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संपत्ति के मालिकाना हक के मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- म्यूटेशन एंट्री का मतलब, सिर्फ वित्तीय उद्देश्य के लिए
Deepa Sahu
10 Sep 2021 2:03 PM GMT
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संपत्ति के मालिकाना हक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है.
संपत्ति के मालिकाना हक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि दाखिल खारिज (Mutation entry) का मतलब संपत्ति का मालिकाना हक बिलकुल भी नहीं है. कोर्ट के मुताबिक म्यूटेशन एंट्री से किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति का अधिकार या हक नहीं मिलता है और यह केवल वित्तीय उद्देश्य के लिए है.
संपत्ति के मालिकाना हक का निर्णय एक सिविल कोर्ट (दीवानी अदालत) द्वारा ही किया जा सकता है. कोर्ट के मुताबिक दाखिल खारिज की एंट्री यानी म्यूटेशन एंट्री किसी व्यक्ति के हित में कोई फैसला नहीं करती है. किसी संपत्ति के म्यूटेशन का अर्थ स्थानीय नगर निगम या तहसील प्रशासन के रेवेन्यू रिकॉर्ड में स्वामित्व का हस्तांतरण या परिवर्तन है.न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि इस पर भी विवाद नहीं हो सकता कि वसीयत के आधार पर अधिकार का दावा वसीयत करने वाले की मृत्यु के बाद ही किया जा सकता है.
रेवेन्यू रिकार्ड में म्यूटेशन वित्तीय उद्देश्य के लिए
पीठ ने कहा, 'कानून के प्रस्ताव के अनुसार रेवेन्यू रिकार्ड में म्यूटेशन की एक एंट्री मात्र से उस व्यक्ति को संपत्ति का कोई मालिकाना हक, अधिकार या स्वामित्व मिलता है, जिसका नाम उसमें दर्ज हो. रेवेन्यू रिकार्ड में म्यूटेशन एंट्री केवल वित्तीय उद्देश्य के लिए है.'
शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि स्वामित्व के संबंध में कोई विवाद है और विशेष रूप से जब वसीयत के आधार पर म्यूटेशन प्रविष्टि की मांग की जाती है, तो जो पक्ष स्वामित्व या अधिकार का दावा कर रहा है, उसे उपयुक्त अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा.
दीवानी अदालत से पा सकते हैं अधिकार
न्यायालय ने कहा कि आवेदक के अधिकारों को केवल सक्षम दीवानी अदालत के जरिए ही हासिल किया जा सकता है और अदालत के निर्णय के आधार पर जरूरी म्यूटेशन प्रविष्टि की जा सकती है.
न्यायालय ने अपने पिछले फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में संपत्ति के म्यूटेशन से न तो संपत्ति का स्वामित्व बनता है और न ही समाप्त होता है. इस तरह की प्रविष्टियां केवल भू-रेवेन्यू हासिल करने के लिए प्रासंगिक हैं.
शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश को बरकरार रखते हुए यह फैसला सुनाया. उच्च न्यायालय ने रीवा मंडल के अतिरिक्त आयुक्त द्वारा पारित आदेश रद्द कर दिया गया था, जिसमें एक व्यक्ति ने वसीयत के आधार पर म्यूटेशन की मांग की थी.
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