भारत

हमारी फौज और गुलामी के प्रतीक

Nilmani Pal
13 Dec 2022 4:34 AM GMT
हमारी फौज और गुलामी के प्रतीक
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

भारतीय फौज से गुलामी के प्रतीकों को हटाने के अभियान का तहे-दिल से स्वागत किया जाना चाहिए। दो सौ साल का अंग्रेजी राज तो 1947 में खत्म हो गया लेकिन उसका सांस्कृतिक, भाषिक और शैक्षणिक राज आज भी भारत में काफी हद तक बरकरार है। जो पार्टी याने कांग्रेस दावा करती रही भारत को आजादी दिलाने का, उसने अंग्रेज की दी हुई राजनीतिक आजादी को तो स्वीकार कर लिया, लेकिन उसे जो खुद करना था याने देश के हर क्षेत्र से गुलामी को दूर करना, उसमें उसका योगदान बहुत ही शिथिल रहा। यह काम अब भाजपा सरकार भी कुछ हद तक जरूर कर रही है। उसके नेताओं को यदि उस गुलामी की पूरी समझ हो तो वे इस अमृत महोत्सव वर्ष में ही संपूर्ण पराधीनता मुक्त अभियान की शुरुआत कर सकते हैं। फिलहाल हमारी फौज में पराधीनता के एक प्रतीक को हटाया गया उस समय, जब विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को समुद्र में छोड़ा गया।

उस जहाज पर लगे हुए सेंट जार्ज के प्रतीक को हटाकर उसकी जगह शिवाजी का प्रतीक लगाया गया। यह मामला सिर्फ प्रतीकों तक ही सीमित नहीं है। जातियों के नाम पर सेना की टुकड़ियों के भी नाम तुरंत बदले जाने चाहिए। 1857 के स्वातंत्र्य संग्राम से घबराए अंग्रेज शासकों ने भारतीय लोगों को जातियों में बांटने की तरकीबें शुरु की थीं, उनमें से यह भी एक बड़ी तरकीब थी। उन्होंने शहरों और गांवों के नाम भी अंग्रेज अफसरों के नाम पर रख दिए थे। जगह-जगह उनके पुतले खड़े कर दिए थे। मुझे याद है कि अब से लगभग 50 साल पहले अहमदाबाद में लगा किसी अंग्रेज का पुतला मैंने तोड़ा था, वह भी राजनारायणजी (इंदिरा गांधी को हरानेवाले) के कंधे पर चढ़कर! कांग्रेस सरकारों ने सड़कों के कुछ नाम तो बदले लेकिन हमारी फौज में अभी भी अंग्रेजों का ढर्रा चल रहा है। कांग्रेस सरकार के रक्षा मंत्रालय की हिंदी समिति के सदस्य के नाते मैंने अंग्रेजी में छपी फौज की सैकड़ों नियमावलियों को हिंदी में बदलवाया ताकि साधारण फौजी भी उन्हें समझ सकें। इस समय फौज में डेढ़ सौ ऐसे नियम, नाम, इनाम, परपराएं, रीति-रिवाज और तौर-तरीके हैं, जिनका भारतीयकरण होना जरुरी है। 'बीटिंग द रिट्रीट' समारोह में 'एबाइड विथ मी' गाने की जगह लता मंगेशकर के 'ऐ, मेरे वतन के लोगों' को शुरु करना तो अच्छा है लेकिन जहां तक फौज के भारतीयकरण का प्रश्न है, उसे अंग्रेजों के रीति-रिवाज से मुक्त करवाना जितना जरुरी है, उतना ही जरुरी है, अपनी फौज को आत्म-निर्भर बनाना! आज भी भारत को अपने अत्यंत महत्वपूर्ण शस्त्रास्त्रों को विदेशों से आयात करना पड़ता है। उन पर अरबों रु. खर्च करने होते हैं। यदि आजादी के शताब्दि वर्ष तक हम पूर्णरूपेण आत्म-निर्भर हो जाएं और अमेरिका तथा यूरोपीय राष्ट्रों की तरह शस्त्रास्त्रों के निर्यातक बन जाएं तो भारत को महाशक्ति होने से कौन रोक सकता है?

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