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नई दिल्ली: मूलभूत अधिकार के नाम पर कोई भी सुरक्षा कवच उन्हीं लोगों को मिल सकता है, जो नियमों का पालन करते हों और कानूनी प्रक्रिया का सम्मान करते हों। सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए यह अहम टिप्पणी की। महाराष्ट्र के एक शख्स ने खुद पर मकोका लगाए जाने के खिलाफ अर्जी दाखिल की थी और कहा था कि इससे उसके मूल अधिकार प्रभावित होंगे। इस पर अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि मूल अधिकारों की रक्षा का कवच उन्हीं लोगों को हासिल हो सकता है, जो लोग कर्तव्यों का पालन करते हों। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और अनिरुद्ध बोस की अदालत ने कहा, 'मूल अधिकारों का दावा उस स्थिति में जस्टिफाई नहीं किया जा सकता, जब संबंधित शख्स खुद कानून का पालन न करता हो।'
आरोपी का कहना था कि उस ऐंटी-गैंगस्टर लॉ लागू किया गया है और इसका उसके मूल अधिकारों पर गंभीर असर होगा। इस पर फैसला देते हुए जस्टिस माहेश्वरी ने लिखा, 'जहां तक आरोपी के खिलाफ मकोका कानून लागू करने की बात है तो हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि यदि कोई व्यक्ति भगोड़ा घोषित हो जाता है और जांच एजेंसियों की पकड़ से बाहर रहता है तो फिर यह सीधे तौर पर कानून का उल्लंघन है। ऐसे व्यक्ति कोई रियायत नहीं दी जा सकती।' कोर्ट ने कहा कि एक साधारण आरोपी क्रिमिनल प्रॉसिजर कोड के सेक्शन 438 का हवाला देते हुए अग्रिम जमानत के लिए अदालत जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसा तब नहीं हो सकता, जब आरोपी भगोड़ा हो। पुलिस की ओर से आदतन अपराधी घोषित किया गया हो। ऐसे शख्स को सेक्शन 438 का लाभ नहीं दिया जा सकता। अदालत ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 136 के तहत हमें सेक्शन 438 के तहत आरोपी की मांगों पर विचार करने का अधिकार मिलता है। लेकिन अपील करने वाले शख्स पर गंभीर आरोपों में केस दर्ज हैं। ऐसे में उसकी अपील पर राहत नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को भविष्य में सामने आने वाले केसों के लिए एक नजीर के तौर पर देखा जा सकता है।
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