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काबुल में तालिबान का अतिवाद

Nilmani Pal
28 Dec 2022 5:07 AM GMT
काबुल में तालिबान का अतिवाद
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

पिछले साल काबुल में तालिबान की सरकार कायम हुई तो मुझे आशा थी कि पिछली तालिबानी सरकार की तुलना में यह सरकार अधिक उदार और समझदार होगी। काबुल और दोहा के कई तालिबानी नेताओं से मेरा संपर्क भी हुआ। पुराने तालिबान भी इस बार काफी संयत लगे। नए तालिबान नेता, जो विदेशों में पले-बढ़े हैं, उनकी पृष्ठभूमि देखते हुए लगता था कि वे अपने बुर्जुगों की गल्तियों से कुछ सीखेंगे। इसी आशा में भारत सरकार ने हजारों टन अनाज और दवाइयां काबुल भिजवाईं और अपने दूतावास को भी सक्रिय कर दिया। कुछ माह तक लगता रहा कि ये नए तालिबान पश्तूनी आर्य परंपरा का पालन करेंगे। वे स्त्रियों की समानता और शिक्षा के मामले में प्रगतिशील रूख अपनाएंगे। शुरु में उन्होंने कुछ ढील दी भी लेकिन अब उन्होंने औरतों के लिए बुर्का अनिवार्य कर दिया है।

कोई भी औरत अकेली घर के बाहर नहीं निकल सकती। सारे स्कूलों और कालेजों में स्त्री-शिक्षा बंद हो गई है। सरकारी दफ्तरों से औरत कर्मचारियों की छुट्टी कर दी गई है। इनके कारण अफगानिस्तान में आजकल कोहराम मचा हुआ है। बादशाह ज़ाहिरशाह का 55 साल पहले का वह जमाना मुझे याद है जब काबुल विश्वविद्यालय में मेरे साथ ढेरों लड़कियां पढ़ती थीं, दर्जनों महिला प्रोफेसर सक्रिय थीं और सरकारी दफ्तरों में महिलाएं स्कर्ट और ब्लाउज पहने बेधड़क काम करती थीं। बादशाह अमानुल्लाह के ज़माने (1909) से आधुनिकीकरण की ऐसी लहर अफगानिस्तान में चली थी कि उसके सामने सारे इस्लामी मुल्क फीके पड़ गए थे। हर अफगान गर्व करता था कि वह प्राचीन आर्य सभ्यता का संवाहक है। काबुल का आसामाई मंदिर, बामियान की बुद्ध प्रतिमा, जलालाबाद की बौद्ध गुफाएं और कई जैन-अवशेष मैंने स्वयं जाकर देखे थे। अफगान सरकार के कई उच्च पदों पर उन दिनों कई हिंदू, सिख और शिया लोग प्रतिष्ठित थे लेकिन अब तो इस्लाम में गहरी आस्था रखनेवाले लोग भी अफगानिस्तान छोड़कर बाहर भाग रहे हैं। भारतीय दूतावास में वीज़ा की हजारों अर्जियां आ गई हैं। अफगानिस्तान में आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मदद बहुत कम आ रही है। पाकिस्तान से भी तालिबान के संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। इस्लाम के कुछ भारतीय और पाकिस्तानी विद्वानों का कहना है कि ये तालिबान स्त्री-सम्मान की महान इस्लामी परंपराओं को भी नहीं जानते। स्त्रियों को दरकिनार करनेवाले तालिबान अपने आप को पाकिस्तान, सउदी अरब और यू.ए.ई. से भी ज्यादा इस्लामपरस्त मानने लगे हैं। इन मुस्लिम देशों ने भी उन्हें अभी तक कूटनीतिक मान्यता नहीं दी है। यदि तालिबानी जुल्म इसी तरह जारी रहा तो कोई आश्चर्य नहीं कि उन्हें सख्त बगावत का सामना करना पड़ जाए। ईरानी औरतों ने अपनी सरकार की नाक में दम कर रखा है। यदि वैसी ही बगावत काबुल में शुरु हो गई तो भारत-जैसे राष्ट्रों को भी अपनी अफगान-नीति पर पुनर्विचार करना होगा।

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