की सड़कों पर टेस्ट किया जा रहा है.

इस प्रोजेक्ट के लीडर टी.वी.किशोर कुमार (TV Kishore Kumar) ने बताया, "प्लास्टिक कचरा इकठ्ठा करने वाली ये मशीन सड़कों पर पड़े प्लास्टिक को सेंसर्स के जरिए पहचान सकती है और उसे अपनी ओर खींच सकती है. इस मशीन का इस्तेमाल इमारतों में होलो ब्लॉक्स, पॉवर ब्लॉक्स आदि से प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करने में भी किया सकता है." इस प्रोजेक्ट में किशोर कुमार के साथ उनके सहपाठी एन जिवेथ खान, आर आकाश, एस लोकेश्वर, आर दिनेश बाबू और आर इलवरसन ने काम किया है.

पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्या है प्लास्टिक कचरा
इन सभी ने मिलकर भारत को प्लास्टिक मुक्त (Plastic-Free) बनाने के अभियान में अपना योगदान देने के लिए यह मशीन बनाई है. प्लास्टिक कचरा (Plastic waste) सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्या बन चुका है. दुनिया का करीब आधा खतरनाक प्‍लास्टिक हमारे समुद्रों में डंप हो रहा है. इससे समुद्री जीवन तो खत्‍म हो ही रहा है, रिसर्च बताती है कि यह प्‍लास्टिक अब हमारी फूड चेन (Food) में घुस चुका है और सेहत को बेहद नुकसान पहुंचा रहा है.

साल 2022 तक और बढ़ जाएगा प्लास्टिक का इस्तेमाल
हाल ही में फिक्की के लगाए गए अनुसार के अनुसार, साल 2017 में भारत में हर व्यक्ति ने सालाना 11 किलोग्राम प्लास्टिक का इस्तेमाल किया, जो साल 2022 तक बढ़कर 20 किलो सालाना तक हो जाएगी. प्लास्टिक का यह बढ़ता कचरा जमीन, नदी और समुद्री जीवन को खतरे में डाल रहा है. एक रिसर्च के मुताबिक, एक साल में एक व्यस्क व्यक्ति खाने-पानी और सांस के जरिए प्लास्टिक के 52 हजार से ज्यादा माइक्रो कण निगल रहा है. लगभग सभी ब्रांडेड बोतल बंद पानी में भी प्लास्टिक के ये महीन कण मौजूद होते हैं.


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