भारतीय : ज्ञान का उद्देश्य जानकारी पाना ही नहीं होता। ज्ञान, विज्ञान और दर्शन में समस्त मानवता का हित निहित है। भारत में लगभग 5,000 साल पहले से ही लोकमंगल हितैषी ज्ञान परंपरा है। ऋग्वेद के ज्ञान सूक्त में उल्लेख है, 'प्रारंभिक दशा में पदार्थों के नाम रखे गए। यह ज्ञान का पहला चरण है। ये दोष अनुपयोगी ज्ञान पदार्थों के गुण, धर्म आदि कमीशन की छुट्टी में रहते हैं और अंतःप्रेरणा से ही प्रकट होते हैं।' वैदिक काल ज्ञान दर्शन का अरुणोदय काल है। यही परंपरा ऋग्वेद सहित चार वैदिक संहिताओं में विश्व की पहली ज्ञान सारिणी बना रही है।
उत्तर वैदिक काल के उपनिषद दर्शन में क्लिती है। फिर छह प्राचीन दर्शनों में शोक एवं तर्क के साथ प्रकट होता है। यही बुद्ध और जैन दर्शनों में अभिव्यक्त है। इसी परंपरा में पाणिनि विश्व का पहला व्याकरण लिखा जाता है। पतंजलि योगसूत्र और भाषा अनुशासन हैं। कौटिल्य अर्थशास्त्री लिखते हैं। वात्स्यायन कामसूत्र लिखते हैं। भरतमुनि नाट्यशास्त्र लिखते हैं। चरक और सुश्रुत संहिताएं आयुविज्ञान की आधारशिला ग्रंथ बना रही हैं। ऐसे सभी विद्वान अपने रहस्यों का उल्लेख करते हैं। वे अपने कार्यों को प्राचीन ज्ञान परंपरा से संबंधित हैं।
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