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टीचर बने विधायक, दूर-दूर तक नहीं था राजनीति से नाता

Nilmani Pal
11 March 2022 12:22 PM GMT
टीचर बने विधायक, दूर-दूर तक नहीं था राजनीति से नाता
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यूपी। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी ने बाजी मारी है और प्रचंड बहुमत हासिल किया है. इस बार कई मंत्री चुनाव हार गए, लेकिन कई ऐसे नेता चुनाव जीत गए जिनका सक्रिय राजनीति से दूर-दूर तक नाता न था. ऐसे ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली के चकिया सुरक्षित सीट से भाजपा के नवनिर्वाचित विधायक कैलाश खरवार. पेशे से सरकारी अध्यापक रहे कैलाश खरवार ने 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को हराकर जीत हासिल की है. कैलाश खरवार मूल रूप से चकिया विधानसभा के सिकंदरपुर इलाके के उदयपुर गांव के रहने वाले हैं. बेहद साधारण व्यक्तित्व के कैलाश खरवार पिछले 40 साल से अधिक वक्त से आरएसएस से जुड़े हुए हैं.

पहले वह सरस्वती शिशु मंदिर में अध्यापक थे. उसके बाद इनकी नौकरी सरकारी विद्यालय में लग गई. जहां पर वह सहायक अध्यापक के रूप में कार्यरत थे. कैलाश खरवार को इसी मार्च के महीने मे इनको रिटायर होना था, लेकिन जब भाजपा ने इनको चकिया सुरक्षित सीट से अपना प्रत्याशी बनाया तो नियमानुसार इन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी.

परिवार की बात करें तो कैलाश खरवार के परिवार में पत्नी, एक बेटा और दो बेटियां हैं, जिनमें एक बेटी की शादी हो चुकी है. बताया जाता है कि कैलाश खरवार बेहद ही साधारण व्यक्तित्व के मालिक हैं. बेहद सज्जन है और हर किसी के सुख दुख में शामिल रहते हैं. किसी की भी जरूरत पड़ी तो यह साइकिल और झोला उठाकर उसकी मदद के लिए निकल पड़ते थे. पहले तो इनके पास महज एक साइकिल थी लेकिन बाद में उन्होंने स्कूटी खरीदी. आज की तारीख में इनके पास वाहन के नाम पर सिर्फ एक पुरानी स्कूटी है जिससे वह स्कूल आया जाया करते हैं. इस स्कूटी को उन्होंने सन 2016 में खरीदा था उस वक़्त ख़रीदा था जब बढ़ती उम्र के साथ इनको साइकिल चलाने में दिक्कत होने लगी थी.

संघ के समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं कैलाश खरवार

उधर आरएसएस में भी इनकी काफी अच्छी पकड़ है और इन्होंने संघ के लिए जमीनी स्तर पर बहुत सारे काम किए हैं. यही वजह थी कि भाजपा ने इनको चकिया सुरक्षित सीट से अपना प्रत्याशी बनाया. बताते हैं कि कैलाश खरवार से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया तो पहले तो वह तैयार ही नहीं हो रहे थे. उनका कहना था कि उन्हें सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका नहीं निभानी है और संघ से जुड़े रहकर संघ के कार्यों को करना है, लेकिन जब संगठन और पार्टी ने उन्हें काफी समझाया, तब जाकर वह चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुए. चुनाव लड़ने में तकनीकी समस्या आ रही थी कि कोई भी व्यक्ति सरकारी नौकरी रहते हुए चुनाव नहीं लड़ सकता.

लिहाजा कैलाश खरवार ने रिटायरमेंट के कुछ दिन पहले नौकरी से वीआरएस ले लिया. चकिया सुरक्षित भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक शारदा प्रसाद का टिकट काटकर कैलाश खरवार को जब प्रत्याशी बनाया तो लोगों को काफी आश्चर्य हुआ था.क्योंकि इलाके में कैलाश खरवार की पहचान कुछ और ही थी और सक्रिय राजनीति से इनका कुछ भी लेना देना नहीं था. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने जितेंद्र कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया. जितेंद्र कुमार कई साल पहले बसपा में थे और बसपा से विधायक भी चुने गए थे. राजनैतिक रूप से कैलाश खरवार की पहचान अपने प्रतिद्वंद्वियों से काफी अलग थी. लेकिन कैलाश खरवार ने अपने उसी पहचान के बल पर जीत हासिल की जिसके लिए वह जाने जाते थे.

यानी बेहद साधारण व्यक्तित्व और राजनैतिक दांव पेचों से कोसों दूर रहने वाले कैलाश खरवार को चकिया की जनता ने सिर माथे पर बिठाया और अंततः कैलाश खरवार विधायक चुने गए. इस चुनाव में कैलाश खरवार को कुल 97812 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के जितेंद्र कुमार को 88561 वोट मिले. वहीं इस चकिया सुरक्षित सीट से बहुजन समाज पार्टी के विकास कुमार को 44530 मत मिले.

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