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सरवाइवर लेड इंटेलिजेंस नेटवर्क, उम्मीद की किरण

Nilmani Pal
29 July 2022 12:14 PM GMT
सरवाइवर लेड इंटेलिजेंस नेटवर्क, उम्मीद की किरण
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जो मिटाएगा बाल दुर्व्यापार का नामोनिशान

रोहित श्रीवास्तव

वैश्विक स्तर पर हर वर्ष मानव दुर्व्यापार (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) के खिलाफ जारी लड़ाई के प्रतीक के रूप में 30 जुलाई को मानव दुर्व्यापार विरोधी दिवस मनाया जाता है। ड्रग्स और हथियारों के अवैध कारोबार के बाद मानव दुर्व्यापार दुनिया का तीसरा सबसे संगठित अपराध है। पिछले कुछ वर्षों से यह अपराध दीमक की तरह लगातार समाज को भीतर से खोखला बना रहा है। अधिकतर मामलों में लड़कियां और महिलाएं दुर्व्यापार का शिकार होती हैं। उन्हें ट्रैफिक करके जबरन वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति और बाल श्रम की अंधेरी गलियों में धकेल दिया जाता है। जो अपराधी ऐसे अपराधों में लिप्त होते हैं उन्हें 'ट्रैफिकर्स' कहा जाता है।

पिछले कुछ वर्षों में ट्रैफिकर्स के निशाने पर महिलाओं के साथ बच्चे भी हैं। बाल दुर्व्यापार (चाइल्ड ट्रैफिकिंग), ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे दैत्य-रूपी अपराध का ही सबसे विकृत रूप है। इसमें विशेष रूप से ऐसे शोषित और वंचित वर्ग के बच्चों को निशाना बनाया जाता है जो पहले से हाशिये पर हैं। गरीब और अशिक्षित परिवार से संबंध रखने वाले लड़के-लड़कियों को बहला-फुसलाकर, बड़े सपने दिखाकर और बड़े शहर में अच्छी नौकरी का झांसा देकर एक मोटी रकम लेकर ट्रैफिकर उन्हें बाल श्रम और अन्य अनैतिक गतिविधियों के लिए बेच देता है। जहां उनका शारीरिक शोषण तो होता है ही है पर जिस गुलामी में वे जीने के लिए मजबूर किए जाते हैं वो उन्हें मानसिक रूप से तोड़ देता है। इस गुलामी के निशान उनके दिलो-दिमाग पर ज़िंदगी भर के लिए रह जाते हैं।

नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी पिछले चार दशकों से बच्चों की बेहतरी के लिए बाल दुर्व्यापार, बाल श्रम और बाल यौन शोषण के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) अब तक एक लाख से अधिक बच्चों को बाल दुर्व्यापार, बाल श्रम और बाल यौन शोषण से आजाद करा चुका है। सत्यार्थी द्वारा ही स्थापित कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन नीतिगत तरीके से दुर्व्यापार और ट्रैफिकर्स के खिलाफ एक विशेष अभियान चलाए हुए है। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) अपने उत्तरजीवी के नेतृत्व वाले खुफिया नेटवर्क (सरवाइवर लेड इंटेलिजेंस नेटवर्क) के माध्यम से बाल दुर्व्यापार के बारे में जागरूकता फैलाकर बच्चों को शोषण और जबरन श्रम के दलदल में धकेले जाने से रोकने में एक अहम भूमिका निभा रहा है। यह नेटवर्क पूर्व बाल मजदूर रहे बच्चों का एक समूह है जिन्होंने बाल दासता की पीड़ा को करीब से देखा है। इस समूह का काम अपने आसपास के गांवों में संभावित ट्रैफिकर और अतिसंवेदनशील बच्चों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखना है। कोई संदेहात्मक और अनैतिक गतिविधि देखे जाने पर यह संबंधित बचाव दल को सूचना देते हैं।

भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 1.01 करोड़ बाल मजदूर हैं और इनमें से अधिकांश बच्चे बाल दुर्व्यापार के शिकार हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार वर्षों में दुनिया में 84 लाख बच्चे बाल मजदूर बन गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के कारण 90 लाख अतिरिक्त बच्चों के बाल मजदूर बनने का खतरा है।

बाल दुर्व्यापार के खिलाफ लंबी लड़ाई है। इसे जड़ से समाप्त करने के लिए कोई सीधा फॉर्मूला या शॉर्टकट नहीं है। लेकिन एक विशेष, समयबद्ध एवं बहुआयामी रणनीति एवं अभिनव प्रयोगों के साथ इसे परास्त किया जा सकता है। सरवाइवर लेड इंटेलिजेंस नेटवर्क एक ऐसा ही मॉडल है जिसे पूरे देश में कार्यान्वित किया जाना चाहिए। यह मॉडल बाल दुर्व्यापार के विरुद्ध लड़ाई में मील का पत्थर साबित हो सकता है। वर्तमान में, यह नेटवर्क आठ दुर्व्यापार प्रवण राज्यों झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, असम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के कई गांवों में काम करता है। एक तरफ नेटवर्क ग्रामीणों के साथ मिलकर काम करता है तो दूसरी तरफ यह ग्राम पंचायत सदस्यों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और अन्य सरकारी विभागों के साथ मिलकर रणनीतिक साझेदारी बनाता है।

पूर्व बाल मजदूर मोहम्मद छोटू, जिसे केएससीएफ ने 2014 में दिल्ली के एक कारखाने से मुक्त कराया था, सरवाइवर लेड इंटेलिजेंस नेटवर्क का एक अभिन्न अंग है। छोटू बताते हैं कि नेटवर्क में टीम के सदस्य चौबीसों घंटे हाई अलर्ट पर रहते हैं। वह आगे कहते हैं, "हम दुर्व्यापार की आशंका वाले गांवों में किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर पैनी नज़र रखते हैं। हमने बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) को तुरंत सूचना देने के लिए गांव-गांव में एक तंत्र विकसित किया है।"

नेटवर्क कैसे काम करता है, इस बारे में बताते हुए, मोहम्मद छोटू कहते हैं कि हमारी टीम का पहला कदम विभिन्न गांवों का दौरा करना होता है। जिसका मकसद बाल दुर्व्यापार एवं बाल श्रम के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना है। हम पैम्फलेट, दीवार पर भित्तिचित्र, लाउडस्पीकर, ऑडियो सदेशों और बैठकों के माध्यम से ऐसा कर पाते हैं। इसके बाद, टीम गांवों में सक्रिय, साक्षर और जागरूक युवाओं की पहचान करती है, जिन्हें असुरक्षित बच्चों की किसी भी संदिग्ध गतिविधि या ट्रैफिकर्स की सक्रियता को भांपने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। अंत में, इन व्यक्तियों से प्राप्त कोई भी महत्वपूर्ण जानकारी बचपन बचाओ आंदोलन के बचाव दल को दे दी जाती है।

एक अन्य पूर्व बाल मजदूर अरबिंद कुमार, जो अब उस नेटवर्क का नेतृत्व करते हैं, कहते हैं कि नेटवर्क का फोकस शिक्षा के महत्व को उजागर करना, बाल श्रम के खिलाफ सार्वजनिक सहमति बनाना और बाल शोषण के कई रूपों को रोकना है। अरविंद आगे कहते हैं "आठ राज्यों के 100 जिलों में, हमने लोगों के साथ-साथ पंचायत सदस्यों और सरकारी अधिकारियों की भागीदारी सुनिश्चित की है। बिहार और झारखंड के दो राज्यों के लगभग 1,000 गांव हमारे हस्तक्षेप के कारण आज दुर्व्यापार से मुक्त हो गए हैं। मार्च 2021 से अप्रैल 2022 तक, आठ दुर्व्यापार-प्रवण राज्यों में दुर्व्यापार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल 1132 लोगों की पहचान की गई थी। इसके अलावा 350 ट्रैफिकर्स के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।"

मोहम्मद छोटू और अरबिंद कुमार जैसे बच्चों के प्रयासों ने इस बात का भरोसा दिलाया है और उम्मीद की किरण जगाई है कि एक दिन अवश्य ही 'दुर्व्यापार मुक्त भारत' के निर्माण का सपना साकार होगा और हर बच्चा सुरक्षित, शिक्षित व सम्पन्न होगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और बाल अधिकार के विषयों पर नियमित लिखते हैं)

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