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कोरोना से मौत पर मुआवजे को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, तीन दिन में सभी पक्षों को जवाब पेश करने का आदेश
Deepa Sahu
21 Jun 2021 9:34 AM GMT
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कोरोना वायरस महामारी से मरने वालों के परिवार को मुआवजा दिए
कोरोना वायरस महामारी से मरने वालों के परिवार को मुआवजा दिए जाने की मांग को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुरक्षित रखा है. इसके साथ ही सभी पक्षों को लिखित दलील जमा कराने के लिए तीन दिन का समय दिया गया है. साथ ही डेथ सर्टिफिकेट को लेकर भी कोर्ट ने निर्देश जारी किए.
वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार ने हलफनामे में साफ किया है कि कोरोना के डेथ सर्टिफिकेट पर मौत की वजह कोविड लिखना होगा, अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो सम्बंधित अधिकारी पर कार्रवाई की जाएगी. इसपर कोर्ट ने कहा कि जहां तक डेथ सर्टिफिकेट का मामला है, इसकी प्रक्रिया अधिक जटिल है, क्या इस प्रक्रिया को सरल नहीं किया जा सकता है?
इससे पहले केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर हलफनामा दाखिल कर दिया था. इसमें कहा था कि कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को 4-4 लाख रूपए का मुआवजा नहीं दिया सकता. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आपदा कानून के तहत अनिवार्य मुआवजा सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़ आदि पर ही लागू होता है. सरकार का तर्क है कि अगर एक बीमारी से होने वाली मौत पर मुआवजा दिया जाए और दूसरी पर नहीं, तो यह गलत होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोरोना होने के बाद अगर व्यक्ति अस्पताल जाता है और उसे इलाज मिल जाता है लेकिन नेगेटिव होने के बाद मरीज अन्य बीमारियों से जूझता है और उसकी मौत हो जाती है. ऐसी स्थिति में क्या माना जाएगा कि मौत कि वजह क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार विभिन्न स्तरों पर ऐसे मामले में दिशानिर्देशों को स्पष्ट करें ताकि पीड़ित पक्ष को सरकार की ओर से दी जा रही राहत का लाभ मिल सके.
'राज्य सरकारें मुआवजा दे सकती हैं तो केंद्र क्यों नहीं?'
वहीं, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जब राज्य सरकारें मुआवजे कि घोषणा कर सकती हैं तो केंद्र सरकार की ओर से कोरोना से होने वाली मौत के मामले में मुआवजा क्यों नहीं मुहैया कराया जा सकता है. याचिकाकर्ता गौरव बंसल ने कहा कि केंद्र सरकार यह नहीं कह सकती है वह मुआवजा नहीं देगी. वित्त आयोग को भी जानकारी है कि लोगों को पैसे की आवश्यकता है. अगर पिछड़े क्षेत्रों में व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसका परिवार आर्थिक संकट में पड़ जाता है.
'योजना को 2021 तक बढ़ाया जाना चाहिए'
याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील एसबी उपाध्याय ने कहा की हमने केंद्र से 4 लाख रुपए मुआवजा देने को कहा था, क्योंकि उनकी योजना यही है. उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार योजना बनानी होती है. उपाध्याय ने कहा हमारा पहला अनुरोध है कि इसे 2021 तक बढ़ाया जाना चाहिए. गौरव बंसल ने कहा कि कुछ योजनाएं हैं जो चिकित्सा कर्मचारियों पर ही केंद्रित हैं, हम इन्हें सलाम करते हैं, लेकिन सशस्त्र सेनाओं, पुलिस और यहां तक कि शमशान घाट में भी ऐसे लोग हैं जो अपने कर्तव्यों को पूरा करते समय जान गवां चुके हैं, उनकी देखभाल कौन करेगा?
केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इससे पहले हम केवल एक बार होने वाली राष्ट्रीय आपदाओं का सामना करते थे. कोरोना विश्वमारी पर लागू होता है, इससे निपटने के लिए हमारी सभी शक्तियों का प्रयोग हो रहा है. आपदा राहत की परिभाषा अब पहले से अलग है. जो नीति पहले थी उसमें प्राकृतिक आपदा के बाद राहत पहुंचाने की बात थी. अब इसमें आपदा से निपटने की तैयारी भी शामिल है.
'मुफ्त टीकाकरण, राशन और आवाजाही भी आपदा प्रबंधन का हिस्सा'
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि खाद्य सुरक्षा के तहत हर कोई 2 किलो चावल और 5 किलो दालों का हकदार है. एनडीएमए के तहत भी ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाया गया है. यहां तक की केंद्र के द्वारा मुफ्त टीकाकरण किया गया. प्रवासी मजदूरों को विशेष ट्रेन चला कर मुफ्त में उनके राज्य भेजना, उन्हें ट्रेन में भोजन देना, गरीबों को राशन देना, ऑक्सीजन उत्पादन बढ़ाना, उसके ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था करना, यह सब आपदा प्रबंधन का ही हिस्सा है. 22 लाख हेल्थ केयर वर्कर्स का बीमा भी इसी के तहत किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा अगर किसी त्रासदी में मरने वालों की संख्या बहुत अधिक हो तो सरकार छोटी संख्या वाली त्रासदी के जितना मुआवजा हर व्यक्ति को कैसे दे पाएगी. साथ ही अगर मुआवजा तय करने का जिम्मा राज्यों पर छोड़ा गया तो देश के अलग-अलग हिस्से में अलग मुआवजा होगा. इसपर याचिकाकर्ता ने कहा 4 लाख न सही लेकिन, NDMA कुछ तो स्कीम बनाए. यह कानूनन उसका कर्तव्य है.
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