महाराष्ट्र। देश के ज्यादातर मामले में तलाक के बाद पति को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना पड़ता है, लेकिन महाराष्ट्र में एक ऐसा मामला सामने आया है जहां महिला अपने पूर्व पति को महीने का गुजारा भत्ता देगी. दरअसल हाल ही में महाराष्ट्र के नांदेड़ में एक मामला सामने आया है जिसमें स्थानीय कोर्ट ने महिला को अपने पूर्व पति को हर महीने 3,000 रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था. अब उस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा है. इसके अलावा पूर्व पति की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए कोर्ट ने जिस स्कूल में महिला पढ़ाती है उसे भी निर्देश दिया कि वह हर महीने महिला की सैलरी से 5 हजार रुपये काट कर उसे कोर्ट में जमा करवाए.
दरअसल दोनों का विवाह 17 अप्रैल 1992 को हुआ था. शादी के कुछ सालों बाद पत्नी ने क्रूरता को आधार बनाते हुए कोर्ट से इस शादी को भंग करने की मांग की थी जिसे साल 2015 में स्थानीय कोर्ट ने मंजूरी दे दी. तलाक के बाद पति ने नांदेड़ की निचली अदालत में याचिका दायर करते हुए कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और पत्नी के पास जॉब है जिसे देखते हुए उसने पत्नी से 15,000 रुपये प्रति माह की दर से स्थायी गुजारा भत्ता देने की मांग की. पति का तर्क था कि उसके पास नौकरी नहीं है जबकि उसकी पत्नी पढ़ी लिखी है.
पति ने याचिका दायर करते हुए दावा किया कि उसने पत्नी को पढ़ाने में काफी योगदान दिया है. उसने कहा कि पत्नी को पढ़ाने के लिए उसने अपनी कई महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार किया और घर से जुड़ी चीजों को मैनेज किया था. पति ने दलील दी कि उसे स्वास्थ्य से जुड़ी कईं समस्याएं है जिसके कारण उसकी सेहत ठीक नहीं रहती. जबकि उसकी पत्नी महीने का 30 हजार कमाती है. एक तरफ जहां पति ने गुजारा भत्ता देने की अपील की वहीं पत्नी का कहना था कि उसके पति के पास किराने का दुकान है और उसके पास एक ऑटो रिक्शा भी है. महिला ने कहा कि उसका पति उसकी कमाई पर निर्भर नहीं है लेकिन इस रिश्ते में उसकी एक बेटी भी है जो मां की कमाई पर निर्भर है. इसलिए पति द्वारा किए गए गुजारा भत्ता के मांग को खारिज किया जाना चाहिए.
पति- पत्नी की दलील सुनते हुए निचली अदालत ने साल 2017 में आदेश दिया कि महिला को अपने पति को 3,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता के रूप में भुगतान करना पड़ेगा. हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद भी महिला पूर्व पति को पैसे नहीं दे रही थी जिसे देखते हुए साल 2019 में एक और आदेश दिया गया जिसमें कोर्ट ने आवेदन की तारीख से याचिका के निपटारे तक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया.
वहीं महिला ने कोर्ट के दोनों फैसले को चुनौती दी थी. जिसे बरकरार रखते हुए जस्टिस डांगरे ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 का हवाला दिया. इस अधिनियम में बेसहारा पत्नी या पति के लिए गुजारा भत्ता देने का प्रावधान है.