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महिला सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट चिंतित, कही यह बात
jantaserishta.com
28 April 2022 7:26 AM GMT
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नई दिल्ली: यशी (बदला हुआ नाम) ने 1999 में ग्रेजुएशन के बाद शादी कर ली. पेशे से फ्लाइट इंजीनियर उसके पति ने नौकरी नहीं करने के लिए राजी कर लिया. 2004 में यशी ने बेटे को जन्म दिया, तब तक वह नियमित रूप से पति की ओर से शारीरिक हिंसा का शिकार होती रही. कई सालों तक ये सिलसिला चलता रहा. इसके बाद यशी ने टीवी सीरियल्स में एक्टिंग करना शुरू किया, इस बीच उसे दूसरा बच्चा हुआ.
उसने कुछ दिन बाद अपने बेटों को बाल कलाकार के रूप में काम कराया. रुपये-पैसे का हिसाब भी पति के पास होता था. 2017 के बाद यशी के बड़े बेटे ने अपने पिता के व्यवहार की नकल शुरू कर दी. पहले मौखिक और फिर शारीरिक रूप से उसने अपनी मां को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया.
अक्टूबर 2020 में यशी आखिरकार उसी बिल्डिंग के दूसरे फ्लैट में चली गई, जो पति के साथ संयुक्त मालिकाना हक वाली थी. कुछ दिनों बाद, उसके पति ने फ्लैट का EMI देना बंद कर दिया, जिससे यशी को अदालतों के दरवाजे खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा. घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत यशी ने सुरक्षा की मांग की. मामला एक साल से अधिक समय तक चला और फरवरी 2022 में मजिस्ट्रेटने पति को फ्लैट का EMI देने के लिए अंतरिम आदेश दिया.
यह एक ऐसी महिला की दुर्दशा की कहानी है जो शिक्षित है, घर के बाहर काम करती है और उसकी सामाजिक पहचान भी है.
NGO से संबंध रखने वाली वकील शोभा गुप्ता के अनुसार, उन्होंने घरेलू हिंसा अधिनियम (डीवी एक्ट) पर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. अब तक सामने आए मामलों से पता चलता है कि यशी उन कुछ भाग्यशाली महिलाओं में से थी, जिन्हें मदद मिली.
एक्ट के प्रावधानों के एग्जिक्यूशन में कमी को लेकर सुनवाई कर रहा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए डीवी एक्ट (DV ACT) के प्रावधानों के कार्यान्वयन (एग्जिक्यूशन) में कमी को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है. NGO 'वी द वूमेन' की ओर से दायर याचिका में कानून के एग्जिक्यूशन की कमी पर चिंता जताई गई है.
आंकड़ों से पता चलता है कि प्रोटेक्शन ऑफिसर्स की नियुक्ति में भी खामियां हैं, जो शिकायतों की निगरानी करने और महिलाओं को मदद देने के लिए हैं. आमतौर पर मामलों की सुनवाई में लंबा समय लगता है और अदालतों द्वारा पारित आदेशों को ठीक से लागू नहीं किया जाता है.
पूरे देश में केवल 3637 प्रोक्टेशन अफसर
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के सामने पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, 21 अप्रैल 2022 को पूरे देश में केवल 3637 प्रोटेक्शन अफसर हैं, जिनमें से 2426 राजस्व या पुलिस अधिकारी हैं, जिन्हें डीवी एक्ट के मामलों को लेने के लिए अतिरिक्त प्रभार दिया गया है.
इस साल 25 फरवरी को सुनवाई के दौरान, जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट और पीएस नरसिम्हा की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि यदि सभी नहीं तो कुछ राज्यों में स्थिति संतोषजनक नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा था कि कई राज्यों ने राजस्व अधिकारियों या भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के सदस्यों को सुरक्षा अधिकारी के रूप में नॉमिनेशन के लिए सिलेक्ट किया है. कोर्ट की ओर से यह भी कहा गया कि सुरक्षा अधिकारी के रूप में राजस्व या प्रशासनिक अधिकारी अपना समय नहीं दे पाएंगे. पीठ ने यह भी कहा था कि अधिकांश राज्यों में नियुक्त अधिकारियों की संख्या राज्य के भौगोलिक फैलाव और जनसंख्या की तुलना में बहुत कम है.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से 21 अप्रैल 2022 को दिए गए आंकड़े
DV एक्ट के तहत 2 लाख 95 हजार 601 शिकायतें
देश भर में 6 हजार 289 अदालतें इन मामलों को देख रही हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) रिपोर्ट 2020 के आंकड़ों के मुताबिक....
2020 में 446 FIR, गिरफ्तार- 254, चार्जशीट- 429
2019 में 553 FIR
2018 में 579 FIR
2020 में डीवी एक्ट के तहत 2330 मामलों की सुनवाई हुई.
83 मामलों को पूरी तरह से निपटा दिया गया.
53 मामलों में आरोपी दोषी सिद्ध हुआ
10 मामलों में आरोपी बरी हो गए.
17 मामलों में आरोपी को डिस्चार्ज कर दिया गया
लंबित मामले- 96.4%
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से यह भी विचार करने के लिए कहा था कि क्या सुरक्षा अधिकारियों के एक अलग कैडर की भर्ती की जानी चाहिए और ऐसे पोस्ट के लिए योग्यता और प्रशिक्षण क्या हो सकता है. राज्यों की ओर से पेश की गई प्रतिक्रिया के अनुसार, 28 राज्यों में से 18 और 8 में से 7 केंद्र शासित प्रदेशों ने इस मुद्दे का उत्तर नहीं दिया है. कुछ राज्यों ने सिफारिश की है कि सुरक्षा अधिकारियों का एक अलग कैडर बनाया जा सकता है. बता दें कि डीवी एक्ट 2005 में लागू हुआ है.
याचिकाकर्ताओं "वी द वीमेन" के अनुसार, दिल्ली प्रोटेक्शन ऑफिसर को कोई बुनियादी सामग्री या स्टाफ नहीं दिया गया है, भले ही वे डीवी एक्ट के मामलों में पुलिस और अदालतों की सहायता करते हैं. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट आज (28 अप्रैल) जनहित याचिका पर सुनवाई करने वाली है और मंत्रालय और राज्यों की ओर से दायर प्रतिक्रिया पर विचार करेगी.
साभार: आजतक
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